बनारस से शुरू हुए अस्पताल को नोएडा तक फैलाया, करोड़ों का बिजनेस संभालने वाली डॉ. ऋचा राय की कहानी
हेल्थ केयर की दुनिया में डॉक्टर ऋचा राय आज बड़ा नाम साबित हो रही हैं. बनारस के हेरिटेज हॉस्पिटल की लीगेसी का डॉ. ऋचा ने नोएडा तक विस्तार किया है. देखिए ऋचा राय की पूरी कहानी.
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हेरिटेज हॉस्पिटल ग्रुप की डायरेक्टर डॉ. ऋचा राय ने स्वास्थ्य सेवा की दुनिया में एक अलग नजीर पेश की है. अपने परिवार की विरासत को आगे बढ़ाने वालीं डॉ. ऋचा राय ने सिर्फ मशीनों और तकनीक तक सीमित न रहकर इंसानी रिश्तों, जिम्मेदारी और भरोसे का इकोसिस्टम बनाया है. डॉ. ऋचा राय कहती हैं कि उनके लिए मरीज सिर्फ एक नंबर नहीं बल्कि परिवार का एक सदस्य है. डॉ. ऋचा के पिता ने बनारस में हेल्थकेयर लीगेसी को शुरू किया था और उन्होंने इसका विस्तार अब नोएडा तक किया है. कोविड के बाद बदली हेल्थ अवेयरनेस, आयुष्मान भारत की भूमिका जैसे सवालों पर वह साफ कहती हैं कि हेल्थकेयर एक लॉन्ग टर्म गेम है, जहां नो मार्जिन, नो मिशन के साथ पेशेंट फर्स्ट को सेंटर में रखना चाहिए. 'यूपी की उड़ान' सीरीज के तहत डॉ. ऋचा से यूपी Tak ने खास बातचीत की है. इस खबर में जानिए डॉ. ऋचा राय ने हमारे सवालों के जवाब में क्या-क्या कहा?
सवाल: हेरिटेज हॉस्पिटल की जर्नी और आपकी अपनी जर्नी कैसे जुड़ी?
जवाब: डॉ. ऋचा बताती हैं कि हेरिटेज हॉस्पिटल की शुरुआत उनके जन्म के ही साल यानी 1994 में वाराणसी के लंका क्षेत्र से हुई. तब शहर में कोई मल्टीस्पेशलिटी प्राइवेट हॉस्पिटल नहीं था. उनके पिता डॉ. सिद्धार्थ राय ने पहली बार एक ही छत के नीचे कार्डियक, रीनल और एडवांस डायग्नॉस्टिक सुविधाएं शुरू कीं. समय के साथ यहां पहला कार्डियक प्रोसीजर, पहला रीनल ट्रांसप्लांट और एरिया का पहला 3 टेस्ला MRI जैसे कई माइलस्टोन जुड़े और फिर 150 सीटों से शुरू हुआ हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज आज 200 MBBS सीटों और करीब 80 पीजी सीटों वाला बड़ा मेडिकल कॉलेज बन चुका है.
डॉ. ऋचा बचपन से हॉस्पिटल माहौल में पली-बढ़ीं. मैथ्स और बायोलॉजी दोनों लेकर उन्होंने पढ़ाई की. फिर MBBS और उसके बाद हेल्थ एडमिनिस्ट्रेशन को चुना ताकि वह क्लिनिकल रोल के साथ-साथ हेल्थकेयर सिस्टम को मैक्रो लेवल पर समझ सकें.
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सवाल: नोएडा वाला नया हेरिटेज हॉस्पिटल कैसा है, यहां क्या-क्या सुविधाएं हैं?
जवाब: उन्होंने बताया कि नोएडा का हेरिटेज हॉस्पिटल ग्रुप का दिल्ली-NCR में पहला सेटअप है. यह सेक्टर 119 में लगभग 100 बेड का मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल है. यहां सुपर स्पेशलिटीज में कैथ लैब के साथ इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी, गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी, डायलिसिस और नेफ्रोलॉजी, यूरोलॉजी, लैप्रोस्कोपिक/मिनिमली इनवेसिव सर्जरी, गायनेकोलॉजी और पीडियाट्रिक्स जैसी सर्विसेज एक ही छत के नीचे उपलब्ध हैं.
हॉस्पिटल की खास फोकस एरिया क्रिटिकल केयर है. यहां लगभग एक-चौथाई बेड आईसीयू, मेडिकल/सर्जिकल कॉरोनरी केयर और HDU में डिवाइड हैं और इसके लिए डेडिकेटेड इंटेंसिविस्ट टीम तैयार की गई है. सॉफ्ट लॉन्च के डेढ़-दो महीनों में ही यहां 100 से ज्यादा मरीज इमरजेंसी में ट्रीट हो चुके हैं, एंजियोप्लास्टी, डिलीवरी और यूरोलॉजी सर्जरी जैसी केसेज शुरू हो चुके हैं. लक्ष्य है कि यह क्षेत्र का नेबरहुड हॉस्पिटल बने, लेकिन फैसिलिटीज हाई-एंड कॉर्पोरेट हॉस्पिटल जैसी रहें.
