विकास दुबे एनकाउंटर: SC ने योगी सरकार को दी क्लीन चिट, जांच रिपोर्ट सार्वजनिक करने को कहा

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सुप्रीम कोर्ट ने गैंगस्टर विकास दुबे और अन्य लोगों की मुठभेड़ में हुई मौत की जांच के लिए फिर से एक आयोग गठित करने समेत राहत का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर शुक्रवार को सुनवाई पूरी कर ली. शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार को पैनल की सिफारिशों के अनुसार कदम उठाने के निर्देश भी दिए.

मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने यह भी निर्देश दिया कि शीर्ष अदालत के न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) बीएस चौहान की अगुवाई वाले तीन-सदस्यीय जांच दल की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए और उसकी वेबसाइट पर अपलोड किया जाए.

बता दें कि पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की उन दलीलों पर सहमति जताई कि ‘जांच आयोग अधिनियम, 1952’ के तहत जांच आयोग ने अपना काम पूरा कर लिया है, इसकी रिपोर्ट दाखिल हो चुकी है और विधानसभा के पटल पर रख दी गई है.

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पीठ ने कहा, ‘‘जांच आयोग ने रिपोर्ट पेश कर दी है. राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा है कि रिपोर्ट को आगे की कार्रवाई के लिए सदन के पटल पर रख दिया गया है और यदि याचिकाकर्ता को फिर भी शिकायत है तो कानून के दायरे में उपाय ढूंढना ही एक रास्ता रह जाता है.”

शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा, “हम राज्य सरकार को जांच आयोग की सिफारिशों के अनुरूप उचित कार्रवाई करने का निर्देश देते हैं. रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए और सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया जाए. उपरोक्त अवलोकनों के साथ रिट (याचिकाओं) को बंद किया जाता है.”

आपको बता दें कि न्यायमूर्ति चौहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि जुलाई, 2020 में कानपुर में बिकरू कांड के बाद मुठभेड़ में गैंगस्टर दुबे और उसके गिरोह के अन्य सदस्यों की मौत संबंधी पुलिस की बात को लेकर कोई संदेह नहीं है, क्योंकि आम जन या मीडिया में से किसी भी व्यक्ति ने पुलिस के दावे का विरोध नहीं किया और न ही इसे नकारने वाला कोई सबूत दाखिल किया गया.

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गौरतलब है कि पीठ चार जनहित याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी. इनमें से सबसे पहली याचिका मुंबई के वकील घनश्याम उपाध्याय ने दायर की थी और दुबे एवं अन्य संबंधी मुठभेड़ की जांच के लिए जांच आयोग का पुनर्गठन किए जाने का अनुरोध किया था. इन याचिकाओं में अदालत की निगरानी में स्वतंत्र जांच के निर्देश देने की भी मांग की गई थी.

सुनवाई के दौरान क्या हुआ?

सुनवाई के शुरू में राज्य सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है और इसे सदन के पटल पर रखा जा चुका है, इसलिए इस मामले को बंद कर देना चाहिए.

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साल्वे ने कहा,

“मामले को बंद कर देना चाहिए. (इसमें) आरोप और प्रत्यारोप हैं. तीन-सदस्यीय जांच आयोग गठित किया गया था और इसने अपनी रिपोर्ट दे दी है. हर कोई जो कहता है उसके अनुरूप हर किसी को खुश नहीं किया जा सकता है.”

हरीश साल्वे

इन दलीलों का एक पीआईएल याचिकाकर्ता के वकील ने पुरजोर विरोध किया और कहा कि जांच आयोग ने कोई जांच नहीं की और यह ‘नृशंस हत्या’ है.

शीर्ष अदालत ने 19 अगस्त, 2020 को न्यायिक आयोग को रद्द करने का अनुरोध करने वाली याचिका खारिज कर दी थी.

सनद रहे कि कानपुर के चौबेपुर क्षेत्र के बिकरू गांव में तीन जुलाई, 2020 की रात डीएसपी देवेंद्र मिश्रा समेत आठ पुलिसकर्मियों की उस समय मौत हो गई थी, जब वे विकास दुबे को गिरफ्तार करने जा रहे थे और उन पर घात लगाकर हमला किया गया था.

पुलिस ने कहा था कि दुबे की 10 जुलाई, 2020 की सुबह पुलिस मुठभेड़ में उस समय मौत हो गई थी, जब उसे उज्जैन से कानपुर ले जा रहा पुलिस का वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और उसने घटनास्थल से भागने की कोशिश की थी.

दुबे की मुठभेड़ में मौत से पूर्व उसके पांच कथित सहयोगी अलग अलग मुठभेड़ों में मारे गए थे.

(भाषा के इनपुट्स के साथ)

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