रामलला के लिए सब कुछ किया, कोर्ट भी गए, अब अयोध्या के सीताराम यादव को हो रहा इस बात का मलाल

आशीष श्रीवास्तव

सीताराम यादव और उनके परिवार को इस बात की तकलीफ है कि राम मंदिर ट्रस्ट की तरफ से उनके परिवार को 22 जनवरी के दिन रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम का न्योता नहीं दिया गया है.

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Ayodhya Ram Mandir: राम मंदिर आंदोलन में जहां कई लोगों ने अपनी जिंदगी तक कुर्बान कर दी तो कई ऐसे भी लोग थे, जिन्होंने इस आंदोलन को आगे बढ़ाया और अहम किरदार अदा किया. कुछ ऐसी ही कहानी अयोध्या में रहने वाले सीताराम यादव की है. सीताराम यादव का परिवार साल 1950 से ही रामलला के लिए प्रसाद बनाने का काम कर रहा है. आज भी ये परिवार रामलला के लिए हर रोज रबड़ी-पेड़े का भोग तैयार करता है. राम जन्मूभूमि मामले में खुद सीताराम यादव ने कोर्ट में अहम गवाही दी थी. मगर आज जब भव्य और दिव्य राम मंदिर का निर्माण हो रहा है, अयोध्या बदल रही है तब इस परिवार के मन को एक बात खटक रही है.

दरअसल सीताराम यादव और उनके परिवार को इस बात की तकलीफ है कि राम मंदिर ट्रस्ट की तरफ से उनके परिवार को 22 जनवरी के दिन रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम का न्योता नहीं दिया गया है. हर दिन रामलला को उनके द्वारा बनाए गए प्रसाद का भोग लगता है. मगर अब इस कार्यक्रम में उन्हें ही आमंत्रित नहीं किया गया है.

‘हम श्रीराम की सेवा में ही हैं’

सीताराम यादव का कहना है कि निमंत्रण मिलता है तो ठीक, नहीं मिलता तो भी ठीक. हम तो सिर्फ हमारे प्रभु श्रीराम की सेवा में ही हैं. हमारे पूरा परिवार रामलला की सेवा में ही है. बता दें कि जब रामलला को मिठाई का भोग नहीं लगवाया जाता था तब सीताराम यादव और उनके पिता, रामलला को भोग के लिए बताशे बनाते थे. पूरे अयोध्या में सीताराम यादव की ये एक ही दुकान थी, जिस दुकान से रामलला के लिए भोग जाता था. ये सिलसिला 1950 से लगातार जारी है. देखा जाए तो पिछले करीब 70 सालों से सीताराम यादव का परिवार ही रामलला के लिए भोग तैयार कर रहा है.  

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बाबरी विध्वंस में दुकान को हुआ था नुकसान

बता दें कि सीताराम यादव की छोटी सी दुकान अयोध्या में थी. 6 दिसंबर 1992 में जब बाबरी मस्जिद गिराई गई, तब इनकी दुकान को भी भारी नुकसान हुआ. दुकान भी तबाह हो गई. मगर सीताराम यादव के परिवार ने इसको लेकर सरकार से कोई मुआवजा नहीं लिया. परिवार ने कहा कि ये सब श्रीराम के नाम और उनकी सेवा के नाम हुआ.

अपनी आंखों से ताला खुलते देखा था

बता दें कि बुजुर्ग सीताराम की आज भी रामलला मंदिर के पास छोटी सी दुकान है. हर रोज सीताराम और उनका परिवार ही 5 किलो रबड़ी का भोग रामलला के लिए बनाता है. सीताराम कहते हैं, जब हमारे रामलला टेंट में थे और आज जब वह अपने भव्य मंदिर में जा रहे हैं, तब से लेकर अब तक हम ही रामलला के लिए भोग बनाते आए हैं. अब इस काम में सीताराम यादव का बेटा-बेटी भी उनका साथ देते हैं. 

रामजन्म भूमि केस में रहे अहम गवाह

बता दें कि सीताराम यादव राम जन्मभूमि केस में भी अहम गवाह रहे. उन्होंने बताया, जब मंदिर का ताला खोला गया और रामलला को निकाला गया, तब भी मैं वहां था. मैंने ये सब अपनी आंखों से देखा था. इसके बाद हमारी दुकान और जमीन भी चली गई थी. आज मैं हमारे श्रीराम का मंदिर बनते देख रहा हूं. हमने अपना सब कुछ रामलला के लिए कर दिया.

सीताराम यादव की बेटी का कहना है कि हमारे बाबा ने तो रामलला के लिए अपना सब कुछ दान कर दिया. आज जब राम मंदिर बन रहा है तो पिता बहुत खुश हैं तो वही हमारे बाबा की आत्मा को भी शांति मिलेगी. बता दें कि आज सीताराम यादव की अयोध्या में 2 मिठाई की दुकान भी हैं.

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