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'पिता राजीव की याद में प्रियंका का शोकगीत'! कांग्रेस के लिए अमेठी का चुनावी कैंपेन ले रहा इमोशनल करवट

यूपी तक

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रायबरेली में प्रियंका गांधी
रायबरेली में प्रियंका गांधी
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Uttar Pradesh News : इस लोकसभा चुनाव में प्रियंका गांधी चुनाव तो नहीं लड़ रही हैं, लेकिन रायबरेली और अमेठी लोकसभा सीट की जंग उनके लिए खुद मुकाबले में उतरने जैसी ही है. प्रियंका गांधी मजबूती से अमेठी और रायबरेली में मौजूद हैं. वह यहां ज्‍यादा से ज्‍यादा जनसभाएं कर रही हैं, लोगों से मिल रही हैं. भाई राहुल को जिताने के लिए प्रियंका वोटरों तक पहुंचने, अपनी बात कहने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही हैं. इस क्रम में वह वोटरों को भावनात्मक तौर पर जोड़ने की कोशिश करती दिख रही हैं. इस दौरान वो अपने पिता राजीव गांधी को याद करती भी दिख रही हैं .  

इमोशनल करवट लिया अमेठी का चुनाव

पिता राजीव का जिक्र आने के बाद अमेठी का चुनाव प्रियंका के लिए इमोशनल करवट ले चुका है.  इसकी बानगी प्रियंका गांधी के निजी सहयोगी संदीप सिंह का लिखा एक वृतांत भी देता है. इसका शीर्षक उन्होंने दिया है पिता की याद में प्रियंका का शोकगीत. इसमें उन्होंने बताया है कि प्रियंका अमेठी में पल पल अपने पिता राजीव को कैसे याद कर रही हैं. 

यहां नीचे पढ़िए संदीप सिंह का लिखा पूरा लेख

कोई अंदाज़ नहीं था कि ऐसा होने वाला है. आज तीन दिन बीत गये, मगर दस लोगों के बीच में मीटिंग करते हुए भी अचानक आंसू आ जाते हैं और ऐसा लगताहै कि जैसे किसी ने छाती में ख़ंजर मार दिया हो और उसकी टीस बीच-बीच में मेरी आवाज़ चोक कर देती है. अभी– यह लिखते वक़्त मैं, पार्टी के वॉर रूम में सबसे नज़रें चुरा रहा हूं. हालांकि उस दिन, जब मैं फुरसतगंज के पासबीच रास्ते में प्रियंका जी से मिला तो उन्होंने कहा था कि पिता जी –राजीव गांधी– के बारे में बोलने का मन है. मैंने कहा कि अच्छा रहेगा,मगरदिमाग़ में कमोबेश यही छवि उभरी कि एक राजनीतिक भाषण होगा जिसमें अमेठी से राजीव जी केलगाव और अपनापे का ज़िक्र होगा. यह दिन का आख़िरी कार्यक्रम था. रात के लगभग नौ बज रहे थे. रायबरेली में15 नुक्कड़ सभाओं के बाद पूरी अमेठी के कार्यकर्ताओं के बीच यह उस दिन का अंतिम भाषण था.

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जैसा हर बड़े कार्यक्रम में होता है हम भीड़ को चीरते हुए मंच पर पहुंचे. मंच पर तत्काल जैसे कोई आभा पसर गई. जल्दी जल्दी स्वागत संबंधी औपचारिकतायें पूरी की गई. हमारे प्रत्याशी किशोरी लाल शर्मा जी ने भी संक्षेप में अपना भाषण समाप्त किया और प्रियंका माइक पकड़ कर खड़ी हो गईं. शुरू के एक दो मिनट हम जैसे लोगों का ध्यान भी नहीं जा पाया कि बोल क्या रही हैं. उस समय हमारा व्यवस्थामूलक ध्यान –लाइव फीड शुरू करवाने, फ़्रेम सही करवाने, मंच को स्थिर करवाने पर लगा रहता है. ऐसे में भाषण सुनना संभव नहीं हो पाता. 

उन्होंने बोलना शुरू किया. कान के पीछे से कुछ लाइनें ज़ेहन में सुनाई पड़ रही थी. पिता की जीप में शरारत करते दो बच्चे. वो राजीव जी के बारे में बोल रही थीं. जीप चलाकर अमेठी के गाँव-गाँव में जाना, लोगों से मिलना, जनता से राजीव जी का रिश्ता, उनकी नेक़दिली और साहस का ज़िक्र, साधनों का अभाव, सड़क-खड़ंजे का ज़िक्र, इंडिया मार्क 1 हैंडपंप का ज़िक्र – हल्का सा एक चित्र उभर रहा था. 

