Pilibhit Tiger Attack: उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में बाघों का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा है. पिछले 25 दिनों में पीलीभीत टाइगर रिजर्व की अलग-अलग रेंजों में 5 लोग बाघों के हमले का शिकार हो चुके हैं. हालिया घटनाक्रम में पीलीभीत के मेवातपुर गांव में 35 वर्षीय मुकेश नामक शख्स को एक बाघिन ने तब अपना निवाला बना लिया जब वह सुबह चार बजे अपने गन्ने के खेत में पानी लगाने गया था. उसके हाथों में टॉर्च और फावड़ा होने के बावजूद, बाघिन उसे खींचकर गन्ने के खेत में ले गई और अपना शिकार बना लिया. आज भी जंगल से सटे उस खेत में इंसान और बाघ के इस संघर्ष की निशानी मौजूद है.
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पीड़ित परिवार का दर्द और बेबसी
मुकेश अपने घर का सबसे बड़ा लड़का था. उसकी मौत के बाद परिवार का रो-रोकर बुरा हाल है. उसकी पत्नी, मां और बच्चे बेसहारा हो चुके हैं. मुकेश के पिता का कहना है कि 'अगर खेत पर न जाएं तो खाएंगे क्या और गए तो बाघ खा जाता है.' पत्नी के आंसू थम नहीं रहे हैं. जिस गन्ने के खेत में मुकेश को बाघ ने अपना शिकार बनाया, वहां पग-पग पर इस संघर्ष के निशान मौजूद हैं. बाघिन के पगमार्क, इंसानी खून के दाग बिखरे पड़े हैं और जंगल की ओर लौटती बाघिन का वह वीडियो भी मौजूद है जिसे गांव वालों ने इस घटना के बाद अपने कैमरे में कैद किया.
बाघों की बढ़ती संख्या दे रही बड़ी चुनौती
मुकेश पीलीभीत में बाघ का पांचवां शिकार था, लेकिन अलग-अलग टाइगर रेंज में अलग-अलग बाघों के शिकार से लोगों में दहशत भर चुकी है. वन विभाग ने इस बाघिन को पकड़ने के लिए ट्रैप लगाया है. टाइगर रिजर्व की माला रेंज से सटे गन्ने के खेत में वन विभाग की पूरी टीम अपने पूरे साजो-सामान के साथ मौजूद है, जिसमें बाघ के लिए बड़े जाल और ट्रैप कैमरे लगाए गए हैं.
वन दरोगा सोनिया सिंह ने बताया कि 'इस घटना के बाद से वह बाघिन दिखाई नहीं दी न ही उसका कोई प्रमाण पिछले दो-तीन दिनों में दिखा है. बावजूद इसके हमारी कोशिश है कि जल्द से जल्द इसे पकड़कर ट्रैंक्विलाइज किया जाए."
बता दें कि पीलीभीत में बाघों की संख्या पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ी है. पिछले टाइगर सेंसस (बाघ गणना) के मुताबिक, पीलीभीत के अलग-अलग टाइगर रेंज में कुल 72 बाघ हैं. हालांकि, विशेषज्ञों के मुताबिक, पीलीभीत में जो जंगल का घनत्व, टोपोग्राफी और डेमोग्राफी (जनसंख्या घनत्व) है, इसमें 42 से ज्यादा बाघ नहीं रह सकते. लेकिन 'सेव टाइगर' प्रोजेक्ट इतना सफल रहा है कि बाघ जंगल की क्षमता से दोगुने हो चुके हैं, जिससे संघर्ष बढ़ रहा है.
इंसान और बाघों के संघर्ष के पीछे पीलीभीत के जंगलों के साथ-साथ बसे गांवों का भी बड़ा रोल है. गांव और जंगल के बीच कोई बफर जोन (सुरक्षा क्षेत्र) नहीं है. यानी अगर बाघ जंगल से बाहर आता है तो सीधे गांव के गन्ने के खेतों में प्रवेश कर जाता है, जहां उसके लिए खेतों में काम कर रहे इंसानों का शिकार करना आसान हो गया है. जिस मेवातपुर गांव में यह घटना घटी है, वह गांव भी पूरी तरीके से पीलीभीत के माला रेंज से सटा हुआ है और घने जंगल से महज 200 मीटर की दूरी पर बाघ ने मुकेश को अपना निवाला बनाया.
इस साल बाघों के हमलों का सिलसिला
इस साल पीलीभीत में 14 मई से बाघों के हमले शुरू हुए हैं:
- 14 मई को पूरनपुर के नजीरगंज में फसल की सिंचाई कर रहे किसान हंसराज को बाघ ने मार डाला.
- 18 मई को पूरनपुर के चतीपुर गांव में गन्ने के खेत की सिंचाई करते समय बाघ ने राम प्रसाद को निवाला बना लिया.
- 25 मई को पूरनपुर के ही खिरकिया बरगदिया गांव निवासी लोंगोश्री को बाघ उस समय उठा कर ले गया जब वह अपने घर में बर्तन धो रही थी.
- 3 जून को पूरनपुर के हजार क्षेत्र के शांतिपुर नगर गांव में बाघ ने घर में अपने नाल पर पानी पी रही रेशमा को दबोच लिया और उठा ले गया.
- ये सभी पांच इंसानों का शिकार बाघ ने खेतों में किया, और सभी घटनास्थल जंगल से सटे इलाके हैं, जो इस संघर्ष के मुख्य बिंदु को दर्शाता है.
पीलीभीत टाइगर रिजर्व हर तरीके से बाघ और इंसानों को एक साथ रहने के लिए जागरूक भी करता है, क्योंकि यहां इंसानी रिहाइश जंगल के किनारे और जंगल के भीतर तक है. ऐसे में टाइगर फाउंडेशन कई तरह के जागरूकता अभियान भी गांव वालों के बीच चलाते हैं. लोगों को यह सिखाया जाता है कि अगर बाघ दिख जाए या सामने आ जाए तो क्या करना है और क्या नहीं करना है. इस तरह की वैन 'बाघ एक्सप्रेस' पीलीभीत के गांव-गांव घूमती है ताकि लोगों को बाघों के संभावित हमले से बचाया जा सके और इंसान और बाघ एक साथ रह सकें.
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