आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव समाजवादी पार्टी के लिए लिटमस टेस्ट क्यों?
अखिलेश यादव के इस्तीफ से आजमगढ़ और आजम खान के इस्तीफे के बाद रामपुर सीट खाली हुई. दोनों विधानसभा के सदस्य चुने गए हैं. आजमगढ़…
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अखिलेश यादव के इस्तीफ से आजमगढ़ और आजम खान के इस्तीफे के बाद रामपुर सीट खाली हुई. दोनों विधानसभा के सदस्य चुने गए हैं. आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीटों पर आने वाले चुनावी नतीजे पर अब सभी की निगाहें टिकी हुई हैं. ऐसे में ये दोनों संसदीय सीटें समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की राजनीति के लिए बेहद अहम मानी जा रही हैं.
यह समाजवादी पार्टी के लिए लिटमस टेस्ट जैसा है. यही वजह है कि दोनों पार्टियों ने इन सीटों पर जीत के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. इस सीजन से 2022 तक के विधानसभा चुनावों के नतीजे अखिलेश यादव के लिए फायदेमंद रहे हैं. जिससे यह एक बार फिर लोकसभा की महत्वपूर्ण लड़ाई बन गई है.
लोकसभा चुनाव 2024 से पहले बीजेपी आजमगढ़ में कमल खिलाने की पुरजोर कोशिश कर रही है, क्योंकि हाल ही में जब विधानसभा चुनाव हुए तो आजमगढ़ की 10 में से 10 सीटें समाजवादी पार्टी के खाते में चली गईं और आजमगढ़ में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा. फिर एमएलसी चुनाव में भी कुछ ऐसा ही हुआ और यह सपा के लिए एक प्रतिष्ठित सीट बन गई. इसलिए अब जबकि लोकसभा उपचुनाव हो रहा है, बीजेपी ने इस चुनाव के लिए खास रणनीति अपनाई है.
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आजमगढ़, रामपुर का चुनाव सपा के लिए ज्यादा अहम है क्योंकि जब समाजवादी पार्टी के सांसदों ने इन सीटों से इस्तीफा दे दिया और यह इलाका अखिलेश यादव का गढ़ बताया जाता है. तो अब उनके इस्तीफे के बाद ही लोकसभा चुनाव हो रहे हैं. धर्मेंद्र यादव को सैफई परिवार से उम्मीदवार बनाया गया है. ऐसे में अखिलेश यादव ने आजमगढ़ और रामपुर के उपचुनाव में जीत के लिए पार्टी की पूरी सेना लगा दी है.
पार्टी नेताओं का मानना है कि आजमगढ़ में अखिलेश और रामपुर में आजम खान की परीक्षा हो रही है. बावजूद इसके अखिलेश यादव इन सीटों पर प्रचार करने नहीं पहुंचे. हालांकि आजम खान ने आजमगढ़ में धर्मेंद्र यादव के लिए प्रचार किया है, लेकिन अखिलेश की अनुपस्थिति जमीन पर काफी स्पष्ट है.
बीजेपी ने आजमगढ़ में भोजपुरी गायक दिनेश यादव निरहुआ पर दांव लगाया है, जो 2019 के आम चुनाव में अखिलेश यादव से 2.5 लाख से अधिक वोटों से हार गए थे. रामपुर से बीजेपी ने घनश्याम लोधी को अपना उम्मीदवार बनाया है जो आजम खान के करीबी माने जाते थे, लेकिन अब वो आजम को ही चैलेंज कर रहे हैं. आजमगढ़ और रामपुर सीटों पर मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच देखने को मिल रहा है.
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इंडिया टुडे से बात करते हुए बीजेपी प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ ने अखिलेश यादव पर निशाना साधते हुए कहा कि जनता ने बहुत प्यार दिया है और इस बार भी सभी ने कमल लाने का फैसला किया है. मैं अखिलेश को चुनौती देने नहीं आया, लोगों ने उन्हें अपना प्यार दिया था, लेकिन वह चुनाव में हार गए और यहां से सीट छोड़ दी. सपा के समीकरणों को तोड़ने की जरूरत नहीं है, जो विधायक चुने गए हैं, वे सत्ता में न होने पर ही रोते हैं.
दूसरी ओर, आजमगढ़ से चुनाव लड़ रहे अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव मुलायम सिंह के साथ शुरू हुई यादव परिवार की विरासत का हवाला देकर लोगों को भावनात्मक रूप से आकर्षित करने की कोशिश कर चुके हैं. उन्होंने कहा कि पार्टी हमेशा लोगों के साथ खड़ी रहती है और आजम खान के समर्थन से वह भाजपा द्वारा उपेक्षित उनके मुद्दों और चिंताओं को आवाज देना जारी रखेंगे.
आजमगढ़ भले ही समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है, लेकिन धर्मेंद्र यादव यहां अकेले संघर्ष कर रहे हैं. बसपा की तरफ से इस सीट से शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली हैं. बसपा ने रामपुर सीट से अपना उम्मीदवार नहीं उतारा है. रामपुर में मोहम्मद आजम खान की पसंद के उम्मीदवार आसिम रजा मैदान में हैं.
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बीजेपी इन दोनों सीटों को अपनी झोली में डालने के इरादे से मैदान में है. आजमगढ़ और रामपुर में पार्टी के कई मंत्री और पदाधिकारी प्रचार कर चुके हैं. पार्टी कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों को सरकार की नीतियों और योजनाओं के बारे में बता चुके हैं. खुद सीएम और डिप्टी सीएम दोनों ही चुनावी सभा को संबोधित करने आजमगढ़ और रामपुर पहुंचे थे.
गौरतलब है कि रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी और सुहेलदेव समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने आजमगढ़ पहुंचकर धर्मेंद्र यादव के पक्ष में प्रचार किया, लेकिन ये दोनों नेता रामपुर में सपा प्रत्याशी के प्रचार के लिए नहीं गए. रामपुर और आजमगढ़ ने समाजवादी पार्टी का पुरजोर समर्थन किया है, लेकिन इस बार भाजपा की रणनीति संभवतः 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए सपा के गढ़ की स्थिति को नुकसान पहुंचा सकती है.
कुल मिलाकर दोनों सीटों पर सभी उम्मीदवारों का भाग्य ईवीएम में कैद हो चुका है. अब देखना ये है कि क्या सपा अपना गढ़ बचाने में कामयाब हो पाती है या बीजेपी आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इन दोनों सीटों पर अपनी रणनीति में कामयाब हो पाती है.
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