महराजगंज: कभी भी लंबे समय तक किसी एक दल या नेता के हाथ में नहीं रही सत्ता की चाबी!
यूपी की सियासत में पांच विधानसभा वाले महराजगंज जिले में लोकसभा की भी एक सीट है. सत्रहवीं विधानसभा के चुनाव में पांच में से चार…
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यूपी की सियासत में पांच विधानसभा वाले महराजगंज जिले में लोकसभा की भी एक सीट है. सत्रहवीं विधानसभा के चुनाव में पांच में से चार सीट भाजपा ने यहां जीत कर प्रदेश में सत्ता की कमान संभाली. एक सीट कांग्रेस के खाते में गई. लोकसभा में यहां के सांसद पंकज चौधरी भाजपा के टिकट पर छह बार चुनाव जीत चुके हैं. वर्तमान समय में वह केन्द्र सरकार में वित्त राज्य मंत्री हैं. यहां के सियासत के गलियारों का अतीत देखा जाए तो कभी भी लंबे समय तक किसी एक दल या नेता के हाथ में सत्ता की चाभी नहीं रही है.
महराजगंज की राजनीति बदलाव की साक्षी रही है. कभी कांग्रेस के सियासत का पिच रह चुके यहां के चुनावी मैदान में बामपंथ की राजनीति भी अपनी जगह बनाई. बसपा, सपा ने भी खाता खोला. राम मंदिर आंदोलन के बाद राजनीति में बदलाव ने यहां के सियासी रंग को भगवा कर दिया.
महराजगंज जिले की अतीत पर नजर डालें तो कौशल राज्य का अंग रह चुके महराजगंज की धरती का समृद्ध प्रजातांत्रिक इतिहास है. नेपाल बार्डर से सटे यूपी के महराजगंज जिले ने देश व प्रदेश की राजनीति में कई बड़ा चेहरा दिया, लेकिन पिछड़ेपन का दंश झेल रही प्रो. सिब्बल लाल सक्सेना की की कर्मभूमि कभी नहीं उबर पाई. कृषि प्रधान जिले को मिनी पंजाब कहा जाता है, लेकिन यहां की औद्योगकि शून्यता ने पलायन को बढ़ाया. जिले की चार चीनी मिलों में से दो बंद हैं. फूड प्रोसेसिंग की एक भी यूनिट नहीं है. जिले के नगर निकायों में ओद्योगिक क्षेत्र बनाए गए लेकिन वहां न तो फैक्ट्रियां स्थापित हुई और ना ही सुविधाओं का विकास हुआ. नेपाल से आने वाली पहाड़ी नदियां यहां हर साल बाढ़ की त्रासदी लिखती हैं.
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जिले से होकर बौद्ध परिपथ व राष्ट्रीय राजमार्ग गुजरा है, जिसका इस्तेमाल देश के अन्य कोने से नेपाल को जोड़ने तक ही प्रमुख रूप से सिमट कर रहा है. जिले में में प्राकृतिक वन संपदा मौजूद है. सोहगीबरवा वन्यजीव अभ्यारण्य इसी जिले में है, लेकिन वहां ईको टूरिज्म की अपार संभावना होने के बाद उसका विकास नहीं हो पाया है.
सोहगीबरवा वन्यजीव अभ्यारण्य के लक्ष्मीपुर रेंज में देश की पहली ट्राम-वे रेल है, लेकिन पिछले चार दशक से बंद है. उसको ईको टूरिज्म के लिए फिर से चलाने की योजना बनी. सोच थी कि दार्जिलिंग हेरीटेज ट्रेन की तरह ट्राम-वे रेल को फिर से चलाकर उसको विश्व धरोहर घोषित कराया जाएगा. इसके लिए कार्ययोजना बनी लेकिन वह वह भी फाइलों में कैद होकर रह गई है.
