UP News: उत्तर प्रदेश में खेती-किसानी न सिर्फ आजीविका का आधार है, बल्कि यहाँ के किसानों की आर्थिक स्थिति को भी परिभाषित करती है. लेकिन सवाल यह है कि अगर किसी किसान के पास 5 बीघे जमीन है, तो उसे गेहूं उगाना चाहिए या गन्ना? दोनों फसलों की लागत, उत्पादन, बाजार मूल्य और मुनाफे के आधार पर यह तय करना जरूरी है कि कौन सी फसल किसान के लिए ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकती है. आइए, इसकी गहराई में जाकर एक विस्तृत विश्लेषण करते हैं और दोनों फसलों की पूरी कहानी समझते हैं.
ADVERTISEMENT
गेहूं की खेती: लागत, उत्पादन और आमदनी
गेहूं उत्तर प्रदेश की प्रमुख रबी फसलों में से एक है. यहाँ प्रति बीघा गेहूं की औसत उपज 8 से 12 क्विंटल तक हो सकती है, जो मिट्टी की गुणवत्ता, सिंचाई और बीज की प्रजाति पर निर्भर करता है. मान लीजिए, एक किसान औसतन 10 क्विंटल प्रति बीघा गेहूं उगा लेता है.
लागत: एक बीघा गेहूं की खेती में जुताई, बीज, खाद, सिंचाई, कीटनाशक और मजदूरी मिलाकर करीब 12,000 से 15,000 रुपये का खर्च आता है. 5 बीघे के लिए कुल लागत लगभग 60,000 से 75,000 रुपये होगी.
उत्पादन: 5 बीघे में 50 क्विंटल गेहूं का उत्पादन संभव है.
मूल्य: सरकार ने 2024-25 के लिए गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 2,425 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है. अगर किसान इसे MSP पर बेचे, तो 50 क्विंटल की कुल कीमत 1,21,250 रुपये होगी. खुले बाजार में भाव कभी-कभी 2,500 से 2,600 रुपये तक भी जा सकता है, जिससे आमदनी 1,25,000 से 1,30,000 रुपये तक हो सकती है.
मुनाफा: लागत (75,000 रुपये) घटाने के बाद किसान को 46,250 से 55,000 रुपये का शुद्ध मुनाफा हो सकता है.
गेहूं की खेती का एक फायदा यह है कि यह 4-5 महीने में तैयार हो जाती है. इसके बाद किसान खरीफ सीजन में धान या दूसरी फसल उगा सकता है. लेकिन चुनौतियाँ भी हैं—मंडियों में MSP से कम रेट मिलना, बिचौलियों का दखल और मौसम की मार किसानों को परेशान करती है.
गन्ने की खेती: लागत, उत्पादन और आमदनी
गन्ना उत्तर प्रदेश का दूसरा बड़ा नकदी फसल है, खासकर पश्चिमी यूपी में, जहाँ इसे "हरा सोना" कहा जाता है. गन्ने की खेती सालभर चलती है और यह 10-12 महीने में तैयार होती है. प्रति बीघा औसत उपज 250 से 300 क्विंटल तक हो सकती है. मान लीजिए, एक किसान 5 बीघे में 275 क्विंटल प्रति बीघा की औसत उपज लेता है.
- लागत: गन्ने की खेती में बीज, खाद, सिंचाई, मजदूरी और देखभाल पर प्रति बीघा 20,000 से 25,000 रुपये खर्च होते हैं. 5 बीघे के लिए कुल लागत 1,00,000 से 1,25,000 रुपये के बीच होगी.
- उत्पादन: 5 बीघे में 1,375 क्विंटल (275 क्विंटल × 5) गन्ना पैदा हो सकता है.
- मूल्य: उत्तर प्रदेश में गन्ने का उचित और लाभकारी मूल्य (FRP) 2024-25 के लिए लगभग 350 से 360 रुपये प्रति क्विंटल है. चीनी मिलें इसी आधार पर भुगतान करती हैं. 1,375 क्विंटल को 360 रुपये प्रति क्विंटल से गुणा करें, तो कुल आमदनी 4,95,000 रुपये होगी.
- मुनाफा: लागत (1,25,000 रुपये) घटाने पर शुद्ध मुनाफा 3,70,000 रुपये तक हो सकता है.
गन्ने का सबसे बड़ा फायदा इसकी ऊँची आमदनी है. लेकिन इसमें समय ज्यादा लगता है और साल में दूसरी फसल उगाने का मौका नहीं मिलता. साथ ही, चीनी मिलों से भुगतान में देरी और बकाया राशि की समस्या भी किसानों के लिए सिरदर्द बनी रहती है.
- तुलना: गेहूं बनाम गन्ना
- समय: गेहूं 4-5 महीने में तैयार हो जाता है, जबकि गन्ने को 10-12 महीने चाहिए. गेहूं के बाद दूसरी फसल उगाकर किसान अतिरिक्त आय कमा सकता है.
- लागत: गेहूं में प्रति बीघा कम खर्च (12,000-15,000 रुपये) है, जबकि गन्ने में ज्यादा (20,000-25,000 रुपये).
- मुनाफा: 5 बीघे में गेहूं से 46,250-55,000 रुपये का मुनाफा, वहीं गन्ने से 3,70,000 रुपये तक. गन्ना यहाँ बाजी मारता है.
- जोखिम: गेहूं में मौसम और बाजार मूल्य का जोखिम है, जबकि गन्ने में मिलों से भुगतान में देरी और लंबा समय जोखिम बढ़ाते हैं.
किसानों की राय और विशेषज्ञ सुझाव
लखनऊ के पास के एक किसान राम प्रसाद कहते हैं, "गेहूं आसान है, लेकिन मुनाफा कम है. गन्ना ज्यादा देता है, पर मिल वाले पैसे समय पर नहीं देते." वहीं, कृषि विशेषज्ञ डॉ. अजय सिंह का कहना है, "किसानों को अपनी जमीन की मिट्टी, पानी की उपलब्धता और बाजार की स्थिति देखकर फैसला लेना चाहिए. पश्चिमी यूपी में गन्ना फायदेमंद है, लेकिन पूर्वी यूपी में गेहूं और धान का चक्र बेहतर हो सकता है."
निष्कर्ष: कौन सी फसल बेहतर?
5 बीघे जमीन पर गन्ना उगाना मुनाफे के लिहाज से ज्यादा आकर्षक है, खासकर तब, जब किसान के पास सालभर की खेती का धैर्य और चीनी मिलों से नियमित भुगतान की उम्मीद हो. वहीं, गेहूं उन किसानों के लिए बेहतर है जो कम जोखिम और जल्दी रिटर्न चाहते हैं, साथ ही दूसरी फसल उगाकर आय बढ़ाना चाहते हैं. अंततः, फैसला किसान की आर्थिक स्थिति, संसाधनों और क्षेत्रीय परिस्थितियों पर निर्भर करता है. दोनों फसलों की अपनी-अपनी ताकत और कमजोरियाँ हैं, लेकिन सही योजना के साथ किसान दोनों से फायदा उठा सकता है.
ADVERTISEMENT
