पहले ‘अब्बा जान’ का तंज, अब मुलायम को मिला पद्म विभूषण, क्या ये सब 2024 के लिए किया?
UP Political News: 74वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर सरकार ने जब पद्म पुरस्कारों का ऐलान किया, तो लिस्ट को देखकर सब चौंक गए.…
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UP Political News: 74वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर सरकार ने जब पद्म पुरस्कारों का ऐलान किया, तो लिस्ट को देखकर सब चौंक गए. इस लिस्ट में समाजवादी पार्टी के दिवंगत नेता मुलायम सिंह यादव का भी नाम था और उन्हें पद्म विभूषण देने का ऐलान किया गया था. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पद्म पुरस्कार, अर्थात पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री, देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से हैं. 1954 में स्थापित, इन पुरस्कारों की घोषणा हर साल गणतंत्र दिवस के अवसर पर की जाती है. ये पुरस्कार कला, साहित्य एवं शिक्षा, खेल, चिकित्सा, सामाजिक कार्य, विज्ञान और इंजीनियरिंग, सार्वजनिक कार्य, सिविल सेवा, व्यापार और उद्योग आदि क्षेत्रों/विषयों में विशिष्ट और असाधारण उपलब्धियों/सेवाओं के लिए दिए जाते हैं.
अब जब मुलायम सिंह यादव को ‘असाधारण और विशिष्ट सेवा’ के लिए पद्म विभूषण देने का मोदी सरकार का फैसला सार्वजनिक हुआ, तो हैरानी तो होनी ही थी. हैरानी क्यों इसे समझने के लिए हमें वक्त में थोड़ा पीछे लौटना होगा और बात सही समझ में आए इसके लिए यहां नीचे दिए गए ट्वीट को संदर्भ बनाना होगा.
बीजेपी उत्तर प्रदेश के ट्विटर हैंडल से यह ट्वीट 30 अक्टूबर 2021 को किया गया था. असल में यह ट्वीट 30 अक्टूबर 1990 में अयोध्या में हुए गोलीकांड की याद में मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव को निशाना बनाने के लिए किया गया था. इस घटना के वक्त यूपी में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे. जब यह ट्वीट किया गया तब उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनावों की लड़ाई का बैकग्राउंड तैयार हो रहा था. बीजेपी के सोशल मीडिया हैंडल्स पर तब ‘भूले तो नहीं’ कैंपेन के तहत समाजवादी पार्टी की पिछली सरकारों पर तंज कसा जा रहा था. इस ट्वीट में ‘अब्बा जान’ तंज का इस्तेमाल किया गया, जिसे मुलायम सिंह यादव के लिए समझा गया. तब सीएम योगी आदित्यनाथ भी अपने राजनीतिक भाषणों में खुलकर अब्बा जान का इस्तेमाल करते नजर आते थे.
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ऐसे में सवाल यह है कि बीजेपी ने जिन मुलायम सिंह यादव को ‘अब्बा जान’ जैसी शब्दावली से नवाजा, उन्हें बीजेपी की ही सरकार में सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक कैसे मिला? क्या इस कदम के पीछे कोई राजनीति है? अगर राजनीति है तो कैसी? आइए इसी को समझने की कोशिश करते हैं.
कहीं 2024 को ध्यान में रख तो नहीं हुआ ये फैसला?
यूपी में 2022 का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद रिकॉर्ड बनाने वाली बीजेपी की निगाहें अब 2024 के लोकसभा चुनावों पर हैं. बीजेपी का लक्ष्य यूपी की 80 सीटें हैं ताकि पार्टी पीएम मोदी को लगातार तीसरी बार भारत का प्रधानमंत्री बना सके. ऐसे में भारत सरकार की तरफ से दिए जाने पद्म पुरस्कारों में मुलायम सिंह यादव का नाम होना कहीं न कहीं इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि कहीं बीजेपी इसका भी सियासी फायदा उठाने की तैयारी में तो नहीं है.
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कहीं यूपी का 11 फीसदी यादव वोट बैंक तो वजह नहीं?
मुलायम सिंह यादव को पद्म विभूषण से सम्मानित करने का फैसला कहीं यादव वोट बैंक को तो ध्यान में रखकर नहीं लिया गया? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यूपी में 19 फीसदी मुस्लिम वोट बैंक के बाद समुदाय के स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा वोट बैंक यादवों का है. सीएसडीएस के मुताबिक, यूपी में 11 फीसदी यादव वोटर्स हैं. लोकनीति-सीएसडीएस के पोस्ट पोल सर्वे के मुताबिक, 2019 के लोकसभा चुनावों में जब अखिलेश और मायावती ने मिलकर महागठबंधन बनाया था तब उन्हें 60 फीसदी यादव वोट मिले थे. वहीं बीजेपी को 23 फीसदी यादवों ने वोट किया था.
समाजवादी पार्टी के पारंपरिक यादव वोट बैंक में से 23 फीसदी वोट पाना मामूली बात नहीं थी और 2019 के चुनावों में कई लोकसभा सीटों पर यह बीजेपी के लिए जीत की वजह बना था. ऐसा माना जा रहा है कि बीजेपी ने 2024 में भी यूपी के इस मजबूत वोट बैंक पर अपने नजरें टिका रखी हैं. बीजेपी की लगातार कोशिश है कि यह वोट बैंक टूटे, जिससे समाजवादी पार्टी की चुनावी हैसियत में एक डेंट लगे.
पिछले दिनों जब मुलायम सिंह यादव का निधन हुआ तो पीएम मोदी से लेकर बीजेपी की टॉप लीडरशिप ने बड़े पैमाने पर श्रद्धांजलि दीं. यहां तक कि बीजेपी की राज्य कार्यकारिणी की हालिया बैठक में भी मुलायम सिंह यादव को मंच से श्रद्धांजलि दी गई. सियासत के जानकारों का कहना है कि बीजेपी यादव वोट बैंक को लुभाने की दिशा में भी लगातार काम कर रही है. इसे बीजेपी की उस सियासी कवायद से भी जोड़कर देखा जा रहा है.
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पिछले साल पीएम मोदी यूपी के दिग्गज समाजवादी नेता रहे हरमोहन सिंह की पुण्यतिथि कार्यक्रम में भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से शामिल हुए थे. हरमोहन सिंह यादव लंबे समय तक अखिल भारतीय यादव महासभा के अध्यक्ष थे. कानपुर में उनकी पुण्यतिथि कार्यक्र में 12 राज्यों के यादव महासभा के प्रतिनिधि शामिल हुए थे. ऐसे में यह कवायद भी यादव वोट बैंक को अपनी तरफ आकर्षित करने से जोड़कर देखी गई.
हालांकि यह बात भी बिल्कुल साफ है कि पद्म पुरस्कार भारत सरकार की तरफ से दिए जाते हैं और मुलायम सिंह यादव की सक्रिय राजनीति के दौर में उनपर निशाना साधने की उक्त कवायद पार्टी के स्तर पर बीजेपी के नेताओं की तरफ से की जाती रही. इस बारीक फर्क के बावजूद यह देखना रोचक होगा कि जो मुलायम सिंह यादव अपनी राजनीतिक पारी के दौरान हमेशा बीजेपी के निशाने पर रहे, उन्हें बीजेपी अयोध्या के ‘विलेन’ के तौर पर पेश करती रही, आज जब भारत सरकार नेताजी को पद्म विभूषण से नवाज रही है, तो क्या बीजेपी यूपी में इसका सियासी फायदा उठा पाएगी?
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