यूपी में जाति आधारित रैलियों पर रोक का आदेश आया पर गुर्जर चौपाल लगता है होकर रहेगी! राजकुमार भाटी ने बताई ट्रिक
उत्तर प्रदेश सरकार ने पुलिस रिकॉर्ड से जाति का जिक्र हटाने और प्रदेश में जाति आधारित रैलियों पर रोक जैसे फैसले लिए तो अब इनपर तीखी राजनीति शुरू हो गई है.
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उत्तर प्रदेश सरकार ने पुलिस रिकॉर्ड से जाति का जिक्र हटाने और प्रदेश में जाति आधारित रैलियों पर रोक जैसे फैसले लिए तो अब इनपर तीखी राजनीति शुरू हो गई है. पहले समाजवादी पार्टी के चीफ अखिलेश यादव ने परोक्ष रूप से योगी सरकार के फैसले पर सवाल उठाए और एक्स पर इसे लेकर पोस्ट किया. अखिलेश यादव ने उनके सीएम आवास खाली करने के बाद उसे कथित तौर पर धुलवाने के आरोपों को याद दिलाते हुए लिखा कि 5000 सालों से मन में बसे जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए क्या किया जाएगा? इन सबके बीच समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और सपा प्रवक्ता राजकुमार भाटी की सक्रियता में होने वाली गुर्जर चौपालों को लेकर चर्चा शुरू हुई कि आखिर जाति आधारित कार्य़क्रम पर रोक के बाद ये कैसे होंगी. अब राजकुमार भाटी ने इसका नया तरीका निकाला है और बकायदा एक्स पर पोस्ट कर इसकी जानकारी दी है.
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में जाति आधारित रैलियों पर सरकार की सख्त रोक के बाद, प्रदेश में चल रही 'गुर्जर चौपाल' चर्चा में है. हाईकोर्ट के आदेश के चलते प्रदेश सरकार ने पुलिस रिकॉर्ड्स से जातिगत पहचान हटाने, सार्वजनिक स्थलों व वाहनों पर जाति-आधारित नाम/स्लोगन के इस्तेमाल पर रोक, और सोशल मीडिया पर जाति गौरव/हेट कंटेंट की निगरानी व नियंत्रण के आदेश जारी किए हैं. शासन ने स्पष्ट कहा है कि प्रदेश में राजनीतिक या सार्वजनिक मकसद से जाति-आधारित रैली, सभा या आयोजन नहीं होंगे.
राजकुमार भाटी की नई रणनीति जान लीजिए
इस लगातार बढ़ती कानूनी सख्ती के बीच समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और प्रवक्ता राजकुमार भाटी ने सोशल मीडिया पर एक रणनीति साझा की है. भाटी ने आग्रह किया है कि अब आयोजनकर्ताओं को 'गुर्जर चौपाल' की जगह 'पीडीए चौपाल' नाम देना चाहिए, ताकि कानून और प्रशासन से टकराव न हो और कार्यक्रम बिना रुकावट पूरे किए जा सकें. भाटी ने यह भी साफ किया कि आंदोलन का मकसद टकराव नहीं, बल्कि शांति और जनजागरण है. राजकुमार भाटी के इस एक्स पोस्ट को यहां नीचे देखा जा सकता है.
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क्या गुर्जर समाज की राजनीतिक जागरूकता से डर गई उत्तर प्रदेश सरकार: राजकुमार भाटी
राजकुमार भाटी योगी सरकार के इस नए फैसले पर सवाल भी उठा चुके हैं. उन्होंने एक और एक्स पोस्ट में लिखा कि क्या गुर्जर समाज की राजनीतिक जागरूकता से डर गई उत्तर प्रदेश सरकार? भाटी ने इस पोस्ट में लिखा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से भाजपा पहले खुद अपने लखनऊ कार्यालय में अलग-अलग जातियों की बैठक करा चुकी है. उन्होंने इस पूरे फैसले को गुर्जर पंचायतों से जोड़कर सीएम योगी से पूछा है कि, 'योगी जी, आपकी कोप दृष्टि गुर्जर समाज की ओर ही क्यों उठती है ?' राजकुमार भाटी के इस पोस्ट को यहां नीचे देखा जा सकता है.
