पसमांदा मुसलमानों को रिझाने में जुटी भाजपा, मायावती बोलीं- ‘ये RSS का अब नया शिगुफा है’

यूपी तक

• 05:17 AM • 16 Nov 2022

UP Political News: साल 2024 में उत्तर प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने का लक्ष्य लेकर चल रही सत्तारूढ़ भारतीय जनता…

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UP Political News: साल 2024 में उत्तर प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने का लक्ष्य लेकर चल रही सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आगामी नगरीय निकाय चुनावों से पहले मुसलमानों के सबसे बड़े तबके यानी पसमांदा (पिछड़े) समाज को अपने पाले में लाने की कोशिशों में जुटी है. प्रदेश के हर नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायत क्षेत्र में पसमांदा मुसलमानों के सम्मेलन कराने की योजना बना रही भाजपा का दावा है कि वह इस पिछड़े वर्ग का सामाजिक और आर्थिक उत्थान करने के बाद अब उनका राजनीतिक उत्थान भी करना चाहती है. वहीं, दूसरी तरफ विपक्षी दलों ने भाजपा के इन प्रयासों को छलावा करार दिया है. अब इसी कड़ी में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सुप्रीमो मायावती ने भाजपा पर निशाना साधा है. मायावती ने बुधवार को ट्वीट कर कहा कि ‘अपने केवल संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थ की खातिर पसमांदा मुस्लिम समाज का राग भाजपा व आरएसएस का अब नया शिगुफा है.’

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बसपा सुप्रीमो ने कहा,

“अपने केवल संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थ की खातिर ’पसमान्दा मुस्लिम समाज’ का राग भाजपा व आरएसएस का अब नया शिगुफा, जबकि मुस्लिम समाज पहले मुसलमान हैं तथा उनके प्रति इनकी सोच, नीयत, नीति एवं उनका ट्रैक रिकॉर्ड क्या व कैसा है यह किसी से भी छिपा नहीं.”

मायावती

उन्होंने कहा, “भाजपा की मुस्लिम समाज के प्रति निगेटिव सोच का परिणाम है कि इनकी सरकार में भी वे लगभग उतने ही गरीब, पिछड़े, त्रस्त एवं जान-माल-मजहब के मामलों में असुरक्षित हैं जितने वे कांग्रेसी राज में थे. मुस्लिम समाज का, दलितों की तरह पसमांदा व उपेक्षित बने रहना अति-दुःखद व दुर्भाग्यपूर्ण.”

बसपा चीफ ने आगे कहा, “जबकि बीएसपी की यूपी में चार बार रही सरकार में सर्वसमाज के हित-कल्याण व सुरक्षा-सम्मान के साथ-साथ हमेशा उपेक्षित रहे दलित, पिछड़ा एवं अक्लियत समाज के लोगों के जान-माल-मजहब आदि की सुरक्षा तथा न्याय की गारंटी यहां पहली बार कानून द्वारा कानून का राज स्थापित करके सुनिश्चित की गई.”

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की कुल आबादी का 85 प्रतिशत हिस्सा पसमांदा बिरादरियों का है. इसमें अंसारी, कुरैशी, मंसूरी, सलमानी और सिद्दीकी समेत 41 जातियां शामिल हैं. यह वर्ग सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक लिहाज से सबसे पिछड़ा है.

उत्तर प्रदेश के 72 विधानसभा और लगभग 14 लोकसभा क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाता अपना प्रभाव रखते हैं. पसमांदा मुसलमानों की संख्या को देखते हुए अगर किसी पार्टी को इस तबके का समर्थन मिलता है तो यह नतीजों पर फर्क डाल सकता है.

सीएसडीएस-लोकनीति के एक सर्वे के मुताबिक इस साल के शुरू में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में करीब आठ प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं ने भाजपा को वोट दिया था, जो 2017 के आंकड़े के मुकाबले एक फीसदी ज्यादा रहा.

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