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कल्याण सिंह: फोन कॉल पर गिरी सरकार तो चली शह-मात की शातिर चाल

यूपी तक

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राजनीति में शह और मात का खेल नया नहीं है। सियासी जीवन में हर नेता यह खेल खेलता है। कोई इसका विजेता बनता है और तो किसी के हाथ लगती है हार। यूपी में विधानसभा चुनावों की सुगबुगाहट तेज हो गई है। सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी और अखिलेश यादव, प्रियंका गांधी व मायावती के बीच फिलहाल शह और मात का खेल जारी है। नतीजे के लिए हमें अभी कुछ इंतजार करना है।

इस बीच हम आपको यूपी की सियासत से जुड़ा शह-मात का एक ऐसा किस्सा सुनाते हैं, जिसने राजनीति के हर रंग देखे।

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यह किस्सा कल्याण सिंह की सरकार का है। यह कहानी है आज से तकरीबन ढाई दशक पहले उत्तर प्रदेश में हुए सबसे रोमांचक सियासी घटनाक्रम की। यह वो कहानी है जिसके चलते जगदंबिका पाल कहे गए ‘वन डे वंडर ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स’। यही है वह कहानी जिसके चलते पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को बैठना पड़ा था अनशन पर। क्या इस कहानी को मायावती ने रचा था? आइये जानते हैं इसे सिलसिलेवार तरीके से…

तो शुरू करते हैं शुरुआत से:

किस्सा शुरू होता है 1996 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव से। साल 1996 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुत हासिल नहीं हुआ था। इस चुनाव में बीजेपी को 184, सपा को 116, बीएसपी को 73 और कांग्रेस को मात्र 33 सीटें मिलीं थीं। कोई भी दल अकेले सरकार नहीं बना सकता था। इस बीच बीजेपी और बसपा में तालमेल बैठा और राज्‍य में गठबंधन की सरकार बनी, लेकिन वह ज्‍यादा दिन नहीं चल पाई। इसके बाद, कल्याण सिंह ने जोड़-तोड़ कर अपनी सरकार बना ली।

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फिर आया साल 1998, जो यूपी की राजनीति के लिए बन गया रोचक:

साल 1998 का फरवरी महीना तरीख 21 फरवरी। इस दिन उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह अपने प्रत्याशी के पक्ष में एक लोकसभा सीट पर जनसभा संबोधित कर रहे थे, क्योंकि 22 फरवरी को मतदान होना था। तभी अचानक उनके पास लखनऊ से फोन आया। फोन पर दूसरी आवाज ने सिंह को बताया कि आपकी सरकार गिर गई है। आप ही की सरकार में अबतक मंत्री रहे जगदंबिका पाल नए मुख्यमंत्री बना दिए गए हैं। इसके बाद, कल्याण सिंह ने तुरंत लखनऊ की तरफ कूच कर दिया।

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मायावती ने कल्याण के खिलाफ रचा था सियासी जाल, पर बसपा सुप्रीमो क्यों थीं नाराज?

21 फरवरी, 1998 को मायावती ने पत्रकारों से कहा था, “मेरे संसदीय क्षेत्र अकबरपुर का चुनाव हो चुका है और अब मैं अपना पूरा ध्यान कल्याण सिंह सरकार के खात्मे पर लगाऊंगी, जिसने 5 महीने पहले मेरी पार्टी को गलत तरीके से तोड़ कर अपना बहुमत हासिल किया है।”

और यही वजह थी जिसके चलते मायावती ने अपनी पार्टी के विधायकों के साथ-साथ अजीत सिंह की उस समय की किसान कामगार पार्टी के विधायकों, जनता दल के विधायकों और सरकार का समर्थन कर रहे लोकतांत्रिक कांग्रेस के विधायकों को कल्याण सिंह सरकार गिराने के लिए राजी कर लिया था।

