मथुरा: बीमारी से बच्चों की जिंदगी बचाने के लिए घर, गहने गिरवी रख रहे कोह गांव के लोग
मथुरा के कोह गांव में डेंगू-स्क्रब टायफस की वजह से अगस्त और सितंबर में 11 मौतें हो गईं. इन मौतों से गांव के लोग दशहत…
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मथुरा के कोह गांव में डेंगू-स्क्रब टायफस की वजह से अगस्त और सितंबर में 11 मौतें हो गईं. इन मौतों से गांव के लोग दशहत में जी रहे हैं और अपनी जमीन-सपंत्ति को गिरवी रखने के लिए मजबूर भी हो रहे हैं. उधर स्वास्थ्य विभाग दावा कर रहा कि जो भी मौतें हुई हैं, सिर्फ प्राइवेट अस्पतालों में हुई हैं.
27 अगस्त को 14 साल का सौरभ चौहान बीमार पड़ा. एक दिन बाद उसकी मां गुड्डी देवी उसे मथुरा के एक प्राइवेट अस्पताल में लेकर भागी. प्राइवेट अस्पताल का लंबा-चौड़ा बिल जल्द ही परिवार की चिंता का विषय बन गया. 30 अगस्त को सौरभ को आगरा के ही दूसरे प्राइवेट अस्पताल में रेफर कर दिया गया. बीमार बच्चे के साथ मां अस्पताल में फंसी रही, उधर पिता भूरा सिंह भी बेड पर थे. अस्पताल का बिल चुकाने के लिए उन्होंने घर पर रखे गहने गिरवी रख दिए. गुड्डी ने अपने मंगलसूत्र को गिरवी रखने से पहले एक बार भी नहीं सोचा क्योंकि बेटे सौरभ के इलाज के लिए और पैसों की जरूरत थी. परिवार ने रिश्तेदारों से 50 हजार रुपये कर्ज भी लिए.
31 अगस्त को सौरभ अपनी मां-पिता को छोड़कर चला गया. गुड्डी और भूरा का बड़ा बेटा नहीं रहा. अब परिवार के पास सिर्फ सौरभ की यादें और एक लाख रुपये तक का लोन है. उन्हें नहीं पता कि वह कैसे और कब उधार चुका पाएंगे. ये मथुरा के कोह गांव के वाशिंदे हैं और वे अकेले नहीं हैं, जिन्होंने यहां किसी अपने को खोया है.
कोह गांव में डेंगू के साथ स्क्रब टायफस और लेप्टोस्पायरोसिस भी फैला
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मथुरा के कोह गांव में डेंगू और दो दूसरी खतरनाक बीमारियों, स्क्रब टायफस और लेप्टोस्पायरोसिस, ने एक साथ दस्तक दी. अगस्त और सितंबर में इन बीमारियों के चलते गांव में 11 लोगों की मौत हो गई, जिनमें 10 बच्चे थे. कोह के लोगों का कहना है कि उनका सरकारी स्वास्थ्य सेवा पर से भरोसा उठ गया है और प्राइवेट अस्पतालों के लंबे चौड़े बिल को भरने के लिए उन्हें अपनी संपत्ति और गहने गिरवी रखने पड़ रहे हैं.
कोह का ऐसा ही एक परिवार है हरिशंकर का. इनके परिवार में 15 लोग बीमार पड़े लेकिन उनका 8 साल का बेटा टिंकू दूसरों जैसा भाग्यशाली नहीं रहा. अस्पताल ले जाते वक्त रास्ते में ही टिंकू ने दम तोड़ दिया. पिता के पास शोक मनाने का भी पूरा वक्त नहीं था क्योंकि उसे अपनी 13 साल की बीमार बेटी मोहिनी को लेकर आगरा के एक प्राइवेट अस्पताल में भागना पड़ा. मोहिनी 5 सिंतबर को ठीक होकर घर वापस आई.
