प्रयागराज मंडल के नेताओं संग हुई CM योगी की बैठक, केशव यहां भी नहीं पहुंचे, माजरा क्या है?

अभिषेक मिश्रा

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Yogi Adityanath, Keshav Prasad Maurya
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CM Yogi, Keshav Prasad Maurya News: उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) जहां एक ओर लोकसभा चुनावों में मिली हार की समीक्षा कर रही है, वहीं एक सियासी संदेश बार-बार सामने आ रहा है कि ऑल इज नॉट वेल. यानी पार्टी में क्या सबकुछ ठीक नहीं चल रहा? ये बात सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के संदर्भ में कही जा रही है क्योंकि दोनों दिग्गज नेता सियासत की सेम पेज पर नजर नहीं आ रहे. इसकी एक बानगी गुरुवार को तब देखने को मिली जब सीएम योगी ने प्रयागराज मंडल के विधायक-नेताओं संग मुलाकात की, लेकिन केशव प्रसाद मौर्य इसमें नहीं रहे. 

प्रयागराज मंडल के विधायक सीएम आवास पर पहुंचे थे. प्रयागराज जोन की इस मीटिंग में केशव मौर्य नहीं पहुंचे. रिपोर्ट्स के मुताबिक ये रिव्यू बैठक थी, जिसमें मौजूदा हालात को सुधारने संबंधित मुद्दों पर चर्चा हुई. लोकसभा चुनावों में पार्टी के खराब प्रदर्शन की वजहें तलाशने के अलावा बीजेपी पर आगामी उपचुनावों में बेहतर प्रदर्शन का दबाव भी बनता नजर आ रहा है. जाहिर तौर पर ऐसी बैठकों में यही सारी बातें समझने की कोशिश की जा रही है. इस बैठक में केशव प्रसाद मौर्य नहीं पहुंचे तो तरह तरह की बातें कही जाने लगीं. 

ये भी कहा जा रहा है कि केशव के अलावा दूसरे डिप्टी सीएम यानी ब्रजेश पाठक भी अबतक सीएम योगी की ऐसी किसी जोनल मीटिंग का हिस्सा नहीं रहे हैं. यही वजह है कि इस बैठक में भी केशव या ब्रजेश पाठक नहीं रहे. 

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यूपी बीजेपी में सरकार बनाम संगठन की जंग? 

असल में ये पूरा मामला ऊपर से जितना सरल दिख रहा है, उतना सीधा है नहीं. पिछले दिनों बीजेपी की बैठक में केशव प्रसाद मौर्य ने संगठन को सरकार से बड़ा क्या बताया, बहस ही छिड़ गई कि क्या बीजेपी में सरकार और संगठन के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा. केशव प्रसाद मौर्य दिल्ली जाकर राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी मिल आए. इसके बाद पिछड़े तबके से आने वाले नेताओं और बीजेपी के सहयोगियों जैसे संजय निषाद और ओम प्रकाश राजभर से भी उनकी मुलाकात हुई. इसके अलावा बीजेपी के पिछड़ी तबके से आने वाले कई विधायकों ने केशव प्रसाद मौर्य से मुलाकात की. 

उधर सीएम योगी की भी समीक्षा बैठक जोन वाइज जारी है. सवाल उठाया जा रहा है कि क्या ये संगठन और सरकार के बीच पनपी कथित नाराजगी को कम करने की कवायद है या किसी तरह का शक्ति प्रदर्शन? दिल्ली आलाकमान भी इस मसले पर चुप्पी साधे नजर आ रहा है. अब यूपी की सियासत में यह देखना रोचक होगा कि क्या उपचुनावों से पहले बीजेपी की टॉप लीडरशिप के बीच बना यह कथित गतिरोध टूटता है या कोई दूसरा रूप ही अख्तियार कर लेता है.

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