यूपी: मायावती की BSP के लिए बुरे सपनों की तरह गुजरा साल 2022, वापसी भी नहीं दिख रही आसान
साल 2022 अब अपने अंतिम दिनों में है. गुजरते साल में पीछे लौटकर देखने की आदत हम सभी में होती है. यूपी के लिए यह…
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साल 2022 अब अपने अंतिम दिनों में है. गुजरते साल में पीछे लौटकर देखने की आदत हम सभी में होती है. यूपी के लिए यह गुजरता साल राजनीतिक मायने में काफी खास रहा है. इस साल सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी ने चमत्कारिक ढंग से साबित किया कि यूपी में उसकी सत्ता को हिलाने का माद्दा अभी किसी दूसरे राजनीतिक दल में नहीं है.
अब इस साल के अंतिम दिनों में जब हम यूपी की सियासत को देखते हैं, तो 2024 की राजनीतिक लड़ाई की गोटियां सेट होते भी नजर आती हैं. वैसे तो यह साल अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी की भी वापसी का रहा.
अखिलेश यह संदेश देने में कामयाब साबित हुए कि विपक्ष की धूरी वही हैं और गैर बीजेपी वोटर्स उनपर ही भरोसा कर रहा है. पर यह साल खासकर मायावती की बीएसपी के लिए बुरे स्वप्न की तरह गुजरा. साल के शुरुआत में जहां विधानसभा चुनावों में बसपा को करारी हार का सामना करना पड़ा, वहीं उनका वोट बैंक भी पूरी तरह दरकता नजर आया.
अब जब साल 2022 को अलविदा कहने का वक्त आया है, तो यूपी तक आपके लिए उत्तर प्रदेश के पॉलिटिकल ईयर एंडर की एक झलक लेकर आया है. इस पॉलिटिकल एयर एंडर की पहली और दूसरी किस्त में आप साल 2022 में बीजेपी के रिकॉर्ड प्रदर्शन और अखिलेश यादव की वापसी की कहानी पढ़ चुके हैं. इस तीसरी किस्त में हम आपको बताएंगे कि आखिर मायावती के लिए बुरे स्वप्न की तरह क्यों रहा साल 2022…
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बसपा से सिर्फ एक विधायक जीता
उत्तर प्रदेश में बसपा की सियासी ताकत एक वक्त ऐसी रही कि राजनीतिक पंडितों ने यह कयासबाजी खूब की कि मायावती देश की पहली महिला दलित प्रधानमंत्री बन सकती हैं. बसपा ने यूपी में 4 बार मायावती को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया. पर आज बसपा कहां खड़ी है? आज यूपी विधानसभा में बसपा के पास मात्र एक विधायक हैं और वह विधायक उमाशंकर सिंह भी पार्टी की ताकत से इतर अपने इकबाल की वजह से चुनाव जीतने में सफल रहे हैं.
आंकड़ों में देखिए बसपा की स्थिति
2022 के विधानसभा चुनावों में बसपा को 12.9 फीसदी वोट मिले और महज एक सीट पर जीत मिली. 2012 और 2017 से इस आंकड़े की तुलना करें तो आप चौंक जाएंगे. 2017 में बसपा को 22.23 फीसदी वोट मिले थे और वोट शेयर के मामले में यह बीजेपी के बादं सूबे में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी.
हालांकि तब भी सीटें महज 19 ही मिली थीं. 2012 के चुनावों में बीएसपी को 25.91 फीसदी वोट मिले और 80 सीटों पर जीत मिली थी. यानी 2012 और 2017 में हार के बावजूद मायावती ने यूपी में अपने राजनीतिक आधार को काफी हद तक बचाए रखने में कामयाब नजर आई थीं.
2022 के परिणामों के बारीक विश्लेषण में छिपी है मायावती की असल चिंता
2022 विधानसभा चुनावों पर सीएसडीएस-लोकनीति के पोस्ट पोल सर्वे के आंकड़ें देखें तो मायावती की सियासी मुसीबत काफी बड़ी नजर आती है. इसके आंकड़ों के मुताबिक यूपी में करीब 12 फीसदी आबादी वाले जाटव वोटर्स ने 2017 के चुनावों में मायावती के पक्ष में 87 फीसदी तक वोटिंग की थी. 2022 में यह घटकर 65 फीसदी हो गया. गैर जाटव दलित वोटर्स (यूपी में करीब 8 फीसदी) का 2017 के चुनावों में बसपा के पक्ष में 44 फीसदी वोट गया. 2022 में यह घटकर 27 फीसदी रह गया. इसी तरह ब्राह्मण, राजपूत, वैश्य, अन्य अपर कास्ट, कुर्मी, कोइरी, मौर्या, कुशवाहा, सैनी इत्यादि, मुस्लिम इत्यादि सभी जाति और धार्मिक समूहों ने बसपा से दूरी बनाई.
विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद मायावती ने आजमगढ़ उपचुनाव में भी उम्मीदवार उतारा, जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा. और तो और, सपा ने मायावती पर बीजेपी की बी टीम की तरह चुनाव लड़ने के आरोप लगाए और इसके पक्ष में पब्लिक पर्सेपशन बनाने की भी पूरी कोशिश की. जाते-जाते भी साल 2022 मायावती के लिए कुछ अच्छा नहीं गुजरा.
हालांकि मायावती ने खतौली, मैनपुरी और रामपुर उपचुनाव में कैंडिडेट तो नहीं उतारे, लेकिन ऐसा माना गया कि जयंत चौधरी और भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद के साथ आने से दलितों का वोट सपा गठबंधन को ट्रांसफर हुआ.
मायावती के लिए साल 2023 सबसे अहम
मायावती और बीएसपी के लिए अब नया साल यानी 2023 काफी अहम है. सीएसडीएस-लोकनीति के पोस्ट पोल सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि दलित वोटर्स बीजेपी के साथ-साथ अब सपा की ओर भी शिफ्ट होना शुरू हो चुके हैं.
अखिलेश यादव लगातार पिछड़ा और दलित हितों की बात कर रहे हैं. नगर निकाय चुनावों में अखिलेश ने पिछड़ा आरक्षण के मुद्दे को लेकर भी योगी सरकार को घेर रखा है. इस सक्रिय राजनीति के दौर में मायावती कहीं न कहीं पिछड़ती नजर आ रही हैं.
हालांकि मायावती ने प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर ओबीसी चेहरे को स्थापित किया है. इसके अलावा वह इमरान मसूद जैसे नेताओं की मदद से मुस्लिम वोटर्स का दिल जीतने की भी कोशिश कर रही हैं, लेकिन आंकड़ें अभी उनके पक्ष में गवाही नहीं दे रहे. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि मायावती साल 2023 में वापसी के लिए क्या रणनीति बनाती हैं.
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