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दिन भर की थकावट के बाद उनकी भरभरा गई आवाज़ में अचानक एक वाक्य तीर की तरह कान में घुसाऔर मेरे पैर अपनी जगह ठिठक गये. मुझे एक किशोर लड़की की घबराहट सुनाई देने लगी। आगे का भाषण एक लड़की दे रही थी; जो अपने पिता की सलामती के लिए व्रत और उपवास रख रही थी और जिसकी रोज़ की नींद को देर रात घर लौट रहे पिता की चप्पलों की आवाज़ का इंतज़ार रहता था. 

फिर एक फोन की घंटी बजने का ज़िक्र आया और मैंने उस पूरी सभा में सन्नाटा पसरते हुए अपनी आँखों से देखा– एक महान अनहोनी के सामने, जैसे वह ठीक अभी-अभी घट रही हो- मेरा दिल डूबने लगा.

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एक बेटी अपनी माँ को उसके पति के ख़त्म होने की सूचना देने जा रही थी. घड़ी की स्क्रीन  दस की ओर बढ़ रही थी. उस दिन भी यही समय रहा होगा. उन्नीस बरस की लड़की को, एक स्त्री को उसके प्रेमी की मृत्यु की सूचना देनी थी जिसके लिये वह सात समुन्दर पारअपना सब कुछ छोड़कर भारत चली आई थी. एक औरत, एक दूसरी औरत को उसके पति के मृत्यु की सूचना देने जा रही थी जिसके लिए उसने भारत की संस्कृति-सभ्यता को वैसे ही अपना लिया था, जैसे धरती जल को अपना लेती है. किशोर हो रही एक लड़की अपने पिता की मृत्यु की सूचना लेकर अपनी माँ के कमरे की ओर बढ़ रही थी और उसके कदमों का बोझ मुझे अपने कंधों पर महसूस हो रहा था.

फिर उन्होंने अपनी माँ की आंखों में छाते हुए एक अंधेरे का ज़िक्र किया और पूरी सभा में अंधेरा छा गया. मेरी आँखें गीली हो गईं. कुछ समझ ही नहीं आया. मैं दांत भींचकर अपने अंदर के ज्वार को रोकने लगा. वे उस हंसी के बारे में बोल रही थीं, जो राजीव गांधी के जाने के बाद, उन्होंने उस स्त्री की आँखों में, जिसे वे अपनी माँ कहती हैं – दुबारा कभी नहीं देखी. एक तस्वीर मन में कौंधी और जैसे किसी आवेग ने मुझे धक्का मारकर गिरा दिया हो, फफककर मेरी रुलाई छूट पड़ी. लोग देख न पावें, मैं घबराकर अपने एक साथी के पीछे पीठ घुमाकर खड़ा हो गया। मेरा शरीर काँप रहा था. दुख के कुएँ में मेरा मन डूब गया. 

सब कुछ धुँधला पड़ने लगा. सभा, राजनीति, चुनाव, उसका तनाव सब ग़ायब होने लगा. आंसुओं की धारा बह रही थी. अपने पति के देश को सांप्रदायिक शक्तियों के उभार से बचाने के लिए, वर्षों से गुमसुम पड़ी, विरह में टूटी हुई एक स्त्री के चट्टानी संकल्प का चित्र उभर रहा था और फिर माँ द्वारा अमेठी से चुनाव लड़ने के फ़ैसले का ज़िक्र आया. भीड़ के भीतर अचानक एक नारा उठा “ राजीव भैया अमर रहे” और पूरी सभा जैसे नींद से जाग उठी. मेरी तंद्रा टूट गई. मैंने अपने चारों तरफ धीरे से देखा. लोग रो रहे थे, जवान लड़के रो रहे थे. सामने खड़ी औरतें रो रही थीं. बुजुर्ग रो रहे थे. मेरे आसपास खड़े सैकड़ों लोग रो रहे थेय मेरा दिल डब-डब कर रहा था. आंसुओं की धारा रुकने का नाम नहीं ले रही थी. मेरे गाँव की तरफ से आये कुछ लोग भी वहाँ खड़े थे. मैं नहीं चाहता था कि कोई मुझे रोते हुए देखे, मगर सब बेकार था. 

दिल्ली से प्रयागराज जा रही ट्रेन में अपने शहीद पिता की अस्थियों के साथ बैठी, देश से नाराज़ एक बेटी के दुख और क्रोध के पहाड़ को मैंने अमेठी के रेलवे स्टेशन पर हज़ारों लोगों के आंसुओं की गर्माहट में पिघलते हुए देखा. अमेठी के उस रेलवे स्टेशन पर जिससे मेरे जीवन की पहले-पहल की यात्रायें शुरू हुईं, मैंने उस रात आंसुओं के समंदर में एक लड़की को जीवन का, परिवार का, जनता से एक नेता के सच्चे प्रेम और आदर का अर्थ पाते हुए देखा. तब मेरी उमर आठ-नौ बरस भी नहीं रही होगी, न मैं वहाँ था, मगर मुझे ऐसे लग रहा था कि यह सब मेरे सामने घटित हो रहा है. प्रेम के उजड़े हुए दयार में, वहाँ उमड़ रही मनुष्यता में, एक लड़की अपने अकेलेपन से लड़ने का साहस पा रही थी.

