गाजीपुर से ही अखिलेश ने क्यों निकाला ‘विजय रथ’? असल कहानी राजभर-अंसारी में छिपी है

विनय कुमार सिंह

ADVERTISEMENT

UPTAK
social share
google news

बुधवार यानी 17 नवंबर को गाजीपुर के हैदरिया से लेकर लखनऊ तक की अखिलेश यादव की ‘समाजवादी विजय रथ यात्रा’ चर्चा का विषय बनी हुई है. अखिलेश की यह रथ यात्रा पूरी रात पूर्वांचल एक्सप्रेसवे पर जारी रही और जगह-जगह कार्यकर्ताओं के हुजूम ने उनका स्वागत किया. यूपी में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले इसे एक तरह से अखिलेश के शक्ति प्रदर्शन के रूप में भी देखा जा रहा है. हालांकि लोग यह भी समझने में जुटे हैं कि आखिर अखिलेश ने इस यात्रा की शुरुआत के लिए गाजीपुर को ही क्यों चुना?

असल में इसे एक बेहद सधा हुआ कैलकुलेटिव मूव बताया जा रहा है. समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस यात्रा को गाजीपुर से शुरू कर एक तीर से दो निशाने साधने का काम किया है.

अखिलेश ने जहां पूर्वांचल एक्सप्रेसवे पर चली रही सियासत में अपना हस्तक्षेप कर बीजेपी को घेरा, वहीं रथ पर नए चुनावी साथियों को जगह देकर पूर्वांचल के जातीय और धार्मिक समीकरण को भी धार देने की कोशिश की है. अखिलेश के साथ रथ पर जहां सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओम प्रकाश राजभर मौजूद थे, तो वहीं गाजीपुर में रैली की तैयारी अंसारी परिवार ने करवाई थी.

यह भी पढ़ें...

ADVERTISEMENT

ऐसे में अखिलेश का एक मकसद साफ होता नजर आ रहा है कि वह गाजीपुर से ऐसा सियासी संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं, जिसकी धमक यहां आसपास की 50 विधानसभा सीटों पर असर डाल सकती है. आइए अखिलेश के इस सियासी गणित को समझते हैं.

गाजीपुर से समझिए अखिलेश के इस गणित को

गाजीपुर की मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट भूमिहार बाहुल्य है और इसे अंसारी परिवार के रसूख से भी जोड़कर देखा जाता है. इस सीट पर 1985 के बाद से अधिकतर समय अंसारी परिवार का ही कब्जा रहा है. मोहम्मदाबाद विधानसभा में लगभग साढ़े तीन लाख वोटर हैं, जिसमें मुस्लिम और दलित वोटरों पर अंसारी परिवार की खासी पकड़ है.

ADVERTISEMENT

भूमिहार वोटर्स में भी इस परिवार की अच्छा खासा दखल माना जाता है. मोहम्मदाबाद विधानसभा की क्षेत्रीय राजनीति में दो ब्लॉक प्रमुख सीट भांवर कोल और मोहम्मदाबाद में अंसारी परिवार हमेशा से भूमिहारों को ही सपोर्ट करता आया है, जिसके चलते विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भूमिहारों के दो गुट हमेशा आमने-सामने रहते हैं. एक गुट अंसारी परिवार के पक्ष में, तो दूसरा क्षेत्र के ही बड़े स्वजातीय नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा के करीब माना जाता है. यही गुट मौजूदा बीजेपी विधायक अलका राय का भी समर्थन करता है.

2004 लोकसभा परिसीमन में गाजीपुर के तत्कालीन सांसद मनोज सिन्हा परिसीमन कमेटी के सदस्य थे. ऐसा कहा जाता है कि तब मोहम्मदाबाद विधानसभा क्षेत्र और जहुराबाद विधानसभा क्षेत्र को बलिया लोकसभा क्षेत्र में मिलाया गया. साथ ही, मोहम्मदाबाद विधानसभा क्षेत्र का परिसीमन कुछ इस तरह हुआ कि यह क्षेत्र भूमिहार बाहुल्य हो गया. यहां से मनोज सिन्हा के खास माने जाने वाले कृष्णानंद राय ने बीजेपी के टिकट पर अंसारी को हरा दिया था. हालांकि बाद में कृष्णानंद राय समेत सात लोगों की हत्या 29 नवंबर 2005 को मोहम्मदाबाद विधानसभा क्षेत्र के बसनिया चट्टी पर हो गई, जिसमें आज भी मऊ विधायक मुख्तार अंसारी जेल में निरुद्ध हैं और सांसद अफजाल अंसारी समेत कई लोग आरोपी हैं.

