साल 2025 भारत की संस्कृति, परंपरा और धरोहर के पुनरुत्थान का वर्ष रहा. महाकुंभ के भव्य आयोजन से लेकर दीपावली को यूनेस्को की इंटैन्जिबल हेरिटेज सूची में शामिल किए जाने तक, इस साल ने दुनिया के सामने भारत की सांस्कृतिक ताकत को नई ऊंचाई दी.
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महाकुंभ में कलाग्राम: संस्कृति का जीवंत संसार
प्रयागराज महाकुंभ 2025 की सबसे बड़ी विशेषता रहा 10.24 एकड़ में फैला कलाग्राम. इसने भारत की मूर्त और अमूर्त दोनों ही सांस्कृतिक संपदाओं को एक मंच दिया. यहां पारंपरिक शिल्पकला, लोककला, संगीत, नृत्य और हस्तशिल्प की सैकड़ों विधाओं ने आगंतुकों को भारत की आत्मा से जोड़ा. संस्कृति मंत्रालय ने इस अवसर पर महाकुंभ का लोगो देशभर के संरक्षित स्मारकों पर प्रोजेक्ट किया. इससे पूरे भारत में एकता और आध्यात्मिकता का संदेश फैला.
सालभर चलता रहा सांस्कृतिक उत्सवों का सिलसिला
साल 2025 के उत्तरार्ध में भारत ने कई ऐतिहासिक अवसरों का आयोजन किया-
⦁ वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर वर्षभर का समारोह नवंबर में शुरू हुआ.
⦁ अहिल्याबाई होल्कर के 300वें जन्मशती समारोह भोपाल में हुआ.
⦁ सरदार वल्लभभाई पटेल और श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती पर देशभर में आयोजन हुए.
भारत की दो नई यूनेस्को उपलब्धियां
जुलाई में यूनेस्को ने ‘मराठा मिलिट्री लैंडस्केप्स ऑफ इंडिया’ को वर्ल्ड हेरिटेज सूची में शामिल किया. महाराष्ट्र के 11 और तमिलनाडु के 1 किले इस सूची में जोड़े गए. दिसंबर में दीपावली को ‘मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर’ के रूप में मान्यता मिली. यह भारत का 16वां तत्व है. पहले इसके अंतर्गत कुंभ मेले, दुर्गा पूजा, गरबा, योग और रामलीला जैसी परंपराएं शामिल हो चुकी हैं. इसे लेकर केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा कि यूनेस्को का यह टैग सिर्फ सम्मान नहीं, बल्कि जिम्मेदारी भी है कि दीपावली को जीवित परंपरा बनाए रखें.
दिल्ली में यूनेस्को बैठक और ज्ञान भारतम पहल
दिसंबर में लाल किले पर यूनेस्को की “Intangible Cultural Heritage” समिति का 20वां सत्र आयोजित हुआ. पहली बार भारत ने इस वैश्विक मंच की मेजबानी की. इसी साल सितंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘ज्ञान भारतम’ पोर्टल लॉन्च किया. यह एक खास राष्ट्रीय अभियान है जिसके जरिए देश की दुर्लभ पांडुलिपियों को डिजिटाइज और संरक्षित किया जा रहा है.
बौद्ध पवित्र अवशेष से जुड़ी अहम पहल
2025 में भारत ने भगवान बुद्ध की पवित्र धरोहरों की रक्षा और पुनर्प्रदर्शन की दिशा में भी उल्लेखनीय कदम उठाए. देश ने हांगकांग में हुई नीलामी को रोककर पिपरहवा (उत्तर प्रदेश) से मिले दुर्लभ अवशेष वापस लाए. अगले वर्ष श्रीलंका में देवनीमोरी अवशेषों का प्रदर्शन आयोजित होने जा रही है. जाता हुआ 2025 सिर्फ त्योहारों का साल नहीं था. हम कह सकते हैं कि यह भारत की सांस्कृतिक आत्मा के पुनर्जागरण का प्रतीक बनकर इतिहास में दर्ज हो गया. चाहे प्रयागराज का कलाग्राम हो या दीपावली का यूनेस्को सम्मान, हर आयोजन ने यही बताने की कोशिश की कि भारत की संस्कृति आज भी जीवंत है और यह विश्व को जोड़ने वाली सबसे बड़ी शक्ति है.
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