मेरठ में गुर्जर चौपाल के बाद हुई गिरफ्तारी
उधर, मेरठ में हाल ही की गुर्जर चौपाल में बवाल के बाद 22 लोगों की गिरफ्तारी का मामला भी सामने आया है. आपको बता दें कि रविवार को मेरठ के दौराला थाना क्षेत्र के दादरी गांव में बिना अनुमति के गुर्जर महापंचायत करने के दौरान हंगामा हो गया. यहां पुलिस ने पहुंच कर भीड़ को खदेड़ दिया और कई को हिरासत में ले लिया. इस पंचायत में मेरठ सहित सहारनपुर ,नोएडा, मुजफ्फरनगर और पश्चिम उत्तर प्रदेश के आसपास के जिलों के गुर्जर नेता पहुंचने थे. पंचायत में गुर्जरों के हक, चुनावी टिकटों की भागीदारी जैसे तमाम मुद्दों पर बातचीत होनी तय हुई थी.
रिपोर्ट के मुताबिक आयोजन को प्रशासन की अनुमति नहीं मिली थी. गुर्जर समाज के नेताओं और लोगों ने बिना अनुमति के रविवार को थाना दौराला के दादरी में पंचायत का आयोजन किया. पंचायत शुरू होते ही पुलिस की मौके पर पहुंची और वहां लाठी फटकार कर भीड़ को खदेड़ दिया.
यूपी सरकार के नए आदेश को यहां नीचे समझिए
हाल में यूपी शासन ने कानूनी और प्रशासनिक रिकॉर्ड्स, एफआईआर, गिरफ्तारी मेमो, सार्वजनिक बोर्ड्स और वाहनों से जातीय पहचान हटाने का निर्देश दिया है. दावा किया जा रहा है कि ऐसा फैसला इसलिए लिया गया ताकि समाज में जातिगत भेदभाव खत्म किया जा सके. इस पूरे फैसले की महत्वपूर्ण बातों को नीचे समझा जा सकता है-
⦁ उत्तर प्रदेश सरकार ने सभी पुलिस रिकॉर्ड्स, एफआईआर, गिरफ्तारी मेमो, अदालतों और सार्वजनिक बोर्ड्स पर किसी भी व्यक्ति/अभियुक्त की जाति दर्ज या प्रदर्शित करने पर तत्काल रोक लगा दी है.
⦁ राज्य का क्राइम ट्रैकिंग सिस्टम (CCTNS) अब जाति वाले कॉलम हटाएगा या फिलहाल उसे खाली रखेगा.
⦁ पहचान साबित करने के लिएमाता-पिता दोनों के नाम पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज होंगे.
⦁ वाहनों पर जाति-आधारित स्टिकर/नारे का दिखना जुर्माना योग्य अपराध होगा.
⦁ थानों, शहर के बोर्ड, बैनर व अन्य सार्वजनिक स्थलों से जाति-गौरव वाले प्रतीकों/स्लोगन हटाने का आदेश है.
⦁ सोशल मीडिया पर जाति उपासना/हेट कंटेंट की लगातार निगरानी होगी, ऐसे कंटेंट पर कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी.
⦁ जाति-आधारित रैलियां, समारोह, राजनीतिक भीड़ अब प्रदेश में बैन कर दी गईं हैं.
योगी सरकार नए आदेशों के पीछे संदेश देने की कोशिश कर रही है कि जाति-आधारित सार्वजनिक प्रदर्शन, पहचान और राजनीतिक ईवेंट्स से राज्य में सामाजिक समरसता और शांति को खतरा है. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सरकार के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि मन, पहनावे, व्यवहार में बसी जातिगत सोच को मिटाने के लिए क्या ठोस कोशिशें होंगी? उनका कहना है कि सिर्फ रिकॉर्ड और बैनर से नहीं, बल्कि मानसिकता से जातिवादी भेदभाव मिटाना जरूरी है. अखिलेश ने जो सवाल उठाए हैं, उन्हें नीचे देखा जा सकता है.