प्रयागराज के माघ मेले को मिला इसका पहला Logo, जानिए इसमें क्या है खास

2025 के महाकुंभ के बाद आयोजित हो रहे माघ मेले को योगी सरकार मिनी कुंभ की तर्ज पर पेश कर रही है. यही वजह है कि माघ मेले के इतिहास में पहली बार मेले का 'लोगो' जारी किया गया है.

Magh Mela

पंकज श्रीवास्तव

12 Dec 2025 (अपडेटेड: 12 Dec 2025, 11:23 AM)

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Magh Mela Logo: संगम की रेती पर 3 जनवरी 2026 से माघ मेले की शुरुआत होने जा रही है. प्रदेश की योगी सरकार लगातार सनातन धर्म से जुड़े मेलो को दिव्य और भव्य बनाने में जुटी है. 2025 के महाकुंभ के बाद आयोजित हो रहे माघ मेले को योगी सरकार मिनी कुंभ की तर्ज पर पेश कर रही है. यही वजह है कि माघ मेले के इतिहास में पहली बार मेले का 'लोगो' जारी किया गया है. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने मेले के दर्शन तत्त्व को दर्शाने वाले 'लोगो' को जारी किया है. इस 'लोगो' में तीर्थराज प्रयाग, संगम की तपोभूमि को दिखाया गया है. यह 'लोगो' मेला प्राधिकरण द्वारा आबद्ध किए गए डिजाइन कंसल्टेंट अजय सक्सेना एवं प्रागल्भ अजय द्वारा डिजाइन किया गया.

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ज्योतिषीय गणना के अनुसार माघ मास में संगम की रेती पर अनुष्ठान करने की महत्वता को समग्र रूप से दर्शाया गया है. ज्योतिषीय गणना के अनुसार माघ मेले का यह 'लोगो' सूर्य, चंद्रमा एवं नक्षत्रों की स्थितियों को प्रतिबिंबित करता है. भारतीय ज्योतिषीय गणना के अनुसार चंद्रमा 27 नक्षत्रों की परिक्रमा लगभग 27.3 दिनों में पूर्ण करता है. माघ मेला इन्हीं नक्षत्रीय गतियों के अत्यंत सूक्ष्म गणित पर आधारित है. जब सूर्य मकर राशि में होता है और पूर्णिमा के दिन चंद्रमा माघी या अश्लेषा-पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्रों के समीप होता है. तब माघ मास बनता है और उसी काल में माघ मेला आयोजित होता है.

ज्योतिषविदों के मुताबिक चंद्रमा की 14 कलाओं का संबंध मानव जीवन, मनोवैज्ञानिक ऊर्जा और आध्यात्मिक साधना से माना गया है. माघ मेला चंद्र-ऊर्जा की इन कलाओं के सक्रिय होने का विशेष काल भी है. अमावस्या से पूर्णिमा की ओर चंद्रमा की वृद्धि (शुक्ल पक्ष) साधना की उन्नति के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी गई है. माघ स्नान की तिथियां चंद्र कलाओं के अत्यंत सूक्ष्म संतुलन पर चुनी जाती हैं. माघ महीने की ऊर्जा (शक्ति) अनुशासन, भक्ति और गहन आध्यात्मिक कार्यों से जुड़ी होती है. क्योंकि यह महीना पवित्र नदियों में स्नान, दान, तपस्या और कल्पवास जैसे कार्यों के लिए विशेष माना जाता है.

ऐसी मान्यता है कि इस माह में किए गए कार्य व्यक्ति को निरोगी बनाते हैं और उसे दिव्य ऊर्जा से भर देते हैं. प्रयागराज का अविनाशी अक्षयवट जिसकी जड़ों में भगवन ब्रह्मा जी का, तने में भगवन विष्णु जी का एवं शाखाओं और जटाओं में भगवन शिव जी का वास है. उसके दर्शन मात्र से मोक्ष मार्ग सरल हो जाता है. इसी कारण कल्पवासियों में उसका स्थान अद्वितीय है. सनातन धर्म के अनुसार मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति है. इसलिए महात्मा का चित्र इस देव भूमि में सनातनी परम्परा को दर्शाता है. जहां चिर काल से ऋषि-मुनि आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए आते रहे हैं.

माघ मास में किए गए पूजन एवं कल्पवास का पूर्ण फल संगम स्नान के उपरांत श्री लेटे हुए हनुमान जी के दर्शन से प्राप्त होता है. माघ मेले के 'लोगो' पर उनके मंदिर एवं पताका की उपस्थिति माघ मेले में किए गए तप की पूर्णता: की व्याख्या करता है. संगम पर साइबेरियन पक्षियों की उपस्थिति यहां के पर्यावरण की विशेषता को दर्शाता है. 'लोगो' पर श्लोक "माघे निमज्जनं यत्र पापं परिहरेत् तत:" का अर्थ है माघ के महीने में स्नान करने से सभी पाप मुक्ति हो जाती है. योगी सरकार द्वारा पहली बार जारी किए गए माघ मेले के 'लोगो' का साधु संतों और तीर्थ पुरोहितों ने भी स्वागत किया है. साधु संतों और तीर्थ पुरोहितों ने योगी सरकार की इस सराहनीय पहल बताया है.उनका कहना है कि 'लोगो' जारी होने से माघ मेले का जहां और अधिक प्रचार प्रसार होगा. वहीं इसकी दिव्यता और भव्यता पूरे देश और दुनिया में बढ़ेगी.

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