MLC उपचुनाव: आदिवासी उम्मीदवार के सहारे सपा, क्या ये मुर्मू के खिलाफ वोट का प्रायश्चित है?

कुमार अभिषेक

• 04:42 AM • 01 Aug 2022

UP News : एमएलसी उपचुनाव (UP MLC By-Election) में आदिवासी प्रत्याशी कीर्ति कोल को उतारकर समाजवादी पार्टी राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ वोट…

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UP News : एमएलसी उपचुनाव (UP MLC By-Election) में आदिवासी प्रत्याशी कीर्ति कोल को उतारकर समाजवादी पार्टी राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ वोट करने का प्रायश्चित करती दिख रही है. यही नहीं इसी बहाने पार्टी अपने उन विधायकों जिन्होंने द्रौपदी मुर्मू की वजह से क्रॉस वोटिंग की, ओमप्रकाश राजभर जैसे पूर्व सहयोगियों जिन्होंने द्रौपदी मुर्मू के आदिवासी होने का हवाला दिया और चाचा शिवपाल यादव जिन्होंने खुलेआम कहकर सपा में क्रॉस वोटिंग कराया उन्हें किसी बहाने का मौका नही देना चाहती है.

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कौन हैं कीर्ति कोल?

UP MLC Election 2022 : आपको बता दें कि कीर्ति कोल, कोल जनजाति से आती हैं और पूर्व सांसद भाईलाल कोल की बेटी हैं. कीर्ति कोल विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुकी हैं. अब सपा ने एमएलसी उपचुनाव में एक सीट पर उन्हें उम्मीदवार के तौर पर उतारा है.

सपा (SP) को भी ये मालूम है कि किसी चमत्कार के बगैर कीर्ति का चुनाव जीतना असंभव है. ऐसे में इसे पार्टी की ओर से आदिवासियों के सामने ‘पाप धोने’ की कवायद के तौर पर ही देखा जा रहा है.

Latest UP News : बीजेपी (BJP) ने न सिर्फ एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति बनाया है, बल्कि पूरे आदिवासी बाहुल्य गांव में द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) के सम्मान में कार्यक्रम भी आयोजित किए, जिससे आदिवासी इलाकों में बीजेपी का ग्राफ अचानक ही बढ़ गया है. साथ ही बुंदेलखंड जैसे आदिवासी इलाके में बीजेपी एक्सप्रेसवे, चिंतन शिविर जैसे आयोजन कर सपा-बसपा के पैर उखाड़ रही है. ऐसे में इसे अखिलेश यादव का डैमेज कंट्रोल एक्सरसाइज माना जा रहा है.

बीजेपी नेता डॉ. चंद्रमोहन ने यूपी (Uttar Pradesh) तक से बात करते हुए कहा, “अखिलेश यादव राष्ट्रपति चुनाव में किया हुआ अपना पाप धोना चाहते हैं, लेकिन वो आदिवासी लोगों मूर्ख समझना बंद करें. निश्चित तौर पर हारी हुई सीट वो दिखावे के लिए एक आदिवासी उम्मीदवार को तो दे सकते हैं. अगर जीतने वाली सीट होती तो अपने समीकरण के इतर नहीं सोच सकते थे. यही सपा की हिप्पोक्रेसी है.”

उधर नाम न छापने की शर्त पर सपा के एक बड़े नेता ने कहा कि अखिलेश जी पहले भी आदिवासी चेहरे को आगे करना चाहते थे, लेकिन कई तरह की खींचतान की वजह से ये नहीं हो पाया. मगर ये नई सपा है और लोग नई सपा को देख रहे हैं. बेशक ये सीट मुश्किल है. लेकिन पार्टी के भीतर अब कोई बहाना कम से कम कीर्ति कोल के खिलाफ वोट करने का नहीं होगा और विरोध करने वालों को नया बहाना ढूंढना होगा.

बहरहाल अखिलेश नए तरीके से पार्टी को पुनर्गठित कर रहे हैं. बीजेपी जितना अग्रेसिवे दलित और ओबीसी और आदिवासियों की राजनीति कर रही है, समाजवादी पार्टी भी अब अपने पुराने फॉर्मूले से इतर बीजेपी को चुनौती देने के लिए दलित ओबीसी और आदिवासी पर फोकस कर रही है. ऐसे में सपा का आदिवासी महिला का चेहरा आगे करना बीजेपी को चुनौती तो नहीं लेकिन टक्कर देने और प्रायश्चित करने की उसकी कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.

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