सवाल: अक्सर कहा जाता है कि हेल्थकेयर अब बिजनेस बन गया है, आप क्वालिटी और कॉस्ट के बीच बैलेंस कैसे देखती हैं?
जवाब: डॉ. ऋचा साफ कहती हैं कि हेल्थकेयर को बिजनेस कहने में बुनियादी सच्चाई यह है कि नो मार्जिन, नो मिशन अगर हॉस्पिटल खुद जिंदा नहीं रहेगा तो लंबे समय तक किसी की सेवा भी नहीं कर पाएगा. लेकिन उनके मॉडल में दो लेवल साफ दिखते हैं. बनारस का मेडिकल कॉलेज, जहां कई प्रोसीजर सब्सिडाइज्ड रेट पर होते हैं, 300 बेड पूरी तरह मुफ़्त रखे गए हैं और डिलीवरी सहित कई सेवाएं बेहद किफायती या मुफ्त हैं. वहीं दूसरी तरफ नोएडा जैसा सेटअप है जहां मिडिल/अप्पर-मिडिल क्लास पेशेंट्स बेहतर रूम, साफ-सुथरा माहौल और हॉस्पिटैलिटीटाइप सर्विस चाहते हैं, तो यहां फेयर प्राइसिंग के साथ क्वालिटी इक्विपमेंट और सर्विस पर कोई कॉम्प्रोमाइज नहीं रखा जाता.
वह मानती हैं कि कई प्राइवेट सेटअप में पेशेंट खुद को लॉस्ट महसूस करते हैं, इसलिए हेरिटेज का मकसद है हाई-एंड ट्रीटमेंट के साथ बुटीक फील देना. स्टाफ मरीजों को नाम से पुकारे, पर्सनल कनेक्ट बनाए और साथ ही ऐसी मशीनें व टेक्नोलॉजी इस्तेमाल हों जिनमें रेडिएशन व दूसरे रिस्क कम हों भले ही निवेश ज्यादा लगे.
सवाल: कोविड 19 के बाद हेल्थकेयर और मरीजों की सोच में क्या बड़ा बदलाव दिखा?
डॉ. ऋचा के अनुसार कोविड के बाद लोगों में अपनी सेहत, एक्सरसाइज, योग, डाइट और प्रिवेंटिव हेल्थ चेकअप को लेकर पहले से ज्यादा सजगता आई है. हालांकि अब भी एक बड़ा वर्ग स्वास्थ्य को हल्के में लेता है. बीमारी के बाद हॉस्पिटल भागने वाली रिएक्टिव हेल्थ केयर से अब धीरे-धीरे प्रो-एक्टिव मॉडल की ओर शिफ्ट हो रहा है जहां फैमिली हिस्ट्री या रिस्क फैक्टर वाले लोग समय पर जांच करवा कर कई बीमारियों को शुरुआती स्टेज पर पकड़ सकते हैं.
सवाल: उत्तर प्रदेश के हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर में प्राइवेट हॉस्पिटल्स की भूमिका को आप कैसे देखती हैं?
डॉ. ऋचा का मानना है कि यूपी में लंबे समय तक यह ट्रेंड रहा कि जो थोड़ा भी अफोर्ड कर सकता था सीधा दिल्ली-मुंबई इलाज के लिए भागता था. लेकिन अब अपग्रेडेड फैसिलिटीज, बेहतर कनेक्टिविटी और नए सेंटर्स के कारण यह ट्रेंड बदल रहा है. हेरिटेज जैसे संस्थान अब इस पोजिशन में हैं कि दिल्ली-मुंबई जाने की बजाय लोग बनारस या नोएडा आकर एडवांस ट्रीटमेंट ले सकें. कई मामलों में मेट्रो सिटीज से भी मरीज यहां की किफायती और क्वालिटी सर्विस के लिए आ सकते हैं.
सवाल: आयुष्मान भारत और सरकार की पॉलिसी से ग्राउंड लेवल पर क्या फर्क दिखा?
जवाब: उनके अनुभव में आयुष्मान भारत जैसे प्रोग्राम ने उन मरीजों के लिए बड़ा फर्क पैदा किया है, जो पहले सिर्फ सरकारी हॉस्पिटल तक सीमित थे और वहाँ ओवरलोड की वजह से लंबी वेटिंग झेलते थे. अब वही मरीज प्राइवेट मेडिकल कॉलेज या हॉस्पिटल में भी बिना रकम चुकाए, कार्ड के दम पर इलाज करवा पा रहे हैं जिससे न सिर्फ उनकी पहुंच बढ़ी है. बल्कि प्राइवेट सेक्टर को भी लो-इनकम ग्रुप के लिए काम करने का ठोस इंसेंटिव मिला है.
नोएडा जैसे इंडस्ट्रियल बेल्ट में गवर्नमेंट की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस पॉलिसी, प्लॉट एलॉटमेंट और इंफ्रास्ट्रक्चर सपोर्ट ने भी प्राइवेट प्लेयर्स के लिए हॉस्पिटल सेटअप के रोडब्लॉक कम किए हैं. डॉ. ऋचा मानती हैं कि हेल्थकेयर किसी भी देश का पिलर है इसलिए इस क्षेत्र में निवेश और पॉलिसी सपोर्ट दोनों को लगातार मजबूत रखना जरूरी है.











