अखिलेश-डिंपल मैरिज एनिवर्सिरी: दोस्त के घर मिले, पहली नजर का प्यार हुआ, कहानी पूरी फिल्मी

अमीश कुमार राय

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Akhilesh-Dimple Marriage Anniversary: सियासत दिखती कठोर है लेकिन इसे करने वाले दिल तो आम इंसान की तरह कोमल ही होते हैं. एक आम इंसान की जिंदगी में जिस तरह प्रेम की आमद होती है, नेताओं की कहानी भी इससे कोई अलहदा नहीं होती. ऐसी ही एक प्यारी, मासूम सी कहानी है डिंपल और अखिलेश यादव की. आज जब डिंपल यादव मैनपुरी उपचुनाव में नेताजी मुलायम सिंह यादव की सियासी विरासत को बचाए रखने के लिए मैदान में हैं, तो उनके पति अखिलेश यादव भी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर गली-गली प्रचार करने उतरे हुए हैं. आज का दिन एक मायने में खास इसलिए है क्योंकि ये अखिलेश और डिंपल की मैरिज एनिवर्सिरी यानी शादी की सालगिरह भी है. 24 नवंबर 1999 को ये प्यारा कपल शादी के बंधनों में बंधा था. आज सियासत से इतर हम आपको इनके प्रेम की पूरी कहानी बताते हैं.

अखिलेश और डिंपल की पहली नजर के पहले प्यार वाली कहानी

मौसम भले सर्द हो चुका है लेकिन प्रेम का जिक्र होते ही गुनगुनी गर्माहट महसूस की जा सकती है. तो आइए अखिलेश और डिंपल की इस कहानी को शुरू से शुरू करते हैं. इस कहानी को सुनाने के लिए हमारा रिफ्रेंस है संजय लाठर की किताब ‘समाजवाद का सारथी’.

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बात 90 के दशक की है. अखिलेश मैसूर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर लखनऊ लौट चुके थे. वहीं प्रदेश और देश की सियासत में मुलायम सिंह यादव का जलवा स्थापित हो चुका था. अखिलेश ने आगे पर्यावरण विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएशन का मन बनाया था. लेकिन कहां से पढ़ाई करनी है, ये अभी तय नहीं था. लखनऊ में अपना खाली वक्त अखिलेश दोस्तों के साथ बिताते थे. ऐसा ही कोई एक दिन था जब अखिलेश लखनऊ के कैंट इलाके में रहने वाले एक दोस्त के घर गए थे.

दोस्त के घर दिखी एक सिंपल सी लड़की

दोस्त के घर अखिलेश की मुलाकात एक सिंपल, सौम्य लड़की से हुई. दोनों की नजरें मिलीं और आंखों ने अपनेपन को तलाश लिया. लड़की के पिता सेना में अफसर थे और अखिलेश भी मिलिट्री स्कूल से पढ़ाई कर चुके थे. अखिलेश की सादगी लड़की को भा गई. पहली मुलाकात ही दोस्ती में बदल गई. ये लड़की थीं डिंपल, जो उस वक्त लखनऊ में ही पढ़ाई कर रही थीं. उनके घर में आर्मी का अनुशासन था और सियासत से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं.

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पहली मुलाकात की दोस्ती प्रगाढ़ होने लगी और दोनों के बीच प्रेम का अंकुर फूट पड़ा. इनके प्रेम का संघर्ष लंबा चला. अखिलेश नेताजी के बेटे थे और किसी संबंध को छिपाए रखना कठिन था. इसके बीच पिता के सियासी रसूख का ख्याल रखते हुए अखिलेश की डिंपल से मुलाकातें होने लगीं. इसी बीच अखिलेश आगे की पढ़ाई के लिए ऑस्ट्रेलिया चले गए. प्रेम की पाती लखनऊ से सिडनी आने जाने लगी. तबतक दोनों के प्रेम का पता घरवालों को नहीं था.

सिडनी से लौटे अखिलेश तो पड़ने लगा शादी का दबाव

अखिलेश अपनी पढ़ाई पूरी कर सिडनी से लौट आए. अब उनपर शादी करने का दबाव बनने लगा. यह वो वक्त था जब उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने की मांग उठने लगी थी. नेताजी और समाजवादी पार्टी अलग राज्य के पक्ष में नहीं थी. इस बीच एक दिन नेताजी ने अखिलेश से सीधे ही पूछ लिया कि बर्खुरदार शादी को लेकर क्या ख्याल है. अखिलेश असमंजस में क्या कह पाते. कह बैठे कि जो आप ठीक समझें.

