10 हजार से ज्यादा ऑपरेशन करने वाले डॉ. राजीव राजपूत ने बताया कैसे रखें अपने दिल को स्वस्थ?
World Heart Day: World Heart Day 2025 पर जानें अपने दिल को स्वस्थ रखने के उपाय. प्रसिद्ध कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. राजीव राजपूत से खास बातचीत में समझें युवाओं में हृदय रोग के कारण, लक्षण, बचाव, इलाज और कोविड वैक्सीन से जुड़े मिथक.
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World Heart Day: हर साल 29 सितंबर को मनाया जाने वाला 'वर्ल्ड हार्ट डे' हमें एक पल रुककर अपने दिल के बारे में सोचने का मौका देता है. भागदौड़ भरी जिंदगी, तनाव और बदलती लाइफस्टाइल के बीच हम अक्सर अपने दिल के बारे में सोचना भूल जाते हैं, जो हमारे जीवन की धुन बनाए रखता है. पहले हृदय रोग को केवल बुजुर्गों की बीमारी माना जाता था. मगर यह बीमारी आज युवाओं को भी तेजी से अपनी चपेट में ले रही है. चलते-फिरते, नाचते-गाते या जिम में वर्कआउट करते हुए अचानक दिल का दौरा पड़ने की खबरें हमें डरा देती हैं. इन चिंताओं और सवालों के बीच यह समझना बेहद जरूरी है कि हम अपने दिल को कैसे स्वस्थ रख सकते हैं?
इस बार वर्ल्ड हार्ट डे के मौके पर यूपी Tak ने दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में सीनियर कंसल्टेंट और कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. राजीव राजपूत से खास बातचीत की है. डॉ. राजपूत के पास हृदय रोगों के इलाज का 30 साल से ज्यादा का लंबा अनुभव है. हमारे साथ खास बातचीत में उन्होंने हृदय रोगों से जुड़े हर पहलू, इलाज में आए बदलावों, कोविड वैक्सीन से जुड़े मिथकों और स्वस्थ हृदय के लिए जरूरी उपायों पर विस्तार से जानकारी दी है. खबर में आगे विस्तार से जानिए डॉ. राजपूत ने हमें क्या-क्या बताया?
सवाल: विश्व हृदय दिवस क्यों मनाया जाता है और इसका उद्देश्य क्या है?
जवाब: '29 सितंबर को विश्व हृदय दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों में हृदय की बीमारियों के बारे में जागरूकता पैदा करना है. इसका लक्ष्य यह है कि हम बीमारियों से बचाव कर सकें, समय पर उपचार करा सकें और लोगों का दिल स्वस्थ रहे. इस बार विश्व हृदय दिवस की थीम है 'Don't miss a beat' (एक भी धड़कन न चूकें) है. इसका प्रतीकात्मक अर्थ है कि आप हृदय रोगों के प्रति पूरी तरह से सावधान और जागरूक रहें. समय पर अपने टेस्ट कराएं, एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं और यह सुनिश्चित करें कि आपका दिल स्वस्थ रहे.'
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सवाल: आपने अपने 40 साल के लंबे करियर में हृदय रोगों के इलाज में क्या महत्वपूर्ण बदलाव देखे हैं?
जवाब: 'मैंने पिछले 30 से ज्यादा सालों में इस क्षेत्र में बहुत बड़ा बदलाव देखा है. जब हमने कार्डियोलॉजी में प्रशिक्षण शुरू किया था, तब हृदय रोग का सबसे आम मामला हार्ट अटैक होता था. 1994 में हम जिस तरह से इसका इलाज करते थे, वह आज के इलाज से बिल्कुल अलग है. पहले उतना कारगर ट्रीटमेंट उपलब्ध नहीं था. आज 2025 में अगर किसी मरीज को हार्ट अटैक होता है, तो हम तुरंत एंजियोग्राफी करके और एंजियोप्लास्टी और स्टेंट लगाकर उसकी बंद नस को खोल सकते हैं. इससे हृदय को होने वाले नुकसान को पूरी तरह से बचाया जा सकता है. आज से 30 साल पहले हम ऐसे मरीजों को सिर्फ दवाएं देते थे. उनके ठीक होने की उम्मीद करते थे और उन्हें बेड रेस्ट की सलाह देते थे. तब यह माना जाता था कि अगर किसी को हार्ट अटैक हो गया तो उसकी जिंदगी खत्म हो गई. लेकिन अब प्रभावी उपचार के बाद, व्यक्ति एक हफ्ते या दस दिन के भीतर अपने काम पर लौट सकता है और एक उत्पादक जीवन जी सकता है.'
