उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल एक्सप्रेसवे पर हालिया सामने आए एक मामले ने लोगों की प्राइवेसी को लेकर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं. पूर्वांचल एक्सप्रेसवे पर एक कार में कपल के निजी पल वहां लगे हाई-रेजोल्यूशन एंटी ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम (ATMS) कैमरे में कैद हो गए. यह वीडियो न केवल सोशल मीडिया पर वायरल हुआ बल्कि कई पॉर्न वेबसाइट्स पर भी अपलोड हो गया. अब इस घटना ने लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अगर उनका कोई निजी वीडियो सहमति के बिना ऑनलाइन या पॉर्न वेबसाइट्स पर अपलोड हो जाता है तो उनके पास क्या कानूनी विकल्प और कार्रवाई के अधिकार हैं? वीडियो डिलीट कराने के लिए क्या करना होगा? इन सवालों का जवाब आपको खबर में विस्तार से मिलेगा.
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वीडियो डिलीट कराने के लिए तुरंत उठाएं ये कदम
- वायरल वीडियो को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से डिलीट कराने का पहला कदम यह है कि जिस भी प्लेटफॉर्म (जैसे पॉर्न वेबसाइट, सोशल मीडिया साइट या मैसेजिंग ऐप) पर वीडियो अपलोड है उसकी शिकायत नीति का उपयोग करें.
- सभी प्रमुख वेबसाइट्स में रिपोर्ट मिसयूज, कॉपीराइट उल्लंघन, या निजता उल्लंघन जैसे विकल्प होते हैं जहां वीडियो का URL और निजता उल्लंघन का विवरण देकर तुरंत हटाने की मांग की जा सकती है.
- इसके अलावा भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) द्वारा संचालित साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल पर भी इसकी शिकायत दर्ज कराएं ताकि सरकारी स्तर पर प्लेटफॉर्म को वीडियो हटाने के लिए निर्देश जारी किए जा सकें.
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पीड़ित के पास मौजूद हैं ये कानूनी विकल्प
निजी वीडियो वायरल होने की स्थिति में पीड़ित के पास कई कानूनी विकल्प मौजूद हैं. सबसे पहले आपको साइबर क्राइम सेल या स्थानीय पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करानी चाहिए. इस मामले में सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000 की धाराएं लागू होती हैं. विशेष रूप से धारा 66ई के तहत निजता भंग के लिए कानूनी कार्रवाई की जा सकती है जिसमें तीन साल तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान है. अगर वीडियो अश्लील श्रेणी का है तो धारा 67/67ए (इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से अश्लील सामग्री का प्रकाशन) के तहत भी मामला दर्ज किया जा सकता है. पुलिस शिकायत के दौरान वायरल वीडियो के लिंक, अपलोड करने वाले अकाउंट की जानकारी और उससे जुड़े सभी सबूत पुलिस को जरूर दें जिससे आरोपियों की पहचान और गिरफ्तारी हो सके.
मानहानि कर कोर्ट में पीड़ित कर सकता है मुआवजे का दावा
भारतीय संविधान के तहत निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने भी स्पष्ट किया है कि किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उसके निजी जीवन से जुड़ी कोई भी जानकारी सार्वजनिक करना या व्यावसायिक उपयोग करना अवैध है. पीड़ित व्यक्ति, वीडियो हटाने और आरोपियों पर कार्रवाई के साथ-साथ मानहानि और मानसिक उत्पीड़न के लिए सिविल कोर्ट में मुआवजे का दावा भी कर सकता है. इस तरह के मामलों से बचने के लिए लोगों को सलाह दी जाती है कि वे अपने निजी पलों की रिकॉर्डिंग सावधानी से करें और सोशल मीडिया पर किसी भी संदिग्ध लिंक या अनजान मैसेज को खोलने से बचें जो व्यक्तिगत डेटा चुराने का माध्यम बन सकता है.
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