RSS-BJP पर हमला! ये कवायद सिर्फ मुस्लिम वोटों के लिए या पुराने फॉर्म में लौट रहीं मायावती?

अमीश कुमार राय

• 06:25 PM • 22 Oct 2022

Mayawati news: धनतेरस और दिवाली की तैयारियों में डूबे लोगों के लिए यूपी की राजनीति में शनिवार को कुछ ऐसा हुआ, जिसको लेकर काफी दिनों…

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Mayawati news: धनतेरस और दिवाली की तैयारियों में डूबे लोगों के लिए यूपी की राजनीति में शनिवार को कुछ ऐसा हुआ, जिसको लेकर काफी दिनों से तमाम चर्चाएं हो रही थीं. शनिवार को बीएसपी सुप्रीमो मायावती न सिर्फ अपने पुराने अंदाज में राजनीति के मैदान में एक्टिव दिखाई दीं, बल्कि ट्विटर पर बहनजी की कुछ नई तस्वीरें भी दिखाई पड़ीं. असल में मौका था लखनऊ में बसपा के एक सम्मेलन का. मायावती ने पार्टी के वरिष्ठ अधिकारियों का यह राज्य स्तरीय एक दिवसीय सम्मेलन प्रदेश के आगामी स्थानीय निकाय चुनावों की तैयारी के लिए बुलाया था. हालांकि इस सम्मेलन के बाद बीएसपी ने जो वक्तव्य जारी किया उसकी कुछ बातें गौर करने लायक थीं. मसलन मायावती का संघ-बीजेपी पर निशाना साधना और सपा-कांग्रेस पर वार न करना.

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पिछले विधानसभा चुनावों के पहले से लेकर अबतक, ऐसा अक्सर देखने में आया था कि लगातार समाजवादी पार्टी और कांग्रेस मायावती के निशाने पर रहे. मायावती ने पिछले दिनों में जब भी राजनीतिक टिप्पणियां की, तो बीजेपी के साथ सपा-कांग्रेस को भी खास तौर से निशाने पर लिया. ऐसे भी आरोप दूसरी पार्टियों की तरफ से आए कि मायावती बीजेपी से फ्रेंडली फाइट कर रही हैं. खासकर आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव के दौरान विपक्ष के खेमे से मायावती को लेकर आवाजें उठीं. पर शनिवार को मायावती का एक दूसरा रूप नजर आया. ऐसे में सवाल लाजिमी है कि क्या यह बदला-बदला रूप मुस्लिम वोटों के लिए है, या मायावती ने अब 2024 के लिए सधी चाल से चलना शुरू कर दिया है.

पहले जान लीजिए कि बीएसपी की तरफ से जारी बयान में क्या कहा गया

पूर्व सीएम मायावती के ट्विटर हैंडल से राज्य स्तरीय सम्मेलन की एक रिलीज ट्वीट की गई है. इस रिलीज में दो तीन पॉइंट अहम हैं. एक तो मायावती ने इस बार बीजेपी और आरएसएस पर सीधा हमला बोला. बीएसपी सुप्रीमो ने अपने भाषण में कहा कि जब देश में प्रचंड महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी, हिंसा और तनाव है, तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) जनसंख्या निति और धर्मांतरण का ‘बेसुरा’ राग अलाप रहा है. मायावती ने आरोप लगाया कि यह भाजपा सरकार की विफलता पर से ध्यान बंटाने की सोची समझी रणनीति है.

आपको बता दें कि गुरुवार को प्रयागराज में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ की मुलाकात हुई थी. ऐसी जानकारी बाहर आई कि जयपुरिया स्कूल के वात्सल्य परिसर में हुई इस मुलाकात में जनसंख्या असंतुलन, धर्मांतरण समेत कई मुद्दों पर चर्चा हुई. इस मुलाकात के दौरान संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले और दूसरे पदाधिकारी भी मौजूद रहे. इससे पहले होसबोले भी बुधवार को बयान दे चुके थे कि मतांतरण और बांग्लादेश से घुसपैठ की वजह से जनसंख्या असंतुलन हो रहा है और धर्म परिवर्तनरोधी कानूनों को सख्ती से लागू किए जाने की जरूरत है.

माना जा रहा है कि बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने संघ और बीजेपी की तरफ से सामने आ रही ऐसी ही चर्चाओं को लेकर इनपर निशाना साधा है. पर मायावती की इस आक्रामकता का असली मकसद क्या है?

कहीं मायावती को मुस्लिम वोटों की तो चिंता नहीं?

