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UP में अंतिम दो फेज में होगा BJP के 'दोस्तों का इम्तिहान', NDA सहयोगियों को साबित करनी है ये बात

शिल्पी सेन

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UP Lok sabha Election News: लोकसभा चुनाव के अंतिम दौर में होने वाले दो चरणों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और उसके सहयोगियों के बीच दोस्ती का 'इम्तिहान' भी होगा. पूर्वांचल में इन्हीं सीटों पर NDA के सहयोगी अपना दल, सुभासपा और निषाद पार्टी के नेताओं के प्रभाव की परीक्षा होनी है. साथ ही इन्हीं सीटों पर ये भी साबित होगा कि क्षेत्रीय क्षत्रपों की अपने सहजातीय वोटों पर कितनी पकड़ है. ये बात इसीलिए अहम है क्योंकि कई बार भाजपा के साथ इन दलों के नेताओं के रिश्ते नरम-गरम भी होते रहे हैं. मगर जाति विशेष में प्रभाव रखने वाले इन दलों को भी उन्हीं क्षेत्रों में सीटें दी गई हैं.

गठबंधन के सहयोगियों की अपने वोटों पर पकड़ की परीक्षा

लोकसभा चुनाव के अंतिम दो चरण उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए 'दोस्ती के इम्तिहान' के साथ ही अपने सहयोगियों की शक्ति की पहचान करने के लिहाज से भी अहम हैं. 2014 से एनडीए गठबंधन के भरोसेमंद साथी अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल हों, अपने बयानों से सुर्खियों में रहने वाले ओम प्रकाश राजभर हों, संजय निषाद जैसे सहयोगी या फिर पार्टी में दोबारा लौटे और पहली परीक्षा में फेल होने पर भी मंत्री बनाए गए दारा सिंह चौहान सबकी परीक्षा छठे और सातवें दौर में ही होनी है. 

 

 

लोकसभा चुनाव के अंतिम दो चरणों में यूपी में बची हुई सीटों में इलाहाबाद, फूलपुर, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, अम्बेडकरनगर, श्रावस्ती, बस्ती, संतकबीर नगर, डुमरियागंज, लालगंज, आजमगढ़, जौनपुर, मछलीशहर, भदोही में 25 अप्रैल को मतदान है. वहीं वाराणसी, गाजीपुर, बलिया, चंदौली, रॉबर्ट्सगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महाराजगंज, मिर्जापुर, घोसी, सलेमपुर में 1 जून को मतदान होना है. इनमें से ज्यादातर वो सीटें हैं, जिनके नतीजे भाजपा गठबंधन के सहयोगियों के साथ तालमेल को भी बताएगा. साथ ही ये साहियोगी दल अपने समाज के वोट भाजपा को ट्रांसफर कर पाते हैं या नहीं, नतीजों से इसका भी पता चलेगा.

कुर्मी वोटरों के रुख से तय होगा अनुप्रिया का प्रभाव

2014 से भाजपा के सहयोगी रहे अपना दल (एस) के साथ पार्टी के रिश्ते अन्य सहयोगियों के मुकाबले सहज रहे हैं. अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल मंत्री होने के नाते भाजपा के मंचों पर भी सबसे ज्यादा दिखाई पड़ती हैं. 14 मई को प्रधानमंत्री के नामांकन में एनडीए ने ताकत दिखाई थी, उसमें अनुप्रिया भी मौजूद थीं. जिन सीटों पर मतदान होना है उनमें करीब 12 सीटों पर कुर्मी मतदाता प्रभावी हैं. पिछले चुनावों के अगर वोटिंग पैटर्न की बात करें तो कुर्मी वोटर किसी एक के साथ नहीं रहा है. विधानसभा चुनाव में सिराथु सीट से यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ चुनाव जीतने वाली अनुप्रिया पटेल की बहन पल्लवी पटेल की जीत इसी ओर संकेत करती है. वहीं कुर्मी वोटरों ने कौशाम्बी, मिर्ज़ापुर जैसी सीट पर अपना दल (एस) और भाजपा को वोट किया था. ऐसे में अनुप्रिया पटेल की अपनी सीट मिर्जापुर के साथ ही अपना दल के खाते में गयी. दूसरी सीट रॉबर्ट्सगंज और फूलपुर, बस्ती, प्रतापगढ़ में भी अनुप्रिया के करिश्मे और कुर्मी वोटरों के प्रभाव की परीक्षा है. 

राजभर-निषाद की भी परीक्षा 

एनडीए में कभी पास कभी दूर की स्थिति में रहने वाले सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर के अपने सहजातीय वोटों पर पकड़ की परीक्षा भी इन्हीं दो चरणों में होगी. राजभर मतदाता घोसी, लालगंज( सु), आजमगढ़, गाजीपुर में निर्णायक हैं. तमाम अंतर्विरोध और लम्बे इंतजार के बाद इन्हीं मतों को साधने के लिए भाजपा ने ओम प्रकाश राजभर को मंत्री बनाया और भारी भरकम विभाग भी दिया है. इसी के तहत सुभासपा ने घोसी से ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर को प्रत्याशी बनाया है. हालांकि समाजवादी पार्टी के राजीव राय की मजबूत स्थिति को देखते हुए कहा जा रहा है कि यहीं पर राजभर को चुनौती मिल रही हैं. पिछले दिनों राजभर-भाजपा की 'दोस्ती' का संदेश देने के लिए डिप्टी सीएम ने अरविंद राजभर को बीजेपी के कार्यकर्ताओं के सामने नतमस्तक कर दिया था. मगर राजभर के कंधों पर दूसरे जिलों में भी राजभर वोटों को साधने की जिम्मेदारी है. साथ ही इस बात की परीक्षा भी हैं कि एनडीए का सहयोगी होने के नाते सुभासपा ने क्या योगदान किया है. 

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भाजपा के सहयोगी और योगी सरकार में मंत्री निषाद पार्टी के प्रमुख डॉ. संजय निषाद के बेटे को भाजपा अपने ही सिम्बल पर संतकबीरनगर से चुनाव लड़ा रही है. निषाद वोटों को देखते हुए ही भाजपा विधानसभा में निषाद पार्टी के लिए कुछ सीटें छोड़ती रही है. जातियों में बंटे इस चुनाव में अब संजय निषाद का इम्तिहान होगा. किस तरह से निषाद मतों को अपने दोस्त भाजपा के पक्ष में करते हैं इसकी भी परख होगी. लोकसभा चुनाव के इन्हीं दो चरणों में भाजपा के कुछ राजनीतिक फैसलों को भी कसौटी पर खरा उतरने पर लोगों की नजर होगी. पूर्वांचल में नोनिया समाज के मतदाताओं की संख्या 3% से अधिक है, जिसे देखते हुए भाजपा ने पार्टी से बाहर गए और फिर वापस आए दारा सिंह चौहान को चुनाव हारने के बाद भी मंत्री बनाया है. भाजपा के इस फैसले की भी परीक्षा होनी है. फिलहाल गठबंधन की सीटों पर वोटों को साधने के लिए और दोस्ती को मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की जनसभा इन सीटों पर होने वाली हैं.

 

 

(यह खबर यूपी Tak के साथ इंटर्नशिप कर रहे अर्पित सिंह ने एडिट की है)

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