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बिछड़े सभी बारी-बारी...जिन नेताओं को अखिलेश ने जोड़ा अब वही छोड़ रहे साथ, लोकसभा में मुश्किल सपा की राह

रजत कुमार

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सपा मुखिया अखिलेश यादव
Akhilesh Yadav Samajwadi Party Rajya Sabha elections.
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Uttar Pradesh News : अगर आपने 'कागज के फूल' देखी है तो भारतीय सिनेमा के उस आइकॉनिक सीन को नहीं भूल सकते, जहां एक विराट स्टूडियों में रात के बेचैन अंधेरे में एक थका-हारा बूढ़ा डॉयरेक्टर बैठा है और किरदार के पथराई वेदना को दर्शकों के दिलों में उतारने के लिए बैकाग्राउंड म्यूजिक बजता है - 'देखी जमाने की यारी, बिछड़े सभी बारी-बारी.' उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी ऐसा ही कुछ नजारा  दिखने को मिल रहा है. जब से साल 2024 शुरू हुआ है तब से अखिलेश यादव 'कागज के फूल' के उस किरदार से नजर आ रहे हैं जो गाता है - 'बिछड़े सभी बारी-बारी..'

बिछड़े सभी बारी-बारी...

मंगलवार को उत्तर प्रदेश के 10 राज्यसभा सीटों पर हो रहे चुनाव में समाजवादी पार्टी के विधायकों ने जिस तरह क्रॉस वोटिंग की है उससे पार्टी की हालत सबके सामने आ गई.  समाजवादी पार्टी के करीब आधा दर्जन से ज्यादा विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की है. सपा के जिन छह विधायकों के नाम बीजेपी प्रत्याशी के पक्ष में वोटिंग करने में आ रहा है वो सभी अखिलेश यादव के करीबी माने जाते हैं. ऐसे में इसे अखिलेश यादव के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. 

भाजपा की आंधी के बीच सपा 

उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम अखिलेश यादव को सत्ता से दूर हुए 7 साल हो गए पर आज भी सूबे में उनका क्रेज देखा जा सकता है. अखिलेश यादव यूपी में जहां भी जाते हैं उनके समर्थकों का अच्छी खासी भीड़ भी देखी जाती है.  अगर ऐसा कहे कि फिलहाल समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में एक मात्र पार्टी है जो बीजेपी की आंधी में भी मजबूती से खड़ी है तो ऐसा गलत नहीं होगा. पर बीजेपी के आंधी रोकने के लिए जो सिपहसलार अखिलेश यादव  के साथ मजबूती से खड़े थे वो एक-एक कर उनका साथ छोड़ कर जा रहे हैं. 

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लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी में भगदड़

ऐसा लग रहा है मानो  लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी के अंदर ही घमासान मचा हुआ है. जिस पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) के दम पर सपा एनडीए गठबंधन को हराने का दम भर रही थी, अब उसी पीडीए के नाम पर पार्टी में कलह मची हुई है. स्वामी प्रसाद ने पार्टी पर भेदभाव का आरोप लगाकर सपा से अपने रास्ते अलग कर लिए. इसके बाद प्रदेश सचिव कमलाकांत गौतम ने भी पार्टी में उपेक्षा का आरोप लगाते हुए अपने पद से त्यागपत्र दे दिया. वहीं बदायूँ से पांच बार सांसद रहे सलीम शेरवानी ने भी पार्टी महासचिव पद से इस्तीफ़ा दे दिया. 2022 से पहले जिन नेताओं को अखिलेश यादव ने जोड़ा था वो एक-एक करके उनका साथ छोड़ रहे हैं. 

सहयोगियों ने भी कहा अलविदा

सपा के अंदर कलह मची ही हुई थी पर अखिलेश के साथ मजबूती से खड़े होने वाले उनके सहयोगी भी अपना अपने हाथ खींचने में देर नहीं लगा रहे हैं. जंयत चौधरी का साथ छोड़ना अखिलेश यादव के लिए किसी बड़े सदमें से कम नहीं रहा होगा. सपा और आरएलडी के बीच नजदीकियां 2018 में कैराना लोकसभा सीट के उपचुनाव में बढ़ी थीं. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन में आरएलडी भी शामिल हो गई थी. 2022 का विधानसभा चुनाव भी अखिलेश और जयंत मिलकर लड़े थे. इस चुनाव में आरएलडी को नौ सीटों पर जीत मिली थी. अब वो भाजपा गठबंधन के साथ चले गए हैं. वहींसुभासपा के ओमप्रकाश राजभर और कद्दावर पिछडे नेता दारा सिंह चौहान भी अखिलेश यादव का साथ छोड़कर चले गए.

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राजनीति से निकलकर फिर से उस फिल्म पर चलते हैं जिससे इस खबर की शुरूआत हुई थी. कागज के फूल के फ्लॉप होने से गुरुदत्त पूरी तरह से खत्म हो गए. उनका स्टूडियो भी बिकने की कगार पर आ गया था. गुरुदत्त इतने टूट गए थे कि उन्होंने इसके बाद कोई फिल्म बनायी ही नहीं. 
 

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