प्रयागराज में प्रोफेसर अली अहमद फातमी का घर बुलडोजर से गिराने वाले क्या उनकी लाइब्रेरी, रेयर किताबें लौटा पाएंगे?

अली अहमद फातमी उर्दू साहित्य के जाने-माने विद्वान रहे हैं. उनका घर बुलडोजर की भेंट चढ़ गया, लेकिन उनके लिए असली नुकसान उनका आशियाना नहीं, बल्कि उनकी लाइब्रेरी का था.

यूपी तक

• 07:01 PM • 04 Apr 2025

follow google news

एक घर सिर्फ चार दीवारों का ढांचा नहीं होता, बल्कि उसमें बसी होती हैं यादें, किताबें, सपने और जिंदगी भर की मेहनत. लेकिन जब 2021 में प्रयागराज में कुछ घरों को ‘माफिया अतीक अहमद से जुड़ाव’ के संदेह में बुलडोजर से गिरा दिया गया, तो इन दीवारों के साथ कई जिंदगियां भी बिखर गईं.

यह भी पढ़ें...

अब सुप्रीम कोर्ट ने इन बुलडोजर कार्रवाइयों को ‘अमानवीय और अवैध’ करार देते हुए प्रभावित लोगों को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है. लेकिन क्या यह मुआवजा उस नुकसान की भरपाई कर सकता है जो इन लोगों ने सहा है? क्या इससे वो किताबें, वो यादें, वो घर, वो जिंदगी लौट सकती है जो मिट्टी में मिला दी गई?

 

 

इस बुलडोजर एक्शन के एक विक्टिम इलाहाबाद विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर अली अहमद फातमी को ही लीजिए. उनके लिए यह सिर्फ घर खोने की घटना नहीं थी, बल्कि उनकी विरासत, उनकी किताबें और उनका सुकून भी उस मलबे में दफन हो गया. 

हजारों किताबें जो अब सिर्फ यादों में बची हैं

अली अहमद फातमी उर्दू साहित्य के जाने-माने विद्वान रहे हैं. उनका घर बुलडोजर की भेंट चढ़ गया, लेकिन उनके लिए असली नुकसान उनका आशियाना नहीं, बल्कि उनकी लाइब्रेरी का था. उनके पास हजारों किताबों का संग्रह था, जिनमें से कई दुर्लभ और ऐतिहासिक महत्व की थीं. लेकिन उन्हें अपना सामान निकालने तक की मोहलत नहीं दी गई.

"6 मार्च 2021 की शाम को नोटिस मिला और अगले ही दिन 7 मार्च को घर गिरा दिया गया. मैं अपनी किताबें नहीं बचा सका. वो सिर्फ पन्ने नहीं थे, बल्कि मेरी पूरी जिंदगी थी," फातमी की आवाज में दर्द साफ झलकता है.

 

 

घर टूटने के बाद उनकी जिंदगी भी बिखर गई. पत्नी इस सदमे को सहन नहीं कर पाईं और कुछ ही महीनों बाद उनका निधन हो गया. फातमी खुद भी दिल की बीमारी से जूझने लगे. अब वे अपनी बेटी के साथ एक छोटे से फ्लैट में रहते हैं, लेकिन किताबों से भरी वह लाइब्रेरी अब सिर्फ उनकी यादों में बसती है.

क्या न्याय सिर्फ 10 लाख रुपये से मिलेगा?

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में प्रयागराज विकास प्राधिकरण (PDA) द्वारा की गई इन बुलडोजर कार्रवाइयों को ‘अमानवीय और अवैध’ करार देते हुए पीड़ितों को 10-10 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है. लेकिन सवाल यह है कि क्या यह मुआवजा उन हजारों किताबों और बर्बाद हुई जिंदगी का मोल चुका सकता है?

"अब अदालत ने फैसला दिया है, लेकिन क्या कोई मुझे मेरी जमीन लौटा सकता है? क्या कोई मेरी लाइब्रेरी लौटा सकता है?" फातमी पूछते हैं.

"रातोंरात मेरा सब कुछ छीन लिया गया"

फातमी अकेले नहीं हैं, जिनकी दुनिया एक झटके में बदल गई. प्रयागराज में कई और परिवारों ने इस तकलीफ को सहा है. विजय कुमार सिंह का घर भी इसी कार्रवाई में ढहा दिया गया. उन्होंने अपनी सारी जमापूंजी लगाकर महज नौ महीने पहले ही वह घर खरीदा था, लेकिन कुछ घंटों में वह मलबे में बदल गया. "मैंने जिंदगी भर की कमाई से घर लिया था, लेकिन एक दिन में सब कुछ खत्म हो गया. आज भी जब उस जगह से गुजरता हूं, तो दिल बैठ जाता है," सिंह कहते हैं.

वक्फ अंसारी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. उन्होंने कई सालों की मेहनत से एक घर बनाया था, लेकिन देखते ही देखते उनका "सपनों का आशियाना" खंडहर में बदल दिया गया.

क्या यह लड़ाई यहीं खत्म हो जाएगी?

अब जब सुप्रीम कोर्ट ने इस कार्रवाई को गलत ठहराया है, तो यह देखना बाकी है कि प्रशासन इससे आगे क्या कदम उठाएगा. क्या मुआवजा ही इस अन्याय की भरपाई है?

"घर दोबारा बनाया जा सकता है, लेकिन जो खोया है, उसे लौटाना मुश्किल है," फातमी की यह बात प्रयागराज के उन सभी लोगों की आवाज है, जिन्होंने एक ही रात में अपना सब कुछ खो दिया.

इनपुट: पीटीआई.

    follow whatsapp