Bahraich News: उत्तर प्रदेश के बहराइच से सैयद जुड़े सालार मसूद गाजी का नाम सुर्खियों में है. महाराष्ट्र में मुगल बादशाह औरंगजेब को लेकर मचे सियासी घमासान के बीच, यूपी के संभल जिले में सालार मसूद गाजी के नाम पर लगने वाले नेजा मेले पर रोक लगाने का फैसला चर्चा का विषय बन गया है. संभल प्रशासन ने इस मेले की अनुमति देने से साफ इनकार कर दिया, जिससे यह मुद्दा और गरमा गया है. वहीं, इतिहास में सालार मसूद गाजी के नाम की अहमियत को लेकर भी उत्सुकता देखने को मिल रही है. खबर में आगे विस्तार से जानिए सालार मसूद गाजी का बहराइच जिले से क्या कनेक्शन है?
ADVERTISEMENT
क्या है सालार मसूद गाजी का भारत में इतिहास?
सालार मसूद गाजी कौन था, भारत में उसका क्या इतिहास है, उसका जन्म कहां हुआ, उसकी मौत कैसे हुई? ऐसी बहुत सी बाते हैं जिसे जानना बेहद अहम है. जानकारों के मुताबिक, सैयद सालार मसूद गाजी का जन्म 11वीं सदी में 1014 ईस्वी में अजमेर में हुआ था. वह विदेशी आक्रांता महमूद गजनवी का भांजा होने के साथ उसका सेनापति भी था. 'तलवार की धार पर अपनी विस्तारवादी सोच' के साथ सालार मसूद गाजी 1030-31 के करीब अवध के इलाकों में सतरिख (बाराबंकी) होते हुए बहराइच-श्रावस्ती के इलाके में पहुंचा. उस दौरान इस क्षेत्र में श्रावस्ती के राजा सुहेलदेव का शासन था.
1034 ईस्वी में बहराइच जिला मुख्यालय के पास बहने वाली चित्तौरा झील के किनारे महराजा सुहेलदेव ने अपने 21 अन्य छोटे-छोटे राजाओं के साथ मिलकर सालार मसूद गाजी से युद्ध किया और उसे युद्ध में पराजित कर मार डाला. जिसके बाद उसे बहराइच के के दरगाह शरीफ में दफना दिया गया. ऐसी भी मान्यता है कि जिस स्थान पर सालार मसूद को दफनाया गया, वहां बालार्क ऋषि का आश्रम था और उसी आश्रम के पास एक कुंड था, जिसे सूर्यकुण्ड कहा जाता था. लेकिन सालार मसूद गाजी की मौत के 200 वर्षों बाद 1250 में दिल्ली के तत्कालीन मुगल शासक नसीरुद्दीन महमूद ने सालार की कब्र पर एक मकबरा बनवा दिया और उसे संत के तौर पर पहचान दिलाई. बाद में एक अन्य मुगल शासक फिरोज शाह तुगलक ने इसी मकबरे के बगल कई गुमबदों का निर्माण कराया. अब्दी गेट लगवाए जो आगे चलकर सालार मसूद गाजी की दरगाह के तौर पर विख्यात हुआ.
सालार मसूद गाजी की दरगाह पर हिंदू श्रद्धालू भी चढ़ाते हैं चादर
इस स्थान पर एक अन्य बात जो सबसे अहम है वह यह कि पिछले सैकड़ों वर्षों में इस दरगाह पर मुस्लिमों के साथ एक बड़ी तादात हिंदू श्रद्धालुओं की भी जुड़ी है. इस दरगाह पर हर वर्ष मुख्य रूप से चार उर्स (धार्मिक जलसे) के आयोजन होते हैं, जिसे उत्तर प्रदेश की वक्फ नंबर 19 की इंतजामिया कमेटी बड़े जोश के साथ मनाती है. लेकिन यहां जेठ (मई-जून) के महीने में पूरे एक माह चलने वाला जेठ मेले का आयोजन होता है. जिसमें शुरुआती रविवार के दिन भारत के पूर्वांचल क्षेत्र से लाखों की तादात में हिंदू मुस्लिम जायरीन अपने निशान के साथ बिना दूल्हे की बारात लेकर मकबरे पर चादर पोशी करने पहुंचते हैं. इस दौरान हिंदू श्रद्धालुओं की तादात मुस्लिम श्रद्धालुओं से कहीं अधिक होती है. कई हिंदू श्रद्धालु अपनी मन्नतों के पूरा होने के चलते 25-30 वर्षों से अधिक समय से इस मेले में जियारत (पूजा अर्चना) करने पहुंचते हैं.
वहीं दूसरी ओर बहराइच में ही उस चित्तौरा झील पर जहां महाराजा सुहेलदेव व सालार मसूद गाजी के बीच युद्ध हुआ था, उस स्थान पर बहराइच जिले की महाराजा सुहेलदेव सेवा समिति से जुड़े लोग जेठ मेले के शुरुआती दिन विजयोत्सव दिवस मनाते हैं.
CM बनने से पहले योगी आदित्यनाथ सालार मसूद गाजी पर रहे हैं हमलावर!
संभल पुलिस प्रशासन ने भले ही सालार मसूद गाजी की याद में लगने वाले नेजा मेले के लिए अनुमति देने से इनकार कर दिया हो. लेकिन योगी आदित्यनाथ, सीएम बनने से पहले सालार मसूद गाजी को आक्रांता बताकर उसके अनुयाइयों को अपना साफ संदेश देते रहे हैं. बहराइच की पिछले चुनावों की जनसभाओं में भी सीएम योगी ने सालार मसूद गाजी के आक्रांता स्वरूप पर जमकर हमला बोला था.
सालार मसूद गाजी की दरगाह को लेकर क्या कहती हैं हिंदू महिला श्रद्धालू
बहराइच में सालार मसूद गाजी की दरगाह में जियारत करने पहुंची हिंदू महिला श्रद्धालू सुशीला जायसवाल कहती हैं कि इस दरगाह से उनकी आब्दी मन्नत पूरी हुई है. वह यहां पिछले तरह वर्षों से आ रही हैं. उन्हें बेटा नहीं था. इसके लिए उन्होंने यहां मन्नत मांगी और वह पूरी हुई. उनके जैसे बहुत सारे हिंदू -मुस्लिम श्रद्धालू हैं, जो बस में भर-भर के यहां चादर चढ़ाने आती हैं. वो लोग यहां तीन दिन रुकते हैं. बाबा को मिठाई फल-फूल व चादर चढ़ाते हैं और सबकी मन्नत पूरी होती है. उनका कहना है कि यहां लगने वाले मेले पर सरकार रोक न लगाए.
ADVERTISEMENT