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हरिशंकर ने हमें बताया, ‘सरकारी अस्पताल में कोई सुनवाई नहीं थी. इस वजह से हमें आगरा के प्राइवेट अस्पताल में भागना पड़ा.’ उन्होंने कहा कि इलाज के लिए पैसा जुटाने के क्रम में उन्हें अपना घर गिरवी रखना पड़ा. अब लोन कैसे चुकता होगा? अपने बेटे को खो चुके इस पिता को अभी इस सवाल का जवाब तलाश करना है. अभी परिवार के कुछ सदस्य बीमार ही हैं, जिनको ठीक होना है.
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कोह में बीमारी ने लोगों के अंदर डर पैदा कर दिया है. बुजुर्गों ने हमें बताया कि गांव के कई परिवार ने बच्चों और उनकी मां को दूसरे गांवों में अपने संबंधियों के पास भेज दिया है. गांव को जकड़ी अनजान बीमारी के बीच वे खुद को असहाय महसूस कर रहे थे. पिछले दिनों, संभवतः 2 सितंबर को एक वीडियो वायरल हुआ था. इसमें कोह के एक बुजुर्ग किशन सिंह मथुरा सीएमओ रचना गुप्ता के पैरों में गिरते दिख रहे थे. इसके बाद प्रशासन सक्रिय हुआ. स्पेशल कमेटी बनाई गई. कोह में 24 घंटे चलने वाला मेडिकल कैंप खोला गया.
कैंप हमें कुछ इस हाल में मिला
जब हम कोह के मेडिकल कैंप में पहुंचे तो हमें दवा से भरी हुई टेबल मिली. पूरे कैंप में एक बल्ब जल रहा था. ग्रामीणों की तरफ से मिली 3 चारपाइयां रखी थीं और स्लाइन बोतल चढ़ाने वाले स्टैंड पड़े थे. जब हमें कोई मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव नही मिला, तो हमने इस बात ग्रामीणों और ग्राम प्रधान से बात की.
उन्होंने एकसुर में कहा कि वे इस बात को लेकर पुख्ता तौर पर नहीं कह सकते कि कैंप में डॉक्टर आते भी हैं या नहीं. यहां आने वाले लोगों को फार्मासिस्ट्स की तरफ से सिर्फ दवाएं ही दी जाती हैं. अगर मरीज की हालत खराब है, तो वे उसे शहर के सरकारी अस्पताल में रेफर कर देते हैं.
गांव के प्रधान हरेंद्र चौहान भी स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराई गई व्यवस्था से नाराज नजर आए. सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से जुड़े होने के बावजूद वह जिला प्रशासन की आलोचना करने में कोई कोताही बरतते नजर नहीं आए. उन्होंने कहा कि मेडिकल टीम, स्थानीय विधायक और राज्य मंत्री के दौरे ने समस्या का हल नहीं किया. कोह में हुई 11 मौतों में एक मौत हरेंद्र के परिवार से भी हुई.
हालांकि सीएमओ रचना गुप्ता का दावा है कि कोह मेडिकल कैंप में ऑल इज वेल है. उन्होंने बताया कि सेंटर पर तीन शिफ्ट में 3 डॉक्टर काम कर रहे हैं. वह आगे कहती हैं, ‘सरकारी अस्पताल में किसी की मौत नहीं हुई.’
मथुरा के इस गांव के लोग प्रशासन से खफा हैं. मृतक सौरभ के चाचा सोनू सिंह जैसे लोग पीड़ित परिवारों के लिए मुआवजे की मांग कर रहे हैं. एक तरफ जहां कोह के लोगों का जीवन खौफ और कर्जेदारी के चक्र में फंस गया है, वहीं स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि मौतें सिर्फ प्राइवेट अस्पताल में हुई हैं. गांववालों का दावा है कि उन्हें प्राइवेट अस्पतालों की ओर इसलिए भागना पड़ रहा है क्योंकि सरकारी अस्पताल इस जानलेवा संकट से लड़ने लायक हैं ही नहीं.
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