राजा भैया का विरोध, राहुल के आंदोलन की चेतावनी! जानें वो कारण जिनकी वजह से टला नजूल विधेयक

कुमार अभिषेक

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UP Nazul Land Bill: विधानसभा के मॉनसून सत्र के आखिरी दिन विधानमंडल सत्र के दौरान एक अजीबोगरीब स्थिति पैदा हो गई. जिस नूजूल संपत्ति विधेयक को योगी सरकार ने बुधवार को ध्वनिमत से विधानसभा से पास कर लिया था. एक दिन के भीतर ही योगी सरकार उससे पीछे हटती दिखी और उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. यानी विधानपरिषद में इसे पास करने की जगह उसे प्रवर समिति को भेज दिया गया. ऐसा लगता है किसी भी भूमि संबंधी कानून को लेकर सरकार के भीतर और खासकर जनप्रतिनिधियों के अंदर खौफ घर कर गया है. यही वजह है कि विधान परिषद में जिस वक्त केशव मौर्य इस नजूल संपत्ति विधेयक को पेश कर रहे थे, उसी वक्त बीजेपी के विधान परिषद सदस्य भूपेंद्र चौधरी ने इसे प्रवर समिति में भेजने की मांग कर दी.

भूपेंद्र चौधरी ने क्या कहकर किया विधेयक को प्रवर समिति को भेजने को कहा

अपनी ही सरकार के विधेयक को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने विधान परिषद में फिलहाल उसे पर ब्रेक लगा दिया है. सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या यह बिना किसी चर्चा या मंथन के विधेयक के तौर पर विधानसभा में आया और सरकार इसके विरोध के स्तर को नहीं भांप पाई? जैसे ही केशव मौर्य ने नजूल संपत्ति विधेयक विधान परिषद में पेश किया, भूपेंद्र चौधरी एक बार फिर खड़े हुए और उन्होंने यह कहकर प्रवर समिति में भेजने की अपील की कि अभी इस मुद्दे पर पूरी सहमति नहीं है, इसलिए इसे प्रवर समिति को भेजा जाए. विधान परिषद के अध्यक्ष ने इस बात को मान लिया और इसे प्रवर समिति को भेज दिया.

 

 

प्रवर समिति नजूल संपत्ति विधेयक के भेजे जाने के साथ ही सरकार की जान में जान आई. क्योंकि विधानसभा से पारित होने के कुछ घंटे बाद ही या पता चल गया कि यह सरकार के गले की सबसे बड़ी फांस साबित होने वाला था. अपनी ही सरकार के विधायक को विधान परिषद में रोके जाने पर हंगामा मच गया. चर्चा ये चल पड़ी कि संगठन ने सरकार के फैसले को विधान परिषद में रोक दिया लेकिन अंदर की कहानी कुछ और थी.

राजा भैया समेत इन विधायकों ने किया था विरोध

जैसे ही यह विधेयक आया तभी से कई विधायक इसके खिलाफ लाम बंद होने लगे. राजा भैया ने कमान संभाली. हर्ष वर्धन वाजपेई सहित कई विधायकों ने इसका विरोध किया. प्रयागराज से विधायक और पूर्व मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने कुछ संशोधनों की मांग की और कहा कि नजूल की जमीन के लीज को बढ़ाने का प्रावधान होना चाहिए, तो सरकार ने उसे मान लिया. लेकिन 99 साल की जगह 30 साल का संशोधन तय किया गया. हालांकि सरकार और विपक्ष के विधायकों ने मुद्दे पर योगी सरकार को घेरने की पूरी तैयारी कर ली थी.

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विधायकों ने सीएम को दिया ये तर्क

बुधवार देर रात तक कई विधायकों ने मुख्यमंत्री से संपर्क साधा और दोबारा पुनर्विचार करने की मांग की. फिर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने भी इस विधेयक को लेकर अपनी आपत्तियां दर्ज कराई कि शहर दर शहर लाखों लोग इससे प्रभावित होंगे और कई लोग जो पीढ़ियों से बसे हुए हैं, उनके मकान और जमीन प्रशासन जब चाहेगा कभी भी छीन लेगा.

मुख्यमंत्री को भी लगा कि शायद जल्दबाजी में यह काम हो गया है, तो उन्होंने भी इसे ठंडे बस्ती में डालने की अनुमति दे दी. गुरुवार दोपहर में तय हो गया कि इसे विधानपरिषद से पास नहीं कराया जाएगा और इसे प्रवर समिति में भेजा जाएगा. बाकायदा इसके लिए रणनीति तय की गई. मुख्यमंत्री ने दोनों उपमुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष और संसदीय कार्य मंत्री को यह जिम्मा दिया कि सहमति बनने तक इस प्रवर समिति को भेजा जाए.

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विधानसभा में मुख्यमंत्री, दोनों उपमुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष, संसदीय कार्य मंत्री की 15 मिनट की बैठक अलग से की गई. इसमें यह तय हुआ कि केशव मौर्य इसे विधान परिषद में पेश करेंगे और भूपेंद्र चौधरी इसे प्रवर समिति में भेजने की सिफारिश करेंगे और तब सभापति से प्रवर समिति को भेज देंगे, जिससे यह कुछ दिनों के लिए ठंडे बस्ते में चला जाएगा.

 

 

सब कुछ एक लिखे हुई स्क्रिप्ट पर हुआ. विधानसभा में इसे रोक नहीं सकते थे क्योंकि अब पास हो चुका था. इसलिए विधान परिषद को प्रवर समिति में भेजने के लिए चुना गया. ऐसे में सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी .इसका क्रेडिट भी बीजेपी ले गई क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष जो कि विधान परिषद के सदस्य हैं, उनकी सिफारिश पर पूरे विधान परिषद ने एक सुर में इसे प्रवर समिति को भेज दिया.

राहुल गांधी आंदोलन के लिए हुए थे तैयार?

सवाल यह है कि क्या विधानसभा में इसे पास करने के बाद सरकार को लगा कि यह जल्दबाजी में हो गया? और जमीन का यह मुद्दा सरकार के गले की हड्डी बन जाएगा! अगर ऐसा हुआ तो फिर केशव मौर्य ने इसे पेश क्यों किया, क्या उन्हें अंधेरे में रखा गया? बहुत सारे ऐसे सवाल हैं जिस पर अब जवाब सरकार को देना होगा. मालूम हो कि कांग्रेस पार्टी ने इस पर आंदोलन की चेतावनी दी थी, कांग्रेस नेता और पूर्व एमएलसी दीपक सिंह के मुताबिक, नजूल जमीन विधेयक पर राहुल गांधी तक यूपी में आंदोलन को तैयार हो चुके थे और बीजेपी ने यह बात भांप ली थी.

 

 

हालांकि यह मुद्दा फिलहाल कुछ दिनों के लिए टल गया है, लेकिन सियासत टलती हुई नहीं दिख रही. भाजपा की सहयोगी अनुप्रिया पटेल ने ट्वीट कर लिखा कि इस नजूल संपत्ति विधेयक को तुरंत वापस लिया जाए और उन अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए जिन्होंने इस विधेयक को तैयार किया है. साफ है अब संगठन और पार्टी के नेता बड़े फैसलों में अपना हस्तक्षेप करने लगे हैं. योगी सरकार में यह पहला मौका है, जब मुख्यमंत्री क फैसले को ठंडे बस्ते में डाला गया है.

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