यही वजह है कि इस विधानसभा सीट को फाटक (अंसारियो का घर) के रसूख से भी जोड़कर देखा जाता है. यहां से मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजाल अंसारी पांच बार विधायक रहे हैं, जो आज गाजीपुर से बीएसपी सांसद हैं. भूमिहार वोटर्स में पकड़ की बात करें तो मुख्तार अंसारी के दो खास, गोरा राय और अंगद राय भी इसी क्षेत्र के बड़े नाम हैं, और हत्या के केस में आज भी आजीवन कारावास में जेल की सजा काट रहे हैं. इन जैसे दर्जनों प्रभावशाली लोग अंसारी परिवार के सपोर्टर माने जाते हैं.

ADVERTISEMENT

अंसारी से ओवैसी को बैलेंस करने की कोशिश में अखिलेश?

माना जाता है कि यादव एसपी के मूल वोटर हैं और अंसारी परिवार को विधानसभा में मजबूती से लड़ने के लिए यादवों के वोटों की जरूरत पड़ती है. इसलिए कहा जा रहा है कि इस परिवार ने 2005 के बाद एक बार फिर समाजवादी पार्टी की तरफ रुख किया है. वहीं अखिलेश यादव को भी पूर्वांचल में ओवैसी की काट के लिए एक बड़े मुस्लिम नेता की जरूरत है. ऐसे में अंसारी परिवार अखिलेश का मददगार बन रहा है, क्योंकि पूर्वांचल के मुस्लिम मतदाताओं में इस परिवार का रसूख माना जाता है.

यही वजह थी कि बुधवार को अखिलेश यादव ने अपने विजय रथ पर नए सहयोगियों के साथ अंसारी परिवार को भी जगह दी थी.

राजभर, चौहान, मुस्लिम कॉम्बिनेशन 50 सीटों पर मददगार?

मोहम्मदाबाद से सटी बगल की जहुराबाद विधानसभा सीट की बात करें तो, इस पर आजकल ओम प्रकाश राजभर का कब्जा है. हालांकि इस सीट पर एसपी और बीएसपी की ही लड़ाई होती आई है. यह सीट राजभर और चौहान बाहुल्य है. साथ ही, दलित और यादव भी यहां काफी संख्या में हैं. इसके बाद बारी आती है राजपूत वोटर्स की. बीएसपी और एसपी दोनों ही यहां अति पिछड़ों पर दांव लगाते रहे हैं. हालांकि 2012 में एसपी ने मुस्लिम कार्ड खेलकर पूर्व मंत्री रही सैयदा शादाब फातिमा को जीत दिलाई थी, तब ओम प्रकाश राजभर कई छोटे दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़े थे और हार गए थे.

2017 में बीजेपी के साथ मिलकर ओम प्रकाश राजभर पहली बार जहुराबाद विधानसभा सीट से विधायक बने और बाद में योगी कैबिनेट के मंत्री भी हुए थे. इसी सीट से लगी हुई सीट मऊ सदर और बलिया की रसड़ा भी है. जहां की हर सीट पर इन नेताओं की मौजूदगी से फर्क पड़ेगा. यह माना जाता है कि ओम प्रकाश राजभर अपनी बिरादरी के साथ अति पिछड़ों के भी नेता हैं और पूर्वांचल की 50 से ज्यादा सीटों पर सीधा दखल रखते हैं. ऐसे में राजभर, चौहान, मुस्लिम और यादव आदि के साथ ‘सवर्णों’ का समीकरण मौजूदा समाजवादी फॉर्मूले को संजीवनी दे सकता है.

अंसारी परिवार पूर्वांचल की 50 से ज्यादा सीटों पर मुस्लिम वोटरों के बीच काफी लोकप्रिय है. पूर्वांचल के मुसलमानों के बीच ओवैसी के असर को कम करने के लिए मोहम्मदाबाद वाले अंसारियों का चेहरा अखिलेश के लिए आज की जरूरत बन गया है. एसपी नेताओं की मानें, तो मुस्लिम वोटर्स उनकी तरफ लामबंद हो रहे हैं. ऐसे में मऊ के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी और गाजीपुर के सांसद अफजाल अंसारी के सबसे बड़े भाई सिबगतुल्लाह अंसारी को आगे करके अखिलेश यादव ने अति पिछड़ों के साथ मुसलमानों पर भी डोरा डाल दिया है.

पूर्वांचल में पिछली बार अधिकतर सीटें बीजेपी के खाते में गई थीं. ऐसा कहा जा रहा है कि यहां असंतुष्टों के वोट को एकजुट करने के लिए ही अखिलेश यादव ने गाजीपुर के हैदरिया से शक्ति प्रदर्शन किया. अब यह देखने वाली बात होगी कि पूर्वांचल को लेकर कोशिश कर रहे अखिलेश को अपनी रणनीतियों में कितनी सफलता मिलती है.

पूर्वांचल एक्सप्रेसवे पर पूरी रात चला अखिलेश का रथ! सुबह 4:30 बजे पहुंचे लखनऊ, उमड़ा हुजूम

    Main news
    follow whatsapp

    ADVERTISEMENT