डिजिटल अरेस्ट के चक्कर में आगरा की लड़की ने गवां दिए 20 लाख रुपए, फर्जी अफसर बनकर करते थे ब्लैकमेल

उत्तर प्रदेश के आगरा में साइबर क्राइम पुलिस ने एक अंतरराज्यीय साइबर ठगी गिरोह का पर्दाफाश किया है.  ये गिरोह डिजिटल अरेस्ट की आड़ में लोगों को डराकर लाखों रुपये की ठगी कर चुका है.

Agra News

अरविंद शर्मा

• 04:23 PM • 26 May 2025

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उत्तर प्रदेश के आगरा में साइबर क्राइम पुलिस ने एक अंतरराज्यीय साइबर ठगी गिरोह का पर्दाफाश किया है.  ये गिरोह डिजिटल अरेस्ट की आड़ में लोगों को डराकर लाखों रुपये की ठगी कर चुका है. पुलिस ने इस मामले में एक शातिर आरोपी रवींद्र प्रसाद वर्मा को राजस्थान के सीकर से गिरफ्तार किया है. जो खुद को सीबीआई, टीआरएआई, ईडी, सुप्रीम कोर्ट और पुलिस जैसे सरकारी विभागों का अधिकारी बताकर लोगों को मनी लॉन्ड्रिंग और ड्रग स्मगलिंग जैसे फर्जी मामलों में फंसाने की धमकी देता था.

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कैसे सामने आया मामला?

यह मामला तब सामने आया जब आगरा की रहने वाली एक लड़की ने थाना साइबर क्राइम में शिकायत दर्ज कराई कि उसके साथ डिजिटल अरेस्ट के जरिए ठगी  हुई है.  पीड़िता ने बताया कि उसे एक वीडियो कॉल के माध्यम से मुंबई पुलिस का अधिकारी बताने वाले व्यक्ति ने संपर्क किया. कॉलर ने दावा किया कि पीड़िता का एक पार्सल जब्त किया गया है, जिसमें मनी लॉन्ड्रिंग और धोखाधड़ी से जुड़े दस्तावेज मिले हैं. इसके बाद, फर्जी पुलिस प्रेस नोट और कथित सुप्रीम कोर्ट के आदेश दिखाकर पीड़ित को डराया गया. उसे डिजिटल अरेस्ट में रखा गया और डर के मारे उसने 16 लाख 20 हजार रुपये ठगों के खातों में ट्रांसफर कर दिए.
 
आगरा साइबर क्राइम पुलिस ने इस मामले में  कार्रवाई करते हुए गहन तकनीकी जांच की. जांच के दौरान पुलिस ने राजस्थान के सीकर से 21 साल के रवींद्र प्रसाद वर्मा उर्फ रघुवीर प्रसाद वर्मा को गिरफ्तार किया. पूछताछ में आरोपी ने सनसनीखेज खुलासे किए. उसने बताया कि वह एक अंतरराज्यीय साइबर ठगी गिरोह का हिस्सा है, जो देश के विभिन्न हिस्सों में सक्रिय है. यह गिरोह वीडियो कॉलिंग ऐप्स जैसे स्काइप, व्हाट्सएप और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल कर लोगों को सरकारी अधिकारी बनकर डराता था.
 
आरोपी ने बताया कि गिरोह के सदस्य फर्जी दस्तावेज, जैसे पुलिस नोटिस, कोर्ट के आदेश और डिजिटल वारंट, तैयार करते थे. ये दस्तावेज इतने विश्वसनीय लगते थे कि पीड़ित आसानी से उनके जाल में फंस जाते थे. इसके बाद, पीड़ितों को क्यूआर कोड, ऑनलाइन बैंक ट्रांसफर या चेक के जरिए पैसे ट्रांसफर करने के लिए मजबूर किया जाता था. गिरोह ने इस तरह की ठगी के लिए एक सुनियोजित तंत्र विकसित किया था, जिसके जरिए वे देशभर में लाखों रुपये की ठगी कर चुके हैं.

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