Varanasi News: ये किसी खुशखबरी से कम नहीं है कि वाराणसी की लोकप्रिय और लंका क्षेत्र में रविदास गेट के सामने चाची कचौड़ी की दुकान एक बार फिर से शुरू हो गई है. इसके बाद से उन सभी स्वाद के शौकीनों में खुशी की लहर है, जो चाची की कचौड़ी के स्वाद के मुरीद थे. मालूम हो कि दो दिनों पहले सड़क चौड़ीकरण को लेकर चाची कचौड़ी की दुकान समेत पहलवान लस्सी और कुल 35 दुकान जमींदोज कर दी गई थीं, क्योंकि 6 लेन सड़क बननी है. चाची कचौड़ी की दुकान के टूट जाने से उनके चाहने वाले काफी मायूस हो गए थे, लेकिन अब एक बार फिर ठीक पुरानी दुकान यानि मलबे के सामने चाची कचौड़ी की दुकान खुल जाने से लोगों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी है.
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बनारस की एक विरासत के तौर पर खानपान की पुरानी और ऐतिहासिक दुकानों को भी देखा जाता है. उन्हीं में से एक लंका क्षेत्र के रविदास गेट के ठीक सामने चाची कचौड़ी की दुकान भी 110 साल पुरानी चली आ रही थी. इस दुकान की खासियत यह थी कि इसमें चाची अपने हाथों से जहां गरमा-गरम कचौड़ी और जलेबी परोसती थीं, तो वहीं उनके मुंह से गालियों की भी बौछार ग्राहकों पर हुआ करती थी. जिससे लोग बुरा नहीं मानते थे, बल्कि उसे एक आशीर्वाद के तौर पर लेते थे.
मगर, 17 जून की देर रात रामलीला मैदान में चाची कचौड़ी और पहलवान लस्सी की दुकानों के समेत कुल 35 दुकानों को पीडब्ल्यूडी की ओर से बुलडोजर चलाकर जमींदोज कर दिया गया. क्योंकि वाराणसी के लहरतारा से लेकर लंका होते हुए भेलूपुर तक फोरलेन और सिक्स लेन की रोड बननी है. बुलडोजर की कार्रवाई के बाद चाची कचौड़ी के स्वाद के दीवाने काफी मायूस और निराश हो गए थे, लेकिन ये मायूसी इस इसलिए ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सकी क्योंकि चाची कचौड़ी की दुकान ठीक मलबे के सामने फिर से खुल गई है.
दरअसल, यहां पहले चाची कचौड़ी की दुकान का कारखाना हुआ करता था, जिसमें कचौड़ी तैयारी हुआ करती थीं, लेकिन अब इसका इस्तेमाल दुकान के तौर पर भी होना शुरू हो गया है. दुकान का स्थान बदल जाने से उनके चाहने वालों में कमी नहीं आई है. आज भी काफी संख्या में लोग चाची कचौड़ी का लुत्फ लेने पहुंचे और शासन प्रशासन को जमकर कोसा भी. साथ ही उचित मुआवजे और दुकानदारों को पुनर्स्थापित करने की भी मांग की.
वहीं, चाची कचौड़ी के बेटे कैलाश यादव जो इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं, उन्होंने बताया कि 'अभी कुछ दिन नए स्थान पर एडजस्टमेंट करने में लगेगा.' उन्होंने बताया कि उनको अभी तक ना तो मुआवजे की राशि और ना ही पुनर्वास करने के बारे में किसी ने आश्वासन दिया है. दुखी मन से उन्होंने यह भी बताया कि तमाम हस्तियां और बड़े-बड़े नेता और राजनेता उनके यहां कचौड़ी तो खाने आते थे, लेकिन किसी ने एक फोन तक करके हाल-चाल नहीं लिया, जब उनकी दुकान टूट रही थी.
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