रामपुर में डिप्टी सीएम पाठक बोले- आजादी के बाद से पसमांदा मुसलमानों को सम्मान नहीं मिला

आमिर खान

• 02:32 AM • 13 Nov 2022

Rampur Bypoll: रामपुर सदर विधानसभा सीट पर पांच दिसंबर को होने वाले उपचुनाव से पहले उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने शनिवार को…

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Rampur Bypoll: रामपुर सदर विधानसभा सीट पर पांच दिसंबर को होने वाले उपचुनाव से पहले उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने शनिवार को कहा कि नरेंद्र मोदी नीत केंद्र सरकार जहां अपनी योजनाओं के माध्यम से पसमांदा मुसलमानों को सशक्त बनाने के लिए काम कर रही है, वहीं अन्य राजनीतिक दलों ने समुदाय का इस्तेमाल सिर्फ वोट के लिए किया है.

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उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले की यह सीट समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान को विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य ठहराए जाने के बाद खाली हुई है. खान को नफरती भाषण के मामले में तीन साल के कारावास की सजा सुनाए जाने बाद विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य ठहराया गया था.

उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने पसमांदा मुस्लिम समुदाय से जुड़े लाभार्थियों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘आजादी के बाद जो सम्मान आपको मिलना चाहिए था, वह सम्मान आपको नहीं मिल पाया. आप के सम्मान की किसी ने चिंता की तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने की. उन्होंने कहा कि मुस्लिम समाज में जो दलित मुस्लिम हैं, पिछड़े हैं, वंचित हैं, उनके जीवन स्तर को ऊपर उठाना होगा.” पाठक ने कहा कि मोदी जी ने फैसला किया है कि वह उनके (पसमांदा मुसलमानों) के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए काम करेंगे.

डिप्टी सीएम ने कहा, ‘‘कुछ लोगों ने आपके वोट हासिल करने के लिये हिंदुओं और मुसलमानों के बीच खाई पैदा की. मोदीजी और भाजपा का एक भी फैसला नहीं है, जिसमें पसमांदा समुदाय के भाइयों और बहनों को शामिल नहीं किया गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर योजना का लाभ आपको देने के लिये काम किया है.”

पाठक ने आजम खान का नाम लिए बगैर कहा, “बड़े मियां ने कहा कि आपने उनका हुक्का भरा है—आपने उन लोगों की सेवा की जिन्होंने आपका खून चूसा. मैं अपने कुरैशी, अंसारी, धोबी, चिड़िमार, मनिहार समुदाय के भाइयों से कहना चाहता हूं कि आप बड़े मियां से कह दें कि पसमांदा समाज के मुस्लिम भाई अब आपका हुक्का नहीं भरेंगे.”

बता दें कि पसमांदा समुदाय में 41 जातियां आती हैं, जिनमें अंसारी, कुरैशी, मंसूरी, सलमानी आदि शामिल हैं और ये बूचड़खाने और बुनाई जैसे पेशे में लगे हैं. इन्हें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक लिहाज से अति पिछड़ा समझा जाता है.

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