यूपी की राजनीति में इस बार मुस्लिम वोट को लेकर गजब की सियासत देखने को मिल रही है. विपक्षी पार्टियों को तो छोड़ ही दीजिए, बीजेपी ने भी पिछले दिनों लखनऊ में पसमांदा मुस्लिमों (Uttar Pradesh Pasmanda Muslim voters) को लेकर सम्मेलन कर दिया. आपको बता दें कि बुधवार, 19 अक्टूबर को कांग्रेस छोड़कर सपा में शामिल हुए पश्चिमी यूपी के नेता इमरान मसूद (Imran Masood news) बीएसपी में शामिल हुए. तब मायावती ने ट्वीट कर कहा कि इमरान मसूद को पश्चिमी यूपी बीएसपी का संयोजक बनाकर वहां पार्टी को हर स्तर पर मज़बूत बनाने और खासकर अकलीयत समाज को पार्टी से जोड़ने की भी विशेष ज़िम्मेदारी सौंपी गई है.

अब ऐसे में सवाल यह है कि मायावती जिस तरह से संघ और बीजेपी पर हमलावर हुई हैं, तो क्या वह मुस्लिम वोटर्स को कोई संदेश देना चाह रही हैं? हमने इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार सैयद कासिम से उनकी राय जाननी चाही. सैयद कासिम ने बताया कि जाहिर तौर पर मायावती के इस हालिया सियासी कदम का एक लक्ष्य यह भी है. उन्होंने कहा कि इमरान मसूद के बाद कई और कद्दावर नेता बीएसपी में शामिल होने वाले हैं. इसके अलावा दूसरी ओबीसी जातियों के भी कुछेक बड़े नेता बीएसपी का दामन थामने की फिराक में हैं. सैयद कासिम ने कहा कि मायावती ने सम्मेलन में मौजूद नेताओं को छोटी-छोटी कैडर मीटिंग करने को कहा है. कैडर मीटिंग का यह फॉर्मेट कांशीराम स्टाइल है, जिसे मायावती फिर फॉलो करने को कह रही हैं. सैयद कासिम का मानना है कि मायावती ने इसी बहाने पर 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए बिसात बिछाने की शुरुआत कर दी है और उनकी पूरी कोशिश है कि बीजेपी के विरोध का केंद्र वो और उनकी पार्टी हो.

क्या मायावती की सक्रियता बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता को मजबूत करेगी? हमने इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए यूपी पत्रकार एसोसिएशन के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार, टिप्पणीकार हेमंत तिवारी का रुख किया. हेमंत तिवारी लंबे समय से यूपी की राजनीति को समझ रहे हैं. उन्होंने कहा कि मायावती के हालिया कदम को लेकर अभी ऐसी कोई राय नहीं दी जा सकती कि वह विपक्ष का हाथ मजबूत करने वाली हैं.

हेमंत तिवारी ने कहा कि मायावती अपने निजी हितों को पहले ध्यान में रखेंगी और अभी का उनका लक्ष्य बीएसपी को एक बार फिर चर्चाओं में वापस लेकर आना है. हेमंत तिवारी ने 2019 के लोकसभा चुनावों को याद करते हुए बताया कि तब भी किसी को अंदाजा नहीं था कि मायावती अचानक दो दशकों पुरानी दुश्मनी भुला सपा के साथ आ जाएंगी. पर उन्होंने ऐसा किया और यह उनके लिए फायदे का सौदा रहा. उनकी पार्टी शुन्य से 10 सांसदों वाली हो गई. इसीलिए अभी मायावती के सियासी कदमों पर जल्दबाजी में कोई नहीं बनाई जा सकती.

बहरहाल, चाहे जो हो, फिलहाल स्थानीय निकाय चुनावों को लेकर ही सही, मायावती ने सियासी जंग का ऐलान जरूर कर दिया है. जिस तरह से मुस्लिम वोटों को लेकर यूपी में सियासी घमासान नजर आ रहा है, मायावती भी इसमें अपनी हिस्सेदारी से चूकना नहीं चाहेंगी. इमरान मसूद जैसे नेताओं का बीएसपी में शामिल होना शायद इसी ओर इशारा कर रहा है. यूपी में मुस्लिम मतदाताओं ने 2022 के विधानसभा चुनावों में अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी का अभूतपूर्व साथ दिया है.

अब अगर मुस्लिम वोटर्स में दूसरी पार्टियों की सेंधमारी होती है, तो यह अखिलेश के लिए ज्यादा चिंता की बात होगी. अखिलेश यादव फिलहाल पिता मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav news) के निधन के बाद संस्कारों को पूरा कर रहे हैं. लेकिन मौसम में ठंड बढ़ने के साथ-साथ यूपी में भी जिस तरह से सियासी मौसम बदल रहा है, उसे देख यह जरूर लगता है कि अखिलेश यादव को भी पितृशोक के दौरान ही खुद को मजबूत कर जल्द ही राजनीति की पिच पर उतरना पड़ेगा.

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