गेस्ट हाउस कांड: मुलायम के राजनीतिक जीवन के सबसे बड़े दाग की पूरी कहानी

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Mulayam Singh Yadav News: मुलायम सिंह यादव पांच दशकों से भी लंबा राजनीतिक जीवन जीकर अब अलविदा कह चुके हैं. 8 बार लगातार विधायक, 7 बार लगातार सांसद, देश का रक्षा मंत्री, तीन-तीन बार यूपी जैसे बड़े प्रदेश का मुख्यमंत्री, मुलायम सिंह यादव को भारतीय राजनीति में हर ख्याति मिली. लेकिन कुछ वाकये ऐसे भी रहे जिन्होंने उनके खाते में अपयश भी बंटोरे. ऐसा ही एक वाकया था यूपी का गेस्ट हाउस कांड. वह कांड जिसकी पीड़िता मायावती बनीं. वह कांड जो हमेशा-हमेशा के लिए देश की राजनीति की किताब में एक बुरे अध्याय के रूप में दर्ज हो गया. आइए आपको लौटाकर चलते हैं 2 जून 1995 के उस यूपी में जहां सामने आया था गेस्ट हाउस कांड.

इस कहानी को सिलसिलेवार समझने के लिए हमें घटना वाले दिन से दो साल पीछे लौटना होगा. साल 1993 में एसपी और बीएसपी ने मिलकर यूपी का विधानसभा चुनाव लड़ा था और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में साझा सरकार बनाई थी. कुछ महीनों तक एसपी-बीएसपी का गठबंधन अच्छी तरह चला. मगर धीरे-धीरे वो मुद्दे उभरने लगे, जिनको लेकर एसपी और बीएसपी की राहें अलग-अलग थीं. ऐसा ही एक मुद्दा महात्मा गांधी से जुड़ा था.

UP Politics News: अजय बोस अपनी किताब ‘बहनजी’ में लिखा है कि मायावती ने मार्च 1994 के पहले हफ्ते में मीडिया से बात करते हुए महात्मा गांधी को लेकर कहा कि उनके कामों ने हमारी प्रगति को धीमा कर दिया है. मायावती ने तब महात्मा गांधी द्वारा दलितों को हरिजन कहने को लेकर भी आपत्ति जताते हुए कहा था कि अगर दलित भगवान की संतान हैं, तो क्या बाकी लोग शैतान की संतान हैं? अगर गांधी को यह शब्द इतना पसंद था तो उन्होंने खुद को हरिजन क्यों नहीं कहा? मायावती के इस बयान पर बवाल हो गया. हालांकि तब मुलायम ने मायावती की कोई सार्वजनिक आलोचना नहीं की, बस इतना कह पल्ला झाड़ा की वह खुद महात्मा गांधी के बड़े प्रशंसक हैं.

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लेकिन 1994 जबतक आधा गुजरता, इन दोनों दलों के संबंध काफी बिगड़ गए. दलितों पर हिंसक अत्याचार के मामलों को लेकर मुलायम सरकार घिर गई. कांशीराम के साथ कभी-कभार होने वाली बैठकों ने इस समस्या के हल के बजाय इसे और बढ़ाया. दरअसल होने यह लगा था कि कांशीराम खुद मुख्यमंत्री से मिलने की बजाय उन्हें गेस्ट हाउस बुलाने लगे. रिसेप्शन लॉबी में उन्हें इंतजार कराने लगे. फिर मिलते भी तो अस्त-व्यस्त हालत में, बनिया और लुंगी पहने. ये तस्वीरें जब पब्लिक हुईं तो मुलायम सरकार के लिए शर्मिंदगी की वजह बनीं.

Mulayam Singh Yadav: मुलायम सरकार पर आसन्न संकट को भांप रहे थे. उन्होंने इसके लिए सियासी प्लान बनाया.1995 के मध्य तक वह बीएसपी के एक दर्जन विधायकों के संपर्क में थे. ऐसा माना जा रहा था कि बीएसपी के शीर्ष नेता बस मुलायम के इशारे के इंतजार में थे. मुलायम का अपना आकलन था कि महात्मा गांधी की निंदा के बाद बीएसपी को समर्थन नहीं मिलेगा, लेकिन उन्हें कांशीराम और बीजेपी के तबके सबसे मजबूत नेता अटल बिहारी वाजपेयी की कमेस्टिरी का अंदाजा नहीं था.

