लखनऊ के क्लॉक टावर की बिहारशरीफ वाले घंटाघर से तुलना! इसे ब्रिटिशों ने नहीं नवाब साहब ने बनवाया था

Bihar Sharif Clock Tower: सोशल मीडिया पर बिहारशरीफ के नए घंटाघर की तुलना लखनऊ के ऐतिहासिक घंटाघर से की जा रही है. दावों के बीच प्रशासन ने सफाई दी है कि घंटाघर का निर्माण अभी पूरा नहीं हुआ है. जानिए दोनों जगहों की असली कहानी और सच्चाई क्या है.

Bihar Sharif Clock Tower

हर्ष वर्धन

09 Apr 2025 (अपडेटेड: 09 Apr 2025, 06:53 PM)

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Bihar Sharif Clock Tower: इस वक्त सोशल मीडिया पर बिहारशरीफ के घंटाघर की खूब चर्चा है. सोशल मीडिया पर बिहारशरीफ के घंटाघर के उद्घाटन को लेकर कई तरीके के दावे किए जा रहे हैं. चर्चा यह है कि उद्घाटन के बाद से ही घंटाघर में खराबी आ गई है. इसी के बाद से बिहारशरीफ के घंटाघर की तुलना लखनऊ के क्लॉक टावर से की जा रही है. सोशल मीडिया पर दावा किया जा रहा है कि लखनऊ का क्लॉक टावर अंग्रेजों ने कई साल पहले बनाया था और वो आज भी चल रहा है. वहीं, बिहारशरीफ का क्लॉक टावर बनने के बाद ही खराब हो गया है. अब आप इस खबर में इस बात को जानिए कि बिहारशरीफ के क्लॉक टावर और लखनऊ के घंटा घर की असली कहानी क्या है और सोशल मीडिया पर जो दावा हो रहा है वो सही है या भ्रामक?

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सबसे पहले जानिए सोशल मीडिया पर क्या हो रहा दावा?

सोशल मीडिया पर एक फेसबुक पेज ने दावा किया है कि लखनऊ का जो क्लॉक टावर है वो साल 1880 में बना था, वो आज भी चल रहा है. वहीं, बिहारशरीफ का घंटाघर शुरू होने के बाद ही 24 घंटे के अंदर खराब हो गया है. 

 

बिहारशरीफ के घंटाघर को लेकर प्रशासन ने क्या कहा?

बिहारशरीफ के नगर आयुक्त दीपक कुमार मिश्रा ने स्पष्ट किया है कि 'घंटाघर का न तो डिजाइन फाइनल हुआ है और न ही निर्माण कार्य पूरा हुआ है, इसलिए उद्घाटन की कोई बात ही नहीं है.' उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर प्रसारित की जा रही तस्वीरें अधूरे घंटाघर की हैं, जिन्हें गलत संदर्भ में प्रचारित किया जा रहा है. जिला प्रशासन ने ऐसी खबरों को भ्रामक और तथ्यहीन बताया है. 

वहीं, कुछ रिपोर्ट्स में घंटाघर की लागत 40 लाख रुपये बताई जा रही है, जिसे स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने सिरे से खारिज किया है.  वास्तविक अनुमानित लागत लगभग 20 लाख रुपये है. बिहारशरीफ स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने अफवाहों का खंडन करते हुए कहा कि घंटाघर का निर्माण कार्य प्रगति पर है और इस संबंध में फैलाए जा रहे तथ्य गलत हैं. उन्होंने लोगों से अपील की है कि वे ऐसी भ्रामक खबरों पर ध्यान न दें और आधिकारिक सूचनाओं पर ही विश्वास करें.

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क्या लखनऊ के क्लॉक टावर को अंग्रेजों ने बनाया था?

दरअसल, सोशल मीडिया पर दावे के साथ कहा जा रहा है कि लखनऊ के क्लॉक टावर को अंग्रेजों ने बनाया था, इसलिए वो आज भी चल रहा है. वहीं, जब यूपी Tak ने इस विषय पर पड़ताल की तो कुछ और ही कहानी सामने आई. 

यूपी सरकार के एनआरआई डिपार्टमेंट की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, "हुसैनाबाद घंटाघर का निर्माण 1881 में नवाब नासिर-उद-दीन हैदर ने संयुक्त प्रांत अवध के प्रथम लेफ्टिनेंट गवर्नर सर जॉर्ज कूपर के आगमन के उपलक्ष्य में करवाया था. हुसैनाबाद घंटाघर को भारत के सभी घंटाघरों में सबसे ऊंचा माना जाता है." इसकी हाइट 221 फीट है. 

बता दें कि सरकारी दावे से इस बात की पुष्टि हो गई है कि इस क्लॉक टावर को अंग्रेजों ने नहीं बल्कि नवाब नासिर-उद-दीन हैदर ने बनवाया था. वहीं, बिहार के जिला प्रशासन ने भी सभी दावों को खारिज कर दिया है जो सोशल मीडिया पर चल रहे हैं. तो यूपी Tak की इस पड़ताल के बाद कहा जा सकता है कि बिहारशरीफ और लखनऊ के क्लॉक टावर को लेकर जो दावे किए जा रहे हैं और पूर्ण रूप से गलत और भ्रामक हैं.  

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