सवाल: आजकल युवाओं में हृदय रोग की समस्याएं क्यों बढ़ रही हैं, इसके मुख्य कारण क्या हैं?
जवाब: 'एशियाई और विशेष रूप से भारतीय आबादी में हृदय रोग आनुवंशिक रूप से कम उम्र में होते हैं. साल 2000 के दशक में होने वाली हर मेडिकल कॉन्फ्रेंस में इस पर एक अध्याय जरूर होता था. इसके कई कारण हैं. पहला- हमारे यहां डायबिटीज बहुत आम है. दूसरा- हमारे लोगों में ट्राइग्लिसराइड्स, एचडीएल और कोलेस्ट्रॉल की समस्या अधिक होती है. तीसरा- हमारे यहां विसरल ओबेसिटी, यानी पेट का मोटापा, एक बड़ी समस्या है. इसके अलावा, हम व्यायाम कम करते हैं, धूम्रपान की आदतें ज्यादा हैं और इन सबके ऊपर आनुवंशिक कारक भी हैं जो हमें कम उम्र में हृदय रोग के प्रति अधिक संवेदनशील बनाते हैं.'
सवाल: एक आम व्यक्ति को कैसे पता चल सकता है कि उसका दिल स्वस्थ है या नहीं, किन लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए?
जवाब: 'हृदय रोग का सबसे आम लक्षण छाती में दर्द होना है. अगर आपको चलने, काम करने, सीढ़ियां चढ़ने, खासकर खाना खाने के बाद चलने या कुछ सामान उठाकर चलने पर छाती में दर्द, भारीपन या सांस फूलने की समस्या होती है तो यह हृदय रोग का लक्षण हो सकता है. इसके अलावा, बहुत अधिक कमजोरी महसूस होना, ठीक से काम न कर पाना, धड़कन बढ़ना या हाथ-पैरों में सूजन आना भी हृदय की बीमारी के लक्षण हो सकते हैं.'
सवाल: भारत में हृदय रोगों की वर्तमान स्थिति क्या है?
जवाब: 'इस समय भारत में हृदय रोगों की स्थिति बहुत खराब है. हमारे यहां हृदय की बीमारियां बहुत ज्यादा होती हैं. कम उम्र में होती हैं. जब हम लोगों की एंजियोग्राफी करते हैं तो अक्सर उनकी नसों में कई जगहों पर ब्लॉकेज मिलते हैं. इसी वजह से आपने सुना होगा कि हार्ट की समस्या होने पर डॉक्टर बाईपास सर्जरी की सलाह देते हैं. हमारे यहां बीमारी थोड़ी गंभीर किस्म की होती है. हालांकि, भविष्य अच्छा है क्योंकि विज्ञान और टेक्नोलॉजी तेजी से आगे बढ़ रही है और हम नए उपचारों को अपना रहे हैं. रोकथाम पर बहुत जोर दिया जा रहा है. लोग व्यायाम, योग और प्राणायाम के प्रति जागरूक हो रहे हैं.'
सवाल: आपने अपने करियर में अब तक लगभग कितनी प्रक्रियाएं (जैसे एंजियोग्राफी और स्टेंटिंग) की हैं?
जवाब: 'मैंने लगभग पंद्रह हजार से ज्यादा एंजियोग्राफी की हैं और लगभग दस हजार से ज्यादा लोगों के दिल में स्टेंट डाले हैं.'
सवाल: तनाव (Stress) का दिल पर कितना असर होता है और इससे कैसे बचा जा सकता है?
जवाब: 'आजकल की जीवनशैली बहुत तनावपूर्ण है. तनाव प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हृदय पर असर डालता है. अगर आप मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं हैं, तो आपको ब्लड प्रेशर, शुगर और कोलेस्ट्रॉल जैसी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है. तनाव में रहने वाले लोगों में धूम्रपान की प्रवृत्ति भी अधिक होती है. इसलिए, तनाव मुक्त रहना एक ऐसी स्थिति है जिससे सीधे तौर पर हृदय रोग का खतरा कम हो जाता है.'
सवाल: युवाओं में ब्लड प्रेशर (बीपी) की समस्या क्यों बढ़ रही है?
