छतौना का ‘बुद्धू’, घर छोड़ बार-बार भागा, एक दिन आया फोन- ”महंत नरेंद्र गिरि बोल रहा हूं”

शिल्पी सेन

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उत्तर प्रदेश में फूलपुर के पास एक गांव है- छतौना. इस गांव में एक बालक को ‘बुद्धू’ कहा जाता था. ‘बुद्धू’ से लोग अक्सर कहते थे कि तुम कुछ नहीं कर पाओगे. मगर यही ‘बुद्धू’ आगे चलकर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष बने.

यह कहानी है उन नरेंद्र गिरि की, जिनकी 20 सितंबर को संदिग्ध परिस्थितियों में मौत होने से देशभर का साधु-संत समाज स्तब्ध है.

‘बुद्धू’ के पिता भानु प्रताप सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय सदस्य थे. भानु प्रताप सिंह ज्यादातर घर से बाहर ही रहते थे. ऐसे में फूलपुर के पास ही गिर्दकोट गांव में नाना के घर पर ही ‘बुद्धू’ का रहना हुआ. नाना और मामा उनकी देखभाल करते थे. नाना के सबसे दुलारे ‘बुद्धू’ अक्सर गांव में खेलते-खेलते वहां आने वाले संतों-योगियों के साथ घुल मिल जाते.

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फिर अचानक एक दिन ‘बुद्धू’ घर से भाग गए. काफी खोजबीन हुई और उसके बाद उन्हें घर वापस लाया गया. छठी क्लास की पढ़ाई के बाद ‘बुद्धू’ फिर भाग गए. काफी खोजबीन के बाद लौटे तो पता चला कि कहीं योगियों से घुल मिल गए थे. फिर ‘बुद्धू’ को समझाया बुझाया गया. हाई स्कूल की परीक्षा के बाद ‘बुद्धू’ ने नरेंद्र सिंह नाम से बैंक ऑफ बड़ौदा में नौकरी पा ली.

सब कुछ सामान्य चल रहा था पर जब घर में शादी की बात होने लगी तो एक दिन बैंक के गार्ड को चाबी सौंपकर नरेंद्र सिंह कहीं चले गए. नरेंद्र के मामा प्रोफेसर महेश सिंह एक पुरानी घटना को याद करते हुए कहते हैं,

”अचानक एक दिन फोन आया. उधर से आवाज आई कि ‘मैं महंत नरेंद्र गिरि बोल रहा हूं’…तब जाकर हम लोगों को पता चला कि बुद्धू महंत नरेंद्र गिरि बन गए हैं. उसके बाद हमारे इसी घर में जहां उनका पालन पोषण हुआ था वो संन्यासी के वेश में एक बार आए. जब प्रणाम करने लगे तो मेरी पत्नी यानी नरेंद्र गिरि की मामी ने कहा कि आप जिस वेश में आए हैं हमको आपको प्रणाम करना चाहिए.”

महेश सिंह

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महेश सिंह कहते हैं कि संन्यासी बनने के बाद अपने परिवार से जुड़ाव नहीं रहता. उन्होंने कहा, ”नरेंद्र गिरि पर जो लोग सवाल उठा रहे हैं वो ये सोच लें कि अपने नाना के नाम पर बने अमीपुर के सरयू प्रसाद सिंह इंटर कॉलेज में हमेशा कार्यक्रमों में आने वाले नरेंद्र गिरि ने कभी एक फर्लांग की दूरी पर स्थित अपने घर में कदम नहीं रखा.”

महेश सिंह का कहना है कि नरेंद्र में अपने संघर्ष की वजह से इतनी जिजीविषा थी कि लगता नहीं है कि वो आत्महत्या कर सकते थे.

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उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के सचिव रहे महेश सिंह कहते हैं कि नरेंद्र ”अपने नाना के नाम पर बने स्कूल में लगातार सक्रिय रहे. 27 नवंबर को इस स्कूल का स्थापना दिवस है. आखिरी बार बात हुई थी तो यही कि इस बार के समारोह में मुख्यमंत्री योगी जी को आमंत्रित करेंगे. ये 5-6 दिन पहले की बात है. अब ये हो गया.”

बता दें कि नरेंद्र गिरि 20 सितंबर को प्रयागराज स्थित अपने बाघंबरी गद्दी मठ में मृत मिले थे. प्रयागराज पुलिस के मुताबिक, इस मामले में एक ”सुसाइड नोट” भी मिला है, जिसमें लिखा गया गया है कि नरेंद्र गिरि अपने शिष्य से दुखी थे. फिलहाल पुलिस मामले की जांच कर रही है.

