पहले आरक्षण फिर 69000 शिक्षक भर्ती, अनुप्रिया ने उठाए सवाल, अपने ही क्यों निकालने लगे खामी?

कुमार अभिषेक

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Uttar Pradesh News : 2024 लोकसभा के चुनावी नतीजे के बाद उत्तर प्रदेश में बीजेपी के सहयोगी दल असहज होने लगे हैं. असहज हो रहे सहयोगी दलों में सबसे ऊपर नाम अपना दल (एस) की नेता अनुप्रिया पटेल का है, जिनके एक के बाद एक बयान योगी सरकार पर सवाल उठा रहे हैं. अभी साक्षात्कार में नौकरी में भेदभाव के आरोप का मामला ठंडा भी नहीं पड़ा था कि अनुप्रिया पटेल ने एक और बात कहकर योगी सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है. लखनऊ में सोनेलाल पटेल की जयंती पर अपने कार्यकर्ताओं से मुखातिब अनुप्रिया पटेल ने यह कह दिया कि मोदी सरकार ने पिछड़ों के लिए ऐतिहासिक काम किया लेकिन उत्तर प्रदेश में 69000 शिक्षक भर्ती में आरक्षण के विवाद को हम सुलझा नहीं पाए और यह बात पिछड़ों के मन में ऐसे बैठ गई, जिससे बहुत बड़ा सियासी नुकसान हुआ.

अपने ही सरकार पर उठा रहे सवाल

लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बुरी हार के बाद एक तरफ बीजेपी में समीक्षा का दौर जारी है दूसरी तरफ पार्टी के नेता और सहयोगी दल, सरकार के काम करने के तरीकों पर सवाल उठाने लगे हैं. चाहे डिप्टी सीएम हो, सहयोगी दलों के बड़े नेता हो, मंत्री हो या पूर्व सांसद सभी के पास अपने-अपने तर्क हैं. इस हार की वजह को लेकर जो बातें कही जा रही हैं उससे सबकी उंगली अपनी ही सरकार की तरफ उठ रही है. 

अनुप्रिया पटेल ने यूपी सरकार को घेरा

सबसे पहले बात कर लेते हैं अनुप्रिया पटेल की. अनुप्रिया पटेल की साक्षात्कार के नौकरियां में ओबीसी दलित और अनुसूचित जनजाति के साथ भेदभाव के आरोपी ने खूब सुर्खियां बटोरी. वहीं  पिछले दिनों अनुप्रिया पटेल ने 69 हजार शिक्षकों के भर्ती का मुद्दा उठा कर अपने ही सरकार पर फिर से सवाल उठा दिया. लोकसभा चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन के पीछे अनुप्रिया पटेल ने  69000 शिक्षक भर्ती के मामले को भी बड़ी वजह माना. 

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निषाद पार्टी भी नहीं पीछे

वहीं कन्नौज के पूर्व सांसद और भाजपा नेता सुब्रत पाठक ने भी उत्तर प्रदेश में होने वाले प्रतियोगी परीक्षाओं में पेपर लीक के मुद्दे को उठाया है. उन्होंने कहा कि, 'पेपर लीक की वजह से बड़ी नाराजगी आम लोगों में फैल गई थी, जिससे सियासी नुकसान हुआ है.' वहीं यूपी सरकार में मंत्री और NDA के सहयोगी संजय निषाद ने कहा कि, 'आरक्षण का मामला हल करना होगा. निषादों में भी नाराजगी इस बात को लेकर काफी ज्यादा फैली है कि सरकार ने अपने वादे के अनुरूप निषादों को और  आरक्षण नहीं दिया. निषादों को दलितों की कैटेगरी में रखने का जो आश्वासन दिया गया था वह अभी तक ठंडे बस्ते  पड़ा हुआ है.'

बड़ा हुआ आराक्षण का मुद्दा

संजय निषाद ने तो जल्द से जल्द आरक्षण के भीतर आरक्षण यानी पिछड़ों में अति पिछड़े और दलितों में अति दलितों के आरक्षण को करने की मांग की है. संजय निषाद ने कहा कि जल्द से जल्द सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट लागू की जानी चाहिए, जिसमें कोटा के भीतर कोटा का प्रावधान है. उधर डिप्टी सीएम बृजेश पाठक, योगी सरकार के नए फैसले जिसमें वीआईपी कल्चर के तहत नेताओं के होटल उतारे जा रहे हैं. गाड़ियों के काले शीशे हटाए जा रहे हैं और बाकायदा उनका वीडियो बनाया जा रहा है. इस पर अपने ही शासन-प्रशासन पर बरसे और कहा कि बीजेपी नेताओं-कार्यकर्ताओं के साथ किसी भी तरह के दुर्व्यवहार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. 

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कुल मिलाकर योगी सरकार को फिलहाल चुनाव के बाद पार्टी के भीतर और पार्टी के साथ खड़े सहयोगियों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है. इशारों ही इशारों में यह सभी लोग अपनी ही सरकार पर हर का ठीकरा फोड़ रहे हैं.हांलाकि योगी आदित्यनाथ की सरकार जिस तरीके से ताबड़तोड़ एक्शन में है और और जिस तरीके से मुख्यमंत्री ने पूरे सिस्टम को अपने कंट्रोल में लेकर काम करना शुरू कर दिया है, उसे देख ऐसा लगता नहीं की पार्टी के नेताओं या सहयोगी दलों के नेताओं का कोई दबाव काम आएगा.
 

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