राजभवन पहुंचकर मायावती ने तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी से कहा, “इन्हें (जगदंबिका पाल) यहां उपस्थित सभी दलों के विधायकों का समर्थन प्राप्त है। इसलिए आप कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर इन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवाइए।” इसी के थोड़ी देर बाद खबर आई कि मुलायम सिंह ने भी जगदंबिका पाल को समर्थन देने का ऐलान कर दिया है।

दरअसल, उस समय ऐसी खबरें थीं कि मुलायम सिंह कल्याण सिंह की सरकार को इसलिए गिराना चाहते थे क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि जिस दिन लोकसभा चुनाव की उनके लिए वोटिंग हो उस समय कल्याण सिंह मुख्यमंत्री के पद पर बैठे हों।

फिर वो हुआ जो कल्याण सिंह के पक्ष में नहीं था। राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया गया और जगदंबिका पाल को यूपी के मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई दी।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपयी ने राज्यपाल के फैसले के विरोध में किया था अनशन

इसके बाद अगले दिन अटल बिहारी वाजपेयी स्टेट गेस्ट हाउस (जहां वह ठहरे हुए थे) में राज्यपाल रोमेश भंडारी के खिलाफ आमरण अनशन पर बैठ गए। इसके बाद कल्याण सिंह सरकार में मंत्री रहे नरेंद्र सिंह गौड़ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर मांग की कि राज्यपाल के फैसले को असंवैधानिक करार दिया जाए और कल्याण सिंह सरकार को बहाल कर दिया जाए।

उनकी याचिका पर 23 फरवरी को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जगदंबिका पाल की सरकार को अवैध करार दे दिया और साथ ही कल्याण सिंह सरकार को बहाल करने का आदेश भी दे दिया। हाईकोर्ट के इस आदेश के साथ ही अटल बिहारी वाजपेयी ने अपना अनशन समाप्त कर दिया था।

अभी कहानी खत्म नहीं हुई थी क्योंकि जगदंबिका पाल का खेमा शांत नहीं रहने वाला था। पाल की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने बीच का रास्ता निकाला और कहा, “अगले 48 घंटे के भीतर विधानसभा में कैमरे की निगरानी में ‘कंपोजिट फ्लोर टेस्ट’ होगा और उसमें जो जीतेगा उसे मुख्यमंत्री माना जाएगा। तब तक के लिए दोनों (जगदंबिका पाल और कल्याण सिंह) के साथ मुख्यमंत्री जैसा व्यवहार किया जाएगा। लेकिन कोई भी नीतिगत फैसला कंपोजिट फ्लोर टेस्ट के बाद ही होगा।”

क्या कंपोजिट फ्लोर टेस्ट में जगदंबिका पाल बचा पाए थे अपनी सरकार?

कंपोजिट फ्लोर टेस्ट के बाद जो नतीजा था वह कुछ इस प्रकार था कि 225 विधायकों ने कल्याण सिंह के पक्ष में और 196 विधायकों ने जगदंबिका पाल के पक्ष में वोट किया था।

वहीं, बसपा के सदस्यों ने अपनी पार्टी के कुछ विधायकों को गलत तरीके से तोड़े जाने का आरोप लगाकर उनके वोट रद्द करने की मांग की, तब अध्यक्ष केसरी नाथ त्रिपाठी ने 12 बसपा विधायकों के वोट रद्द कर दिए थे। लेकिन इसके बाद भी कल्याण सिंह के पक्ष में 213 विधायक थे। जो यकीनन जगदंबिका पाल का दिल तोड़ने के लिए काफी थे।

यानी अंत में इस सियासी शह और मात के खेल में बाजी कल्याण सिंह के ही हाथ लगी थी। फिलहाल कल्याण सिंह लंबी बीमारी से जूझ रहे हैं। वहीं, 2014 तक कांग्रेसी रहे जगदंबिका पाल आज की तारिख में बीजेपी के लोकसभा सांसद हैं।

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