ऐसा रहा है राजनीतिक इतिहास
महराजगंज जिले की अतीत पर नजर डालें तो कौशल राज्य का अंग रह चुके महराजगंज की धरती का समृद्ध प्रजातांत्रिक इतिहास है. कभी कौशल राज्य का अंग रहे चुके इस क्षेत्र में नवाबों के दौर के पहले राजपूत राजाओ का वर्चस्व रहा है. इस धरती का इतिहास भगवान बुद्ध के ननिहाल के रूप में भी जुड़ा है. अंग्रेजी हुकूमत में यहां भी विरोध के आवाज उठे थे. देश आजाद होने के बाद जिले के शहीद स्मारक पर रामदीन का दीया पहली बार यहां की आजाद धरती पर जगमगाया था. आजादी के बाद लोकसभा में इस इलाके का प्रतिनिधित्व राजनेता और प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी शिब्बन लाल सक्सेना ने किया. महाराजगंज के मसीहा के नाम से मशहूर शिब्बन लाल सक्सेना यहां से तीन बार चुनाव साल 1952, 1957 और 1971 में जीत चुके हैं.
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1990 के बाद यहां की राजनीति की भाजपा ने बर्चस्व बनाया. नब्बे के दशक से लेकर अब तक यहां हुए आठ लोकसभा चुनाव में भाजपा को छह बार जीत मिली. इस बीच कद्दावर नेता रहे चुके स्व. हर्षबर्धन ने कांग्रेस व कुंवर अखिलेश सिंह सपा के टिकट पर जीत हासिल कर भाजपा को लगातार जीत हासिल करने से रोका. अब केन्द्र व प्रदेश में भाजपा की सरकार है और महराजगंज जिले में एक केन्द्रीय राज्य मंत्री व चार विधायक हैं. यह देखना दिलचस्प होगा कि लोकसभा चुनाव में भाजपा यहां अपनी साख को बरकरार रख पाएगी या फिर यहां की सियासत विधानसभा के चुनाव में किसी दूसरे रंग में नजर आएगी.
2022 के विधानसभा चुनाव में महाराजगंज जिले के 5 विधानसभा सीटों पर बीजेपी ने एक बार फिर कब्जा किया है. वही फरेंदा विधानसभा सीट से कांग्रेस के वीरेंद्र चौधरी ने जीत दर्ज कर इतिहास बनाया है. महराजगंज सदर,नौतनवा, सिसवा और पनियरा सीट बीजेपी की झोली में आई. इसके पहले फरेंदा सीट से बीजेपी विधायक इस बार कांग्रेस के वीरेंद्र चौधरी से हार गए है. वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में यहां की जनता ने पांच विधानसभा सदर, पनियरा, सिसवा व फरेंदा में भाजपा के पक्ष में जनादेश दिया था.
महराजगंज सदर सीट लंबे समय तक किसी एक दल के पास नहीं रही
महराजगंज जनपद की सदर विधानसभा की सुरक्षित सीट की जनता कभी भी किसी एक दल का बन कर नहीं रही और ना ही किसी सियासी आंदोलन से प्रेरित हुई. पिछले दो दशक के चुनाव नजीते पर गौर करें तो यहां से चुनाव जीत कर भाजपा सरकार में मंत्री रहे. चंद्रकिशोर से वोटर जब मुंह मोड़े तो वह नतीजे में तीसरे स्थान पर पहुंच गए. दलित बाहुल्य आबादी के बाद भी बसपा अपना यहां से जीत का खाता नहीं खोल पाई. कभी दूसरे तो कभी तीसरे स्थान पर बसपा प्रत्याशियों को संतोष करना पड़ा. इस विधानसभा सीट की सियासी लड़ाई भाजपा व सपा के बीच ही रहती है.
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पिछले दो दशक से यहां किसी अन्य दल के प्रत्याशियों को जीत नसीब नहीं हो सका. सदर के भाजपा विधायक जयमंगल कन्नौजिया ने 17वीं विधानसभा चुनाव में सपा से सीट छीन कर भाजपा के खाते में किया था. ऐसे में सपा यहां वापसी करने के लिए बेताब है.क्योंकि पन्द्रहवीं व सोलहवीं विधानसभा में सपा ने यहां लगातार जीत हासिल किया था. बसपा भी यहां खाता खोलने के लिए रणनीति बनाने की जोर आजमाइश कर रही है.
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