देश की पहली महिला जो रोजाना पास कराती हैं 80 ट्रेनें, पढ़ें ‘गेट वुमन’ सलमा बेग की कहानी

सत्यम मिश्रा

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ज़िंदगी में अक्सर चुनौतियां सामने आती हैं. कुछ लोग अपने कदम पीछे खींच लेते हैं तो कुछ अपने हौसले से चुनौतियों की दीवार को गिरा देते हैं. 29 साल की मिर्ज़ा सलमा बेग ने भी ऐसा ही किया. अपने हौंसले से सलमा न सिर्फ पुरुषों के वर्चस्व के क्षेत्र में पिछले 10 साल से नौकरी कर रही हैं बल्कि अपनी लगन से उन्होंने रिश्तेदारों से लेकर पड़ोसियों तक की सोच को गलत साबित किया है.

लखनऊ में देश की पहली महिला गेटमैन

लखनऊ मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर दूर के मल्हौर रेलवे क्रॉसिंग पर 12 घंटे में करीब 80 बार ट्रेन गुज़रती है. मैनुअल क्रॉसिंग होने की वजह से गेटमैन पर उस फाटक को बंद कर ट्रेन को गुज़रने देने की ज़िम्मेदारी होती है. फिर लोहे के भारी चक्के को घुमाकर गेट को खोलना भी गेटमैन के काम में शामिल है. पर यहा यहां 29 साल की मिर्ज़ा सलमा बेग इस ज़िम्मेदारी को निभाती हैं. सलमा बेग 10 साल से ये ज़िम्मेदारी निभा रही हैं. सलमा 2013 में भारत की पहली गेटवूमन बनी थीं.

सलमा ने दी कभी न हार मानने की सीख

सलमा के पिता गेटमैन की नौकरी करते थे लेकिन फिजिकल फिटनेस कम होने और कुछ बीमारियों की वजह से उनको नौकरी से हटना पड़ा. सलमा उस वक्त महज़ 19 साल की थीं. परिवार में माता-पिता और एक छोटी बहन थी. सलमा ने पिता से कहा कहा कि वो इस काम के लिए परीक्षा देगी और नौकरी करेगी.सलमा ने टेस्ट पास कर लिया लेकिन रेल विभाग का स्टाफ उनको देखकर हैरान था. उसी समय घर में रिश्तेदारों ने विरोध शुरू किया. रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार की लड़की का बाहर नौकरी करना ही बड़ी बात थी. ऐसे में गेट मैन का काम कोई लड़की कैसे कर सकती है? पर सलमा के पिता ने उनका साथ दिया. सलमा ने एक महीने की गेटमै की ट्रेनिंग भी पूरी की.

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सलमा को गेट वुमन का काम करते अब 10 साल हो रहे हैं. 2013 में उन्होंने नौकरी जॉइन की थी. गेटमैन का काम 12 घंटे तक होता है. भारी फाटक को चक्का घुमा कर खोलना पड़ता है. अलर्ट रहना पड़ता है कि कब ट्रेन आ रही है. सलमा कहती हैं कि ‘गेट खोलते और बंद करते समय इस बात का भी ध्यान रखना पड़ता है कि किसी को चोट न लगे. साथ ही जब तक रेलगाड़ी गुजर कर दूर न हो जाए गेट बंद रखना होता है. कई बार लोग बहुत जल्दी करते हैं पर हमको लोगों की सुरक्षा का ध्यान रखना होता है.’

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