जवाब: 'ब्लड प्रेशर की समस्या पहले भी थी, लेकिन अब इसका निदान (diagnosis) ज्यादा हो रहा है. सोचिए 1970, 80 या 90 के दशक में ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में कितने लोग अपना ब्लड प्रेशर चेक करवाते थे? आज हमारा स्वास्थ्य ढांचा विकसित हो गया है. छोटी-छोटी जगहों पर क्लीनिक हैं जहां ब्लड प्रेशर, ईसीजी और ब्लड टेस्ट की सुविधा उपलब्ध है. तो एक तरफ तनावपूर्ण जीवनशैली के कारण यह समस्या बढ़ रही है और दूसरी तरफ बेहतर निदान के कारण इसके मामले ज्यादा सामने आ रहे हैं.'
सवाल: 'हृदय को स्वस्थ रखने में पानी की क्या भूमिका है? क्या बीपी के मरीजों को ज्यादा पानी पीना चाहिए?'
जवाब: 'चिकित्सकीय रूप से दिन में 2 से 3 लीटर तरल पदार्थ लेने की सलाह दी जाती है. यह एक मिथक है कि 6 या 8 लीटर पानी पीने से आप ज्यादा स्वस्थ रहेंगे. यह वैज्ञानिक तथ्य नहीं है. हालांकि, जिन लोगों का हृदय कमजोर होता है, जैसे किसी को हार्ट अटैक के बाद हार्ट की पंपिंग पावर कम हो गई हो, तो उन्हें पानी कम पीना चाहिए ताकि हृदय प्रभावी ढंग से पंप कर सके. जहां तक ब्लड प्रेशर का सवाल है, इसका पानी के सेवन से कोई सीधा संबंध नहीं है.'
सवाल: ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए नमक का सेवन कितना हानिकारक है? क्या सेंधा नमक एक बेहतर विकल्प है?
जवाब: 'जिन लोगों को ब्लड प्रेशर है, उन्हें नमक का सेवन बहुत कम करना चाहिए. एक सर्वे के अनुसार, हम भारतीय औसतन प्रति व्यक्ति 8 से 12 ग्राम नमक का सेवन करते हैं. जबकि हमारी वैज्ञानिक आवश्यकता केवल 2 से 3 ग्राम है. नमक से दूर रहने का सबसे सरल तरीका यह है कि खाना बनाते समय जितना नमक डाला गया है, बस उतना ही खाएं. ऊपर से सलाद, फल या रायते में नमक न डालें. सेंधा नमक और सामान्य नमक में मुख्य अंतर यह है कि सामान्य नमक में सोडियम क्लोराइड होता है और सेंधा नमक में पोटेशियम क्लोराइड. पोटेशियम क्लोराइड उतना हानिकारक नहीं होता, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप सेंधा नमक का बहुत अधिक सेवन करें.'
सवाल: एंजियोप्लास्टी और बाईपास सर्जरी क्या हैं, इनमें क्या अंतर है और ये कब की जाती हैं?
जवाब: 'हमारे हृदय में तीन मुख्य धमनियां (arteries) होती हैं. अगर इनमें ब्लॉकेज छोटा हो, उसमें कैल्शियम या क्लॉट न जमा हो और वह किसी जटिल कोण पर न हो तो उसे स्टेंट के जरिए खोला जा सकता है. स्टेंट एक धातु की रिंग जैसी संरचना होती है जिसे हम धमनी में फिट कर देते हैं. इसमें दवा भी लगी होती है ताकि दोबारा ब्लॉकेज न हो. पिछले 40 वर्षों में एक बड़ा बदलाव यह आया है कि पहले 10 में से 8-9 मरीजों को बाईपास सर्जरी की सलाह दी जाती थी, अब यह अनुपात उल्टा हो गया है. आज 80-90% मरीजों का इलाज एंजियोप्लास्टी और स्टेंटिंग से संभव है. यह एक मिथक है कि स्टेंट एक अस्थायी समाधान है; 90% से अधिक लोगों में यह एक स्थायी समाधान है.'
सवाल: स्टेंट लगाने के बाद खून के थक्के जमने का खतरा क्यों होता है और इससे बचाव कैसे किया जा सकता है?
जवाब: 'स्टेंट आखिरकार एक बाहरी वस्तु (foreign body) है जिसे आप हृदय की धमनी में लगा रहे हैं. यह एक धातु का टुकड़ा है, इसलिए इस पर खून का थक्का (clot) बन सकता है. इसीलिए हम मरीजों को स्टेंट लगाने से पहले ही जोर देकर बताते हैं कि उन्हें नियमित रूप से खून पतला करने वाली दवाएं (blood thinners) लेनी होंगी. आमतौर पर एक साल तक दो दवाएं और उसके बाद लंबे समय तक एक दवा लेनी पड़ती है ताकि स्टेंट में थक्का न जमे. ये थक्के आमतौर पर उसी धमनी को फिर से ब्लॉक करते हैं. मस्तिष्क तक इनका पहुंचना बहुत दुर्लभ है.'
