जातीय जनगणना: केंद्र के हलफनामे को लेकर मायावती का BJP पर हमला, समझिए क्या है पूरा मामला

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पिछड़े वर्गों की जाति आधारित जनगणना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार के हलफनामे पर बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) चीफ मायावती की तीखी प्रतिक्रिया आई है.

इस पूरे मामले को समझने के लिए हम आपको बताएंगे कि केंद्र के हलफनामे में आखिर कहा क्या गया है, साथ ही यह भी बताएंगे कि इस मुद्दे पर हाल ही में उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और बीजेपी नेता केशव प्रसाद मौर्य ने क्या बड़ा बयान दिया था, मगर उससे पहले जान लेते हैं कि मायावती ने क्या कहा है.

मायावती ने 24 सितंबर को ट्वीट कर कहा है, ”केंद्र सरकार द्वारा माननीय सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करके पिछड़े वर्गों की जातीय जनगणना कराने से साफ तौर पर इनकार कर देना अति-गंभीर और अति-चिंतनीय (है), जो भाजपा के चुनावी स्वार्थ की ओबीसी राजनीति का पर्दाफाश और इनकी कथनी और करनी में अंतर को उजागर करता है. सजगता जरूरी.”

इसके अलावा बीएसपी चीफ ने कहा है, ”एससी और एसटी की तरह ही ओबीसी वर्ग की भी जातीय जनगणना कराने की मांग पूरे देश में काफी जोर पकड़ चुकी है, लेकिन केंद्र का इससे साफ इनकार पूरे समाज को उसी प्रकार से दुखी (करने वाला) और इनके भविष्य को आघात पहुंचाने वाला है जैसे नौकरियों में इनके बैकलॉग को न भरने से लगातार हो रहा है.”

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बता दें कि बीएसपी समेत कई राजनीतिक दल लगातार अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं. इस बीच बिहार से दस दलों के प्रतिनिधिमंडल ने भी पिछले दिनों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी और जाति आधारित जनगणना कराए जाने की मांग की थी.

हाल ही में यूपी तक बैठक में उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा था, ”व्यक्तिगत तौर पर जातीय जनगणना के न मैं खिलाफ हूं, न ही मेरी पार्टी खिलाफ है. सर्वसम्मति बनेगी तो जातीय जनगणना भी होगी. जातीय जनगणना से बीजेपी या केंद्र सरकार पीछे हट रही हो, ऐसा तो कोई विपष है नहीं.”

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केंद्र ने अपने हलफनामे में क्या कहा है, क्या है पूरा मामला?

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि पिछड़े वर्गों की जाति आधारित जनगणना ‘प्रशासनिक रूप से कठिन और दुष्कर’ है और जनगणना के दायरे से इस तरह की सूचना को अलग करना ‘सतर्क नीति निर्णय’ है.

सरकार ने कहा है कि सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (एसईसीसी), 2011 में काफी गलतियां और अशुद्धियां हैं.

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बता दें कि महाराष्ट्र सरकार ने याचिका दायर कर केंद्र और अन्य संबंधित प्राधिकरणों से ओबीसी से संबंधित एसईसीसी 2011 के आंकड़ों को सार्वजनिक करने की मांग की थी.

इसके बाद सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के सचिव की तरफ से दायर हलफनामे में कहा गया है कि केंद्र ने पिछले साल जनवरी में एक अधिसूचना जारी कर जनगणना 2021 के लिए जुटाई जाने वाली सूचनाओं का ब्यौरा तय किया था और इसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से जुड़ी सूचनाओं सहित कई क्षेत्रों को शामिल किया गया लेकिन इसमें जाति की किसी अन्य श्रेणी का जिक्र नहीं किया गया.

सरकार ने कहा कि एसईसीसी 2011 सर्वे ‘ओबीसी सर्वे’ नहीं है जैसा कि आरोप लगाया जाता है, बल्कि यह देश में सभी घरों में जातीय स्थिति का पता लगाने की व्यापक प्रक्रिया थी.

यह मामला गुरुवार को जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने सुनवाई के लिए आया था, जिसने इस पर सुनवाई की अगली तारीख 26 अक्टूबर तय की है.

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