UP: पिता मुलायम को खोने के बावजूद अखिलेश के लिए वापसी का साल रहा 2022 पर कुछ चुनौतियां भी

अमीश कुमार राय

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साल 2022 अब जा रहा है. यह साल उत्तर प्रदेश में राजनीति के लिए काफी यादगार सालों में से एक रहा. एक तरफ पीएम मोदी और सीएम योगी के नेतृत्व में बीजेपी ने असंभव परिणाम को संभव कर दिखाया और 37 साल बाद ऐसा हुआ कि यूपी में किसी दल ने लगातार दो बार बहुमत हासिल किया. वहीं दूसरी तरफ अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी गठबंधन ने भी जबर्दस्त वापसी की और सपा को अपने राजनीतिक इतिसाह का सबसे अधिक वोट शेयर हासिल करने में कामयाबी मिली. हालांकि सपा गठबंधन सत्ता से काफी दूर ही रहा. कुछ मायनों में ये साल राजनीतिक तौर पर दुखद यादें भी दे गया. इसी साल समाजवादी राजनीति के दिग्गज नेताजी मुलायम सिंह यादव का निधन भी हुआ.

अखिलेश यादव के लिए पिता का साया दूर हो जाना एक निजी क्षति रहा लेकिन सपा ने मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक विरासत को पूरी हनक से बचाया और उपचुनाव में डिंपल यादव को जीत मिली.

बीतते इस साल को देखते हुए यूपी तक आपके लिए उत्तर प्रदेश के सियासी ईयर एंडर की एक झलक लेकर आया है. इस पॉलिटिकल ईयर एंडर की पहली किस्त में आप बीजेपी के रिकॉर्ड प्रदर्शन की कहानी पढ़ चुके हैं. आप चाहें तो इसे यहां क्लिक कर दोबारा पढ़ सकते हैं. इस किस्त में हम आपको बताएंगे कि आखिर सपा और अखिलेश यादव के लिए कैसा रहा साल 2022…

रिकॉर्ट वोट तो मिले पर सत्ता दूर रही

2017 में बीजेपी ने यूपी की सत्ता में दशकों बाद वापसी की. यह वापसी इतनी जोरदार रही कि कांग्रेस के साथ गठबंधन में लड़ी सपा को महज 47 सीटें मिलीं. 2012 में सपा के लिए यही आंकड़ा 224 सीटों का था. यानी सपा को 177 सीटों का नुकसान हुआ. यही नहीं, सपा को वोट शेयर भी 2012 के मुकाबले 7.7 फीसदी घटकर 21.82 फीसदी रह गया.

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यूपी में पांच साल बाद जब 2022 में एकं बार फिर विधानसभा चुनावों का रण सजा तो अखिलेश यादव ने राजनीतिक कुशलता का परिचय देते हुए एक सजग गठबंधन किया. इस गठबंधन के दो मुख्य किरदार रहे, पश्चिम में जयंत चौधरी और पूरब में ओम प्रकाश राजभर.

इसके अलावा ऐन चुनावों से पहले अखिलेश यादव ने बीजेपी को झटका देते हुए स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान जैसे कद्दावर नेताओं का न सिर्फ योगी सरकार से इस्तीफा करवाया, बल्कि उन्हें सपा में शामिल भी कर लिया.

अखिलेश यादव की इस सियासी व्यूह रचना के फायदे आंकड़ों में भी दिखाई दिए. अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा गठबंधन को 36.32% वोट मिले. अकेले सपा ने यूपी में 32.06% वोट हासिल किए. ब्राह्मण-राजपूत जैसे अपर कास्ट को छोड़ दें, तो कमोबेश सभी जाति और धार्मिक समूहों में सपा का आधार बढ़ता नजर आया.

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CSDS-लोकनीति के आंकड़ें करते हैं इसकी पैरवी

सीएसडीएस और लोकनीति के पोस्ट पोल सर्वे के मुताबिक 2017 में जहां 68 फीसदी यादव सपा के साथ थे, तो 2022 में यह बढ़कर 83 फीसदी हो गए. इसी तरह 2017 में 46 फीसदी मुस्लिमों ने सपा गठबंधन का साथ दिया था, जो 2022 में बढ़कर 79 फीसदी हो गया. इसी तरह वैश्य 11 से 12, अन्य अपर कास्ट 15 से 17, कुर्मी 16 से 25, कोइरी-मौर्य-कुशवाहा-सैनी 18 से 22, केवट-कश्यप-मल्लाह-निषाद 7 से 26, अन्य ओबीसी 15 से 23, जाटव 3 से 9 और अन्य एससी 2017 की तुलना में 11 फीसदी से बढ़कर 23 फीसदी हो गए.