सवाल: सोशल मीडिया पर यह चर्चा है कि कोविड वैक्सीन के कारण हार्ट अटैक के मामले बढ़े हैं, इसमें कितनी सच्चाई है?
जवाब: 'यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल है. मैं आपके माध्यम से यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि हमारे पास ऐसा कोई भी पुख्ता और प्रत्यक्ष सबूत नहीं है जो यह साबित करे कि कोविड या कोविड की वैक्सीन हृदय की बढ़ती बीमारियों के लिए जिम्मेदार है. यह एक मिथक है. जब आप किसी सेलिब्रिटी के हार्ट अटैक से निधन की खबर सुनते हैं, तो चीजें सनसनीखेज हो जाती हैं और लोग डर जाते हैं. लेकिन कोई यह नहीं जानता कि उनमें से कई सेलिब्रिटीज पहले से ही हृदय के मरीज थे. इसलिए कोविड वैक्सीन या कोविड बीमारी का हार्ट अटैक से कोई सिद्ध संबंध नहीं है.'
सवाल: आप हमारे पाठकों को हृदय स्वास्थ्य के लिए क्या अंतिम संदेश देना चाहेंगे?
जवाब: 'हृदय की बीमारियों का सबसे अच्छा इलाज यही है कि हम उन्हें होने से रोकें. आनुवंशिक कारकों पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है, लेकिन हम अन्य चीजों पर ध्यान दे सकते हैं-
- अगर आपको ब्लड प्रेशर, शुगर या हाई कोलेस्ट्रॉल है, तो इसका नियमित इलाज करें और इसे नियंत्रण में रखें.
- सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि धूम्रपान और किसी भी रूप में तंबाकू का सेवन बिल्कुल बंद कर दें. इसमें कोई पैसा नहीं लगता और कोई इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं चाहिए.
- शारीरिक रूप से सक्रिय रहें. हफ्ते में 150 मिनट की सामान्य एक्सरसाइज या 90 मिनट की तेज एक्सरसाइज (जैसे रनिंग) पर्याप्त है. खाना खाने के तुरंत बाद कभी व्यायाम न करें.
- मोटापा, विशेष रूप से पेट का मोटापा (विसरल ओबेसिटी) सबसे खतरनाक है. हृदय रोग और डायबिटीज की शुरुआत मोटापे से होती है. इसलिए बचपन से ही मोटापे को नियंत्रित करना बहुत महत्वपूर्ण है. हमारे यहां बच्चों को खूब खिलाकर प्यार जताने की परंपरा है, जो बिल्कुल गलत है. अगर आप वास्तव में अपने बच्चे से प्यार करते हैं तो उसके खाने को नियंत्रित करें और उसका वजन न बढ़ने दें.'
यहां देखें डॉ. राजपूत का वीडियो संदेश
कौन हैं डॉक्टर राजीव राजपूत?
आपको बता दें कि डॉ. राजीव राजपूत मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के रहने वाले हैं. डॉ. राजपूत ने बताया कि उन्होंने साल 1988 में लखनऊ के KGMU से अपना MBBS कम्प्लीट किया था. इसके बाद साल 1991 में उन्होंने KGMU से MD और साल 1994 में इसी यूनिवर्सिटी से कार्डिओलॉजी में डीएम में. डॉ. राजपूत ने बताया कि उन्होंने करीब 2 साल तक यानी साल 1996 तक KGMU में पढ़ाया भी था. इसके बाद साल 1999 तक उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में एंजियोप्लास्टी, हार्ट फेलियर और हार्ट ट्रांसप्लांटेशन जैसे विषयों पर कार्डियल ट्रेनिंग ली.
डॉ. राजीव राजपूत ने बताया कि उनकी पत्नी डॉ. सुजाता अग्रवाल गायनकोलॉजिस्ट हैं और अपलो समेत कई अस्पताल में अपनी सेवाएं दे रही हैं. डॉ. राजीव ने बताया कि उनकी बड़ी बेटी कृतिका अमेरिका में रहती हैं और उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है. इसके अलावा, उनकी छोटी बेटी मालविका भी अमेरिका में रहती हैं, जो गूगल के लिए डाटा साइंटिस्ट के तौर पर काम रही हैं.
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