Uttar Pradesh News : उत्तर प्रदेश में एक बार फिर सरकार और संगठन के बीच कलह, विधानमंडल में दिखाई दी. उत्तर प्रदेश सरकार ने विधानसभा में नजूल जमीन विधेयक पेश किया था, जिसे विधानसभा से पास भी करा दिया गया लेकिन विधान परिषद में यह विधेयक फंस गया. विधान परिषद में जिस समय डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य इस विधेयक को पेश कर रहे थे उसी दौरान विधान परिषद के सदस्य और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने विधेयक को प्रवर समिति में भेजने की मांग की. उसके बाद विधान परिषद के सभी सदस्यों ने इसे प्रवर समिति को भेजने का फैसला ले लिया.
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मानसून सत्र में हुआ था हंगामा
बता दें कि यूपी विधासभा के मॉनसून सत्र के दौरान बुधवार को विधानसभा में उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति विधेयक पर खूब हंगामा हुआ था. अब विधानसभा से पास नजूल विधेयक विधान परिषद में फंस गया है. अब दो महीने के बाद प्रवर समिति जब इस पर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी उसके बाद ही कोई फैसला होगा.
बीजेपी विधायकों ने भी किया था विरोध
दरअसल, नजूल विधेयक को लेकर विधायकों में भारी नाराजगी देखी जा रही थी. सरकार ने विधानसभा में पास कर लिया था लेकिन अब विधान परिषद में इसे रोक दिया.2 महीने के बाद प्रवर समिति की जब रिपोर्ट आएगी उसके बाद इसपर चर्चा होगी. भाजपा के कई विधायक इस फैसले के बाद खुश हैं और उनका कहना है कि पूरे तरीके से इस पर बातचीत के बाद ही कोई फैसला लिया जाना चाहिए.
बता दें कि इस विधेयक का भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 2 विधायकों और रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने विरोध किया, इसके अलावा समाजवादी पार्टी के विधायकों ने विधानभा के वेल में आकर इस विधेयक का विरोध किया था.
विधेयक को लेकर सरकार में भी दो फाड़
नजूल जमीन विधेयक का काफी विरोध हुआ था. कांग्रेस ने इस पर आंदोलन की चेतावनी दी थी. कांग्रेस नेता और पूर्व एमएलसी दीपक सिंह ने नजूल जमीन विधेयक पर एक बड़ा आंदोलन करने की बात कह और समाजवादी पार्टी तो सड़कों पर ही उतर गई थी. ऐसा लगता है किसी भी भूमि संबंधी कानून को लेकर सरकार के भीतर और खासकर जनप्रतिनिधियों के भीतर खौफ घर कर गया है. यही वजह है कि विधान परिषद में जिस वक्त केशव प्रसाद मौर्य इस नजूल संपत्ति विधेयक को पेश कर रहे थे उसी वक्त बीजेपी के विधान परिषद सदस्य भूपेंद्र चौधरी ने इसे प्रवर समिति में भेजने की मांग कर दी.
क्या होती है नजूल संपत्ति
बता दें कि नजूल की जमीन का मतलब ऐसे जमीनों से होता है जिसका कई सालों से कोई भी वारिस नहीं मिला. ऐसे में इन जमीनों पर राज्य सरकार का अधिकार हो जाता है. दरअसल, अंग्रेजी राज के समय उनके खिलाफ बगावत करने वालों रियासतों से लेकर लोगों तक की जमीनों पर ब्रिटिश राज कब्जा कर लेती थी. वहीं आजादी के बाद इन जमीनों पर जिन्होंने रिकॉर्ड के साथ दावा किया सरकार ने उनके जमीनों को वापस कर दिया. वहीं जिन जमीनों पर किसी ने दावा नहीं किया वहीं नजूल की जमीन बन गई, जिसका अधिकार राज्य सरकारों के पास था.
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