साल के अंत में भी मिलीं सफलताएं

यूपी विधानसभा चुनावों के नतीजों में वोट शेयर बढ़ाकर भी जीत से दूर रहने वाले अखिलेश यादव के लिए इसके तुरंत बाद हुए आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव के भी नतीजे दुखद रहे. दोनों जगह सपा को हार का सामना करना पड़ा. इस बीच 10 अक्टूबर 2022 को मुलायम सिंह यादव का निधन हो गया. अखिलेश यादव के लिए यह निजी तौर पर बड़े आघात का समय रहा. उन्हें एक पुत्र की जिम्मेदारियां तो निभानी थी हीं, पिता की राजनीतिक विरासत को बचाए भी रखना था.

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अखिलेश यादव ने ये दोनों काम बखूबी किए. मैनपुरी चुनाव में अपनी पत्नी डिंपल यादव को उतार कार्यकर्ताओं को संदेश दिया कि इस सीट को किसी कीमत पर जीतना है. दूसरी तरफ चाचा शिवपाल यादव को भी प्रेम पूर्वक अपने पक्ष में करने में सफलता हासिल की. इसका नतीजा भी आया और डिंपल यादव ने 2.88 लाख वोटों के अंतर से बीजेपी प्रत्याशी रघुराज सिंह शाक्य को हरा दिया.

हालांकि अब अखिलेश यादव के सामने 2024 की चुनौती है. 2019 में उन्होंने बसपा सुप्रीमो मायावती के साथ महागठबंधन किया था. इसके बावजूद बीजेपी को रोकने में कामयाब नहीं रहे. 2017 में उनका कांग्रेस के साथ गठबंधन पहले ही फेल हो चुका है. 2022 में वोट शेयर बढ़ाने के बावजूद वह सत्ता से दूर रहे. ऐसे में उनके लिए 2024 की रणनीति को सेट करना इतना आसान नजर नहीं आ रहा.

अखिलेश यादव की तरफ देश की निगाहें, सपा ही लड़ेगी और बीजेपी को हराएगी: SP प्रवक्ता मनोज राय धूपचंडी

सपा के लिए आगे का रास्ता कैसा रहेगा, इसे समझने के लिए यूपी तक ने सपा के प्रवक्ता और पूर्व राज्य मंत्री मनोज राय धूपचंडी से बात की.

सपा प्रवक्ता ने कहा,

‘नेताजी का जाना हमारे लिए सबसे बड़े संबल का टूट जाना रहा. सपा के सभी कार्यकर्ता आज भी रोते हैं. नेताजी ने न जाने कितनों को रंक से राजा बना दिया, सामान्य कार्यकर्ता को मंत्री बना दिया. नेताजी के सुझावों पर हमने चुनाव बहुत अच्छा लड़ा, लेकिन बीजेपी सरकार ने बेइमानी की, अफसरशाही का गलत इस्तेमाल किया. सपा के कोर वोटर्स का नाम हर विधानसभा में काट दिए गए. सरकार ने बेइमानी से सत्ता में नहीं आने दिया.’

मनोज राय धूपचंडी

मनोज राय धूपचंडी आगे कहते हैं, ‘नेताजी के जाने के बाद चुनाव आया. हम मैनपुरी और खतौली जीते, रामपुर में फिर शासन ने बेइमानी की, वोट ही नहीं पड़ने दिया. आज अखिलेश यादव की तरफ देश की निगाहें हैं. लोगों को लगता है कि बीजेपी के खिलाफ जो लड़ रहा है, वो अखिलेश यादव हैं. इसका लाभ यह है कि सारे लोग आशा भरी निगाहों से देखते हैं, हानि यह कि हमें ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है. लेकिन हम लोगों के भरोसे पर खरा उतर रहे हैं. सपा ने मैनपुरी, और खतौली के रिजल्ट से साबित कर दिया कि वही लड़ेगी और सत्ता में आएगी. हम बीजेपी सरकार की खराब नीतियों के खिलाफ बोलेंगे. सपा के लोग जेल भरेंगे. हमारे कार्यकर्ता मारेंगे नहीं पर मानेंगे भी नहीं, क्योंकि समाजवादी राजनीति के दिग्गज राममनोहर लोहिया ने कहा था कि ‪“जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करती, वह किसी भी सरकार के गलत कदम का फौरन विरोध करती हैं. हम उसी समाजवादी परंपरा के सिपाही हैं.’

अगली किस्त में पढ़िए बसपा और कांग्रेस के लिए कैसा रहा साल 2022…‬

यूपी: BJP के लिए रिकॉर्ड वाला तो BSP-कांग्रेस के लिए झटके और सपा की वापसी का साल रहा 2022

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