मैंने उन्नीस बरस की एक लड़की में अपने देश की महान परंपरा का बीज पड़ते देखा. मैंने अपनी कल्पना में जनता के लिए हमेशा खड़ा रहने वाला, एक नेता पैदा होते हुए देखा. चुनाव के एक भाषण के बीचोबीच मैंने हमेशा के लिए एक परिवार को बनते हुए देखा.

लोगों की भीड़ में बैठे पुराने कार्यकर्ताओं का नाम लेकर ज़िक्र होने लगा और धीरे-धीरे हम सब भावनाओं के ज्वार से उतरने लगे. भाषण चल रहा था और पैरों के नीचे ज़मीन होने का अहसास वापस लौट रहा था. गर्मियों में अक्सर लग जाने वाली आग में एक किसान का घरभस्म हो गया था. उसकी मुट्ठी में बेटी की शादी के लिए बचाकर रखे गये अधजली नोटों की राख थी. भीड़ में सामने खड़ी जामों क़स्बे की रमाकांति को जब उन्होंने रोते हुए देखा तो उसकी कहानी सुनाने लगीं और रोने से मना करते हुए उन्होंने कहा ‘रोओ मत, तुम बहुत हिम्मत वाली हो, तुम्हारी हिम्मत ने मुझे हिम्मत दी है”.

उन्होंने रमाकांति को मंच पर अपने पास बुला लिया और धीरे-धीरे “राजीव भैया की बिटिया” का भाषण किसानों के संघर्ष, जन की श्रद्धा, लालटेन लेकर राजीव भैया की बिटिया का इंतज़ार करते बुजुर्गों का आशीष लेकर बढ़ती लड़की, अपनी माँ के साथ बच्चों की आँखों में दवाई डालती और बेवा पेंशन बाँटते, एक परिवार का अमेठी की जनता से प्रेम, सत्य, सेवा और श्रद्धा के रिश्ते की कहानी कहता चला गया। और फिर राहुल गांधी से लड़ने के लिए, राहुल गांधी को हराने के लिए अमेठी आई एक नेता का ज़िक्र आया जो अमेठी से प्रेमवश नहीं बल्कि राहुल गांधी से नफ़रतवश यहाँ आई। 

और फिर बेटी ने अपने मन के पल्लू में गिरह बांध कर रखी हुई एक निधि को हम सबके सामने रख दिया। उस रत्न की चमक से पूरी सभा चमक पड़ी। एक पवित्र रिश्ता फिर से अपनी आभा से साथ आकार ले रहा था। उन्होंने कहा “कि अगर अपने जीवन में एक ऐसा इंसान था जिसे मैंने पूजा वो मेरे पिताजी थे। अमेठी मेरे पिताजी की कर्मभूमि है। मैं इस भूमि को भी पूजती हूँ। ये भूमि मेरे लिये पवित्र भूमि है। ये भूमि राहुल के लिए पवित्र भूमि है।“

प्रियंका गांधी ने लंबा भाषण दिया. फर्क करना मुश्किल था कि कौन बोल रहा है. महज एक बेटी या कांग्रेस पार्टी की एक नेता

रावण की तरह अपार सत्ता और अपार धन पर सवार बीजेपी के चुनावी रथ को अपने भाई के साथ मिलकर दोनों हाथ से रोककर खड़ी प्रियंका गांधी का अमेठी भाषण उनके जीवन का अब तक का सबसे मार्मिक और शक्तिशाली भाषण है। इस भाषण ने जो हौसला भरा है वह जन-मन की स्मृति में आने वाले दसियों वर्षों तक धँसा रहेगा और प्रेरणा देने का काम करेगा। प्रियंका गांधी देश भर में प्रधानमंत्री के हमलों का मुंहतोड़ जवाब दे रही हैं।अमेठी में एक बेटी और एक नेता ने अपनी बहनों से, अपने भाइयों से जो बात की है, वह दरअसल एक नैतिक आह्वान है, नये संकल्प की एक गूंज, जो सबके मन में बैठ गयी है। भावनाओं का उभार तो उतर रहा था और मगर एक नया दृढ़संकल्प चेहरों पर चमक पैदा कर रहा था। 

एक बेटी का शोकगीत, उसका अनदेखा रुदन आज पूरी अमेठी में बिजली के करंट जैसे वेग के साथ, एक शक्ति बनकर दौड़ रहा है.

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