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जैसी दादियां होती हैं, अखिलेश के प्रेम में भी मिला बुजुर्ग दादी मां का साथ

अखिलेश इस टेंशन में कि पिता को प्रेम के बारे में कैसे बताएं. उनके दिमाग में एक आइडिया आया. वे भागकर अपनी दादी मुरती देवी के पास पहुंचे. उस वक्त दादी बीमार थीं और लखनऊ में ही मुलायम सिंह यादव के साथ रहती थीं. दादी बेसब्री से चाह रही थीं कि पोते के सिर पर सेहरा बंधे. अखिलेश ने दादी को अपनी प्रेम कहानी सुनाई और बुजुर्ग ने आशीर्वाद, दुआओं की बौछार कर दी. दादी के जरिए आखिरकार यह बात मुलायम सिंह यादव के कानों तक पहुंच ही गई.

लालू यादव भी चाहते थे अखिलेश को दामाद बनाना

एक पेच और था. उस समय देश और बिहार की सियासत के कद्दावर नेता लालू प्रसाद यादव भी अपनी बेटी का रिश्ता अखिलेश से करना चाहते थे. लालू ने यह संदेश मुलायम सिंह यादव को भिजवाया. संयोग ऐसा था कि तबतक नेताजी को अखिलेश की प्रेम कहानी का पता नहीं था. लालू के प्रस्ताव को लेकर नेताजी गंभीर थे. इसी क्रम में उन्हें अखिलेश और डिंपल के बारे में पता चला. डिंपल यादव का परिवार उत्तराखंड से था. उत्तराखंड को लेकर उग्र होती सियासत और लालू का प्रस्ताव, मुलायम पशोपेश में थे.

पर पिता का दिल तो पिता का ही दिल होता है

मुलायम सिंह यादव भले सियासत के पहलवान थे लेकिन दिल तो उनके अंदर भी पिता का ही था. लालू को सूचना भिजवा दी गई कि अखिलेश ने अपने लिए लड़की पसंद कर रखी है. उस वक्त नेताजी केंद्र में रक्षामंत्री थे. एक दिन पिता और पुत्र साथ बैठे थे. इस बीच फोन बज उठा. अखिलेश ने फोन उठाया और सामने वाले शख्स को नमस्ते अंकल बोलकर पिताजी की तरफ फोन बढ़ा दिया. अखिलेश ने मुलायम से कहा कि आपके लिए बरेली से फोन है और कर्नल अंकल आपसे बात करना चाहते हैं. ये कर्नल अंकल थे डिंपल के पिताजी एससी रावत. नेताजी ने हाल चाल लिया और तुरंत कहा कि कर्नल साहब आप कल सपरिवार लखनऊ घूम आइए.

फिर नेताजी अखिलेश से बोले कि कर्नल साहब फैमिली के साथ आ रहे हैं, देखना स्वागत में कोई कमी न रह जाए. शायद पिता यह कहते हुए मन ही मन मुस्कुरा भी रहे होंगे.

आखिरकार कर्नल साहब परिवार संग लखनऊ पहुंचे. नेताजी खुद आगवानी करने के लिए खड़े थे. कर्नल रावत ने अपनत्व देख मुलायम सिंह यादव के सामने बेटी की शादी का जिक्र किया. नेताजी भी कर्नल रावत की इज्जत रखना चाहते थे. उन्होंने बड़प्पन दिखाते हुए कहा कि आप बेटी की शादी के लिए चिंतित हैं, तो मैं बेटे की शादी के लिए. अगर आपकी इजाजत हो, तो क्यों न हम दोनों समधी बन जाएं? भावुक माहौल में रजामंदी तो होनी ही थी.

नेताजी ने तब लोहिया की शपथ का किया जिक्र

संजय लाठर की किताब ‘समाजवाद का सारथी’ के मुताबिक मुलायम सिंह यादव ने कर्नल साहब के सामने अपनी शपथ का जिक्र किया. दरअसल मुलायम डॉक्टर राममनोहर लोहिया के शिष्य थे. उन्होंने मुलायम को शपथ दिलाई थी कि वे अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा देंगे और दहेज का विरोध करेंगे. नेताजी ने कर्नल साहब से कहा कि मुझे कुछ नहीं चाहिए. मैं और अखिलेश दहेज विरोधी हैं. कर्नल साहब भावुक हो गए. नेताजी ने उसी वक्त अपने निजी सचिव जगजीवन राम को बुलाकर कहा कि अखिलेश और डिंपल की शादी तय हो गई है.

जगजीवन राम को कहा गया कि फौरन फोन कर अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव को परिवार समेत बुलाया जाए. सैफई से बाकी लोगों को आने में वक्त लगता. उसी दिन शाम को एक छोटा समारोह आयोजित किया गया और अखिलेश-डिंपल ने एक दूसरे को अंगूठी पहना दी. इस तरह सगाई संपन्न हो गई. आखिरकार लंबे प्रेम संबंध के बाद 24 नवंबर 1999 को अखिलेश और डिंपल की शादी हो गई. उस वक्त अखिलेश 25 साल के थे और डिंपल 21 साल की. इस तरह से इस जोड़ी ने आज अपनी 23वीं शादी की सालगिरह मनाई है.

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