आगरा में एक चौंकाने वाले धर्मांतरण रैकेट का पर्दाफाश हुआ है. जांच एजेंसियों की मानें, तो यहां अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (ISIS) के पैटर्न पर लड़कियों का ब्रेनवॉश किया जा रहा था. इस मामले की शुरुआत तब हुई जब आगरा की दो बहनें लापता हो गईं. इसके बाद पुलिस जांच में एक बड़े अवैध धर्मांतरण नेटवर्क का खुलासा हुआ. लड़कियों को बहकाकर उनका माइंड वॉश करने के लिए कनाडा से वाया गोवा करोड़ों रुपये आते थे. इस रैकेट की मुख्य कड़ी आयशा नाम की एक महिला थी, जिसका नेटवर्क जानकर आप हिल जाएंगे. पुलिस के मुताबिक लापता बहनों में से एक ने सोशल मीडिया पर AK-47 राइफल पकड़े लड़की की तस्वीर अपनी प्रोफाइल पिक्चर लगाई थी, जो उनके कट्टरपंथ के रास्ते पर जाने का एक सबूत के तौर पर देखी जा रही है. इस मामले में छह राज्यों से 10 लोगों को गिरफ्तार किया है. इनमें गोवा से आयशा, कोलकाता से अली हसन और ओसामा, आगरा से रहमान कुरैशी, और अन्य राज्यों से भी आरोपी शामिल हैं. आगरा के पुलिस आयुक्त दीपक कुमार ने बताया कि इस गैंग का तरीका ISIS से मिलता-जुलता है और इसके लिए अमेरिका व कनाडा से भी फंडिंग के सुराग मिले हैं.
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धर्मांतरण सिंडिकेट के इस मामले पर हमारे संवादाता संतोष शर्मा ने ग्राउंड रिपोर्ट की है, जिसमें कई चौंकाने वाले खुलासे सामने आए हैं.
कैसे खुली धर्मांतरण की पोल
इस पूरे सिंडिकेट का खुलासा आगरा के सदर बाजार थाने में 24 मार्च 2025 को दर्ज हुई दो बहनों की गुमशुदगी के एक मामले से हुआ. पुलिस की जांच में पता चला कि बड़ी बहन चार साल पहले यानी 2021 में भी घर से गायब होकर कश्मीर चली गई थी. वहां उसकी मुलाकात एक 'सायमा' नाम की महिला से हुई जिसने उसे नेट कोचिंग के दौरान इस्लाम को लेकर उसका ब्रेनवॉश करना शुरु कर दिया. इस बीच सायमा ने उसे कश्मीर ले जाने के लिए तैयार किया और वह श्रीनगर पहुंच भी गई. लेकिन रास्ते में हुए लैंडस्लाइड के कारण पुलिस उसे समय रहते बरामद करने में कामयाब रही और घर वापस भेज दिया. लेकिन चार साल बाद वही लड़की अपनी 19 साल की छोटी बहन को लेकर फिर लापता हो गई. इस बार दोनों बहनों को कोलकाता से बरामद किया गया.
गोवा की रहने वाली आयशा इस पूरे नेटवर्क की फंड मैनेजर थी. कनाडा में बैठे सैयद दाऊद अहमद से आने वाली करोड़ों की फंडिंग को वही भारत में बांटा करती थी. इस पैसे को ट्रैक से बचाने के लिए यूएई, लंदन और अमेरिका जैसे कई देशों से घुमाकर भारत भेजा जाता था. वहीं आयशा का पति शेखर राय इस गिरोह का कानूनी सलाहकार था. धर्मांतरण के लिए जरूरी दस्तावेज, नाम बदलवाने की प्रक्रियाऔर फर्जी पहचान पत्र बनवाना ये सभी काम वही संभालता था.
वहीं दिल्ली से गिरफ्तार किया गया मनोज उर्फ मुस्तफा नाबालिग लड़कियों को नई जिंदगी का सपना दिखाकर बहकाता था. वह लड़कियों के लिए नए मोबाइल फोन और फर्जी नाम-पते पर प्री-एक्टिवेटेड सिम कार्ड्स का इंतजाम करता था. लड़कियों को ट्रेन के बजाय बसों से भेजा जाता था ताकि उनकी लोकेशन ट्रेस न हो सके. दिल्ली से उन्हें उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में भेजकर इस्लामी लाइफस्टाइल को अपनाने के लिए मजबूर किया जाता था.
आगरा का रहने वाला अब्दुल रहमान कुरैशी इस सिंडिकेट का एक और बड़ा मोहरा था. वह यूट्यूब पर एक चैनल चलाता था और अपने पॉडकास्ट के जरिए इस्लामी कट्टरपंथ और हिंदू धर्म के खिलाफ नफरत भरा प्रोपेगेंडा फैलाता था. कोलकाता से गिरफ्तार ओसामा के साथ मिलकर वह लड़कियों को 'इस्लामी बहन' बनाने की ट्रेनिंग देता था. वीडियो के जरिए हिंदू धार्मिक प्रतीकों का अपमान किया जाता था और उन्हें 'बुतपरस्ती' बताकर मानसिक रूप से कमजोर किया जाता था.सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे इंस्टाग्राम, फेसबुक, यूट्यूब पर पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ के पूजा करते हुए वीडियो पोस्ट कर बताया जाता था कि इस्लाम में मूर्ति पूजा 'हराम' है.
'कश्मीर से आने के बाद बदल गई बड़ी बेटी'
पीड़ित परिवार ने बताया कि उनकी बड़ी बेटी कश्मीर जाने से पहले नवरात्रि के व्रत रखती थी और देवी-देवताओं में आस्था रखती थी. लेकिन कश्मी से लौटने के बाद 'गणेश भगवान को सूंड़ वाला देवता' बताने लगी और हिंदू देवी-देवताओं को 'बुत परस्ती' कहकर उनका विरोध करने लगी. वह हिजाब पहनने और पर्दा करने की बात करती थी. परिवार ने चार साल तक अपनी बेटी पर कड़ी निगरानी रखी. यहां तक कि घर से बाहर निकलना भी बंद कर दिया. लेकिन अंत में वह अपनी 19 साल की छोटी बहन को लेकर फिर भाग निकली.
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