उस वक्त बीजेपी नेतृत्व बीएसपी के साथ गठबंधन कर कांशीराम को नया सीएम बनाने के लिए तैयार था, लेकिन उनकी कमजोर शारीरिक स्थिति इसके अनुकूल नहीं थी. मई के अंत तक कांशीराम के पास खबर पहुंची कि मुलायम सिंह बीएसपी को तोड़ने वाले हैं. कांशीराम ने मायावती को अपने अस्पताल बुलाया और अपनी योजनाओं के बारे में बताया. मायावती ने बिल्कुल देर नहीं की और यूपी के तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल वोरा से मिल बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया. जून के पहले दिन जब यह बात मुलायम सिंह के पास पहुंची कि मायावती ने उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया, तो वह गुस्से से भर गए, मायावती और कांशीराम के प्रति ही नहीं, बल्कि बीएसपी के खिलाफ अपनी योजना को लागू करने में देरी के लिए खुद के प्रति भी.

उधर, मायावती ने 2 जून की दोपहर को लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस में बीएसपी विधायकों की एक बैठक बुलाई. बैठक खत्म होने के बाद, मायावती आगे की चर्चा के लिए पार्टी विधायकों के एक चुनिंदा समूह के साथ अपने सुइट में चली गईं. बाकी विधायक कॉमन हॉल में ही थे. शाम 4 बजे के कुछ ही देर बाद करीब 200 लोगों की भीड़ ने गेस्ट हाउस पर हमला कर दिया. कहा जाता है कि भीड़ में समाजवादी पार्टी के विधायक और समर्थक शामिल थे.

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भीड़ में शामिल लोग बीएसपी विधायकों और उनके परिवारों को अपंग करने और मारने की धमकी देने वाले नारों के साथ-साथ ‘च$& पागल हो गए हैं, हमें उन्हें सबक सिखाना होगा’ जैसे जातिवादी नारे भी लगा रहे थे. भीड़ को देखकर कॉमन हॉल में मौजूद विधायकों ने आनन-फानन में मुख्य दरवाजे को बंद कर दिया था, लेकिन उन्मादी भीड़ ने उसे तोड़ दिया. फिर इस भीड़ ने बीएसपी विधायकों के साथ मारपीट की.

अजय बोस ने अपनी किताब में लिखा है कि बीएसपी के कम से कम पांच विधायकों को गेस्ट हाउस से जबरन घसीटा गया और कारों में डाल दिया गया जो उन्हें मुख्यमंत्री आवास तक ले गईं. वहां उन्हें राज बहादुर के नेतृत्व वाले बीएसपी के बागी गुट में शामिल होने और मुलायम सिंह सरकार को समर्थन देने के लिए एक कागज के टुकड़े पर हस्ताक्षर तक कराए गए. देर रात तक विधायक वहीं कैद रहे.

उधर, दो पुलिस अधिकारियों, विजय भूषण, स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ), हजरतगंज और सुभाष सिंह बधेल, एसएचओ, (वीआईपी) के साहस की वजह से मायावती सुरक्षित रहीं. ये दोनों अधिकारी कुछ कॉन्स्टेबलों के साथ काफी मुश्किल का सामना करते हुए भीड़ को थोड़ा पीछे हटाने में कामयाब रहे. हालांकि, इस बीच, गुस्साई भीड़ ने मायावती को सुइट से बाहर खींचने की धमकी देते हुए, नारेबाजी और गालियां देना जारी रखा. लखनऊ के जिलाधिकारी राजीव खेर के आगमन के बाद व्यवस्था थोड़ी बहाल हुई, जिन्होंने भीड़ के खिलाफ कड़ा रुख दिखाया.

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देर शाम तक गेस्ट हाउस के अंदर की स्थिति धीरे-धीरे सामान्य होने लगी क्योंकि राज्यपाल कार्यालय, केंद्र सरकार और बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के दखल के बाद बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों को मौके पर भेज दिया गया.

इस घटना की कड़वी यादों के बाद मायावती ने तब इतिहास बनाया, जब वह उत्तर प्रदेश की पहली दलित मुख्यमंत्री बनीं. उनकी इस सरकार को बीजेपी ने बाहर से समर्थन दिया था.

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