UP News: 11,000 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद एक परिवार 115 साल पहले बिछड़े परिवार को खोजने, उनसे मिलने के लिए विदेश से भारत आया. इस दौरान उसे उसका बिछड़ा हुआ परिवार मिल भी गया. ये कोई फिल्मी कहानी नहीं है. ये असंभव लगने वाली कहानी है रवींद्र दत्त की. भारत से 11 हजार किलोमीटर दूर फिजी में रहने वाले रवींद्र दत्त अपने पुरखों यानी अपने परदादा के परिवार को खोजते हुए भारत आए और उन्हें उनके परदादा का परिवार मिल गया.
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ये साल था 1910. भारत में ब्रिटिश राज था. उस साल अंग्रेज लाखों भारतीयों को जबरन खेती करवाने के लिए फिजी ले गए. इनमें वो लोग भी शामिल थे, जो विदेशी राज के खिलाफ विद्रोह कर रहे थे. इनमें रवींद्र दत्त के परदादा गरीब दास का भी नाम था. अंग्रेज उन्हें जबरन फिजी ले गए. गरीब दास को लगा कि वह जल्द ही अपने देश वापस आ जाएंगे. मगर वह फिर कभी भारत वापस नहीं आ पाए. शुरू में यहां रहने वाले उनके परिवार ने उन्हें याद रखा और उनका इंतजार भी किया. मगर जब काफी समय और पीढ़ियां गुजर गई तो परिवार उन्हें पूरी तरह से भूल गया. मगर वह फिजी में अपनी भारतीय पहचान के साथ ही रहे और भारतीय दस्तावेज, अपनी पहचान को हमेशा अपने साथ रखे रहें. अब इसी की बदौलत 115 साल बाद गरीब दास का परिवार अपने भारतीय परिवार के पास पहुंच पाया.
115 साल बाद जब परिवार अपने पुरखों के परिवार से मिला, पहले ये फोटो देखिए
कई साल से परिवार को खोज रहे थे, अब मिला
रवींद्र दत्त अपनी पत्नी केशनी के साथ पिछले कई सालों से भारत आ रहे थे. यहां वह अपने परदादा के परिवार यानी अपने बिछड़े हुए परिवार को खोजना चाहते थे. साल 1910 के बाद से परिवार बिछड़ गया था. आखिर में जब इन्हें इनका परिवार नहीं मिला और ये निराश हो गए. फिर ये दोनों अयोध्या भगवान श्रीराम के दर्शन करने गए और यहां उन्होंने भगवान से प्रार्थना की कि वह उनके परिवार से उन्हें मिलवा दे.
बता दें कि अब जाकर रवींद्र दत्त को उनके परदादा का परिवार मिला है. उन्हें सिर्फ ये पता था कि उनके परदादा उत्तर प्रदेश के बस्ती से फिजी आए थे. यहां सालों खोजने के बाद उन्हें बस्ती के बनकटी ब्लॉक के कबरा गांव में अपने परदादा का परिवार मिल गया है. रवींद्र दत्ता को उनके परदादा का एक दस्तावेज मिला. इसी दस्तावेज के सहारे वह फिजी आए थे. यहां उनके परिवार और उनके घर के बारे में जानकारी थी. रवींद्र ने इसे ही अपनी जांच का आधार बनाया और कई साल की खोज के बाद वह अपने परदादा के परिवार तक पहुंचने में कामयाब रहे.
परिवार से मिलने के बाद ये बोले रवींद्र दत्त
गांव के दस्तावेज में मिल गया नाम
रवींद्र दत्त और उनकी पत्नी जांच करते-करते बस्ती आ गए. यहां काफी तलाश करने और कई लोगों की सहायता लेने के बाद वह बस्ती के कबरा गांव पहुंचे. उन्होंने ग्राम प्रधान से बात की. ग्राम प्रधान ने कई पुराने लोगों को फोन किया. कई बुजुर्गों से पूछा. मगर कोई गरीब दास के बारे में नहीं बता पाया. इसके बाद ग्राम प्रधान ने गांव के पुराने रिकॉर्ड खंगाले तो उसमें गरीब दास का नाम लिखा हुआ मिल गया. ये रिकॉर्ड 1910 के आस-पास के थे.
फिर जब वह अपने परदादा के परिवार के पास पहुंचे तो सब कुछ सामने आ गया. उस परिवार को अभी भी ये याद था कि उनके पुरखों में से एक साल 1910 में फिजी गए थे. मगर वह फिर कभी वापस नहीं आए और परिवार ने उन्हें मृत समझ लिया. इसके बाद रवींद्र और उनकी पत्नी की मुलाकात गरीब के नाती भोला चौधरी, गोरखनाथ, विश्वनाथ, दिनेश, उमेश, रामउग्रह सहित परिवार अनेक सदस्यों से हुई. रवींद्र और उनकी पत्नी को देख बस्ती का परिवार भी हैरान था. उन्हें उम्मीद ही नहीं थी कि 115 साल पहले जिस गरीब दास को उनके परिवार ने मृत समझ लिया था, वह फिजी में जिंदा रहे और वहां उनका पूरा परिवार बसा हुआ है. उन्हें इस बात की हैरानी भी थी कि फिजी का परिवार उन्हें खोजता हुआ इतने सालों बाद यहां आया है.
गरीब दास का फोटो
अब फिजी आने का न्यौता दिया
115 साल बाद अपने परिवार की छठी पीढ़ी से मिलने के बाद रवींद्र दत्त ने बस्ती के परिवार को फिजी आने का न्यौता दिया. वह चाहते हैं कि उनके परदादा का परिवार फिजी में मौजूद परिवार के अन्य सदस्यों से भी मिले. उन्होंने कहा है कि अब वह हर सुख-दुख में अपने परिवार के पास आते रहेंगे. इस दौरान रवींद्र और उनकी पत्नी ने परिवार के साथ फोटो भी लिए और वीडियो भी बनाई. रवींद्र और उनकी पत्नी का कहना है कि भगवान श्रीराम की कृपा से उन्हें उनका परिवार मिल गया. इसमें ग्राम प्रधान और प्रधान सहायक ने भी अहम भूमिका निभाई.
फिजी को कहा जाता है मिनी इंडिया
आपको बता दें कि फिजी को मिनी इंडिया भी कहा जाता है. यहां करीब 37 प्रतिशत भारतीय आबादी है. इनमें से ज्यादातर वह लोग हैं, जिनके पूर्वजों को अंग्रेज जबरन भारत से फिजी ले गए थे और उनसे जबर गन्ने की खेती करवाई गई थी. समय के साथ ये लोग फिजी में ही बस गए थे. फिजी में भारतीय संस्कृति का असर काफी देखने को मिलता है.
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