100 से अधिक सीटों पर होगा खेल? ममता के ‘पांच के पंच’ में अखिलेश भी शामिल! समझिए पूरा गणित

अमीश कुमार राय

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यूपी को लेकर 2024 की सियासत तेज होती नजर आ रही है. पहले नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने अखिलेश यादव ( Akhilesh Yadav) और मुलायम यादव (Mulayam Yadav) से दिल्ली में मुलाकात की. फिर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने 2023 के पंचायत चुनावों से जुड़ी एक बैठक में अखिलेश के नाम का जिक्र कर दिया. ममता बनर्जी ने अखिलेश के साथ-साथ बिहार सीएम नीतीश और झारखंड सीएम हेमंत सोरेन (Hemant Soren) का नाम लेते हुए ‘खेले होबे’ का नारा दिया और दावा किया कि पांच राज्य मिलाकर बीजेपी की लोकसभा टैली में से 100 सीटें माइनस कर देगा.

अब तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो के ‘पांच के पंच’ और इसमें दूसरे दिग्गज नेताओं संग अखिलेश की भूमिका समझने से पहले आइए सुन लेते हैं कि आखिर ममता बनर्जी ने कहा क्या था. यहां नीचे दिए गए वीडियो पर क्लिक कर आप ममता के हालिया संबोधन को सुन सकते हैं.

ममता के दावों में कितना दम?

ममता बनर्जी दावा कर रही हैं अखिलेश, नीतीश, हेमंत के अलावा बाकी विपक्षी नेता भी साथ हैं और पांच राज्यों में इस एकता से वह बीजेपी की 100 सीटें घटा देंगी. हालांकि 2024 के चुनाव अभी दूर हैं, लेकिन बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए एक विपक्षी एकता की कवायद जरूर आकार लेती दिखाई दे रही है.

पिछले दिनों बिहार में बीजेपी का साथ छोड़ नीतीश कुमार ने राजद के साथ सरकार बनाई. इसके बाद से ही नीतीश कुमार देशभर के मुख्य विपक्षी नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं. नीतीश कुमार इस क्रम में राहुल गांधी, सीताराम येचुरी, अरविंद केजरीवाल, शरद पवार, के चंद्रशेखर राव जैसे नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं.

हालांकि कभी नीतीश कुमार के खास रहे और अब अलग राह पर चल रहे प्रशांत किशोर ने इन मुलाकातों पर तंज कसते हुए यह भी कहा है कि सिर्फ चार नेताओं से मिलने से, उनके साथ चाय पीने से जनता पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

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हालिया सर्वे क्या इशारा करते हैं?

बहरहाल, इस विपक्षी एकता की कवायद और ममता बनर्जी के हालिया बयान का विश्लेषण करने से पहले हालिया सर्वे पर एक नजर डालने की जरूरत है. पिछले दिनों इंडिया टुडे (India Today) और C वोटर्स के मूड ऑफ द नेशन (Mood of the Nation Poll) सर्वे के आंकड़े सामने आए थे.

फरवरी 2022 से लेकर 9 अगस्त 2022 के बीच कराए गए इस सर्वे में 122016 लोगों ने हिस्सा लिया. सर्वे के मुताबिक, 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में यूपी में एक बार फिर एनडीए 70 सीटों का आंकड़ा छू सकता है, बाकि 10 सीटों में यूपीए और अन्य दलों के रहने की संभावना है.

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अब चूंकि ममता के पांच के पंच में एक राज्य यूपी और अखिलेश भी शामिल हैं, तो सवाल यह उठता है कि आखिर उनके बीजेपी की 100 सीटें छीनने के दावे में कितना दम है?

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हालांकि ममता बनर्जी ने पांच राज्यों का जिक्र किया, लेकिन नेताओं के नाम गिनाने की बारी आई तो अखिलेश, नीतीश, हेमंत और खुद समेत 4 नाम ही गिनाए. आइए पहले ये जान लें कि 2019 के चुनावों में इन 4 राज्यों में बीजेपी की कितनी सीटें थीं.

बिहार (40 सीटें)

बीजेपी 17

जेडीयू 16

एलजेपी 06

कांग्रेस 01

आरजेडी 00

(इस चुनाव में बीजेपी और जेडीयू साथ थे, अब नीतीश की राह अलग है.)

झारखंड (14 सीटें)

बीजेपी 11

AJSU`01

कांग्रेस 01

JMM 01

यूपी (80 सीटें)

बीजेपी 69

अपना दल 02

बीएसपी 10

एसपी 05

कांग्रेस 01

(एसपी-बीएसपी ने महागठबंधन बनाया था.)

पश्चिम बंगाल (42 सीटें)

TMC 22

BJP `18

कांग्रेस 02

सीपीएम 00

ममता के दावों की एनालिसिस एक्सपर्ट से समझिए

यूपी तक ने इस संबंध में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड पॉलिटिक्स (CSSP) के फेलो और युवराज दत्त पीजी कॉलेज, लखीमपुर खीरी में अध्यापक प्रोफेसर संजय कुमार से बात की. हमने उनसे जाना चाहा कि आखिर अखिलेश यादव को साथ में लेकर ममता या फिर नीतीश की इस कवायद के क्या मायने हैं.

प्रोफेसर संजय कुमार ने बताया कि चाहे ममता बनर्जी हों या नीतीश कुमार, ये दोनों कद्दावर नेता 2024 के आम चुनावों में विपक्षी एकजुटता की कवायद में लगे हैं. उनके मुताबिक अभी चुनावों में वक्त है और अगर इन नेताओं की कोशिशों से विपक्ष के प्रमुख दल एक साथ आते हैं, तो यह एक बड़ा सियासी डेवलपमेंट होगा.

प्रोफेसर संजय कुमार ने खासकर पश्चिम बंगाल और बिहार के सामाजिक-धार्मिक समीकरणों को रेखांकित करते हुए कहा कि ये दोनों राज्य ऐसे हैं जहां बीजेपी की राह कभी आसान नहीं रही. झारखंड का भी जिक्र करते हुए संजय कुमार ने कहा कि यहां भी सामाजिक और धार्मिक समीकरण ऐसा है कि बीजेपी को यहां विपक्षी एकता चौंका सकती है. खासकर आदिवासी वोट यहां गेम चेंजर साबित हो सकते हैं.

प्रोफेसर संजय कुमार ममता-अखिलेश-नीतीश-हेमंत सोरेन इक्वेश्न को रिलेवेंट तो मान रहे हैं लेकिन दो दलों को लेकर वह शंका भी जाहिर कर रहे हैं. उनका मानना है कि इस विपक्षी एकता को तबतक धारदार नहीं समझा जा सकता जबतक इसमें अरविंद केजरीवाल की AAP और राहुल गांधी वाली कांग्रेस की एंट्री नहीं होती.

संजय कुमार ने कहा कि अभी राहुल गांधी एक देशव्यापी पदयात्रा पर हैं. इसका असर देखा जाना अभी बाकी है. विपक्षी एकता में कांग्रेस की अपनी महत्वकांक्षाएं क्या हैं, ये अभी सामने आना है.

हालांकि वह एक बात जरूर मान रहे हैं कि ममता बनर्जी और नीतीश के प्रयासों के साथ अगर अखिलेश, हेमंत सोरेन, राहुल गांधी, केजरीवाल जैसे नेता खड़े नजर आते हैं, या इनके बीच कोई आम सहमति बनती है, तो यह बीजेपी के लिए काफी चुनौतीपूर्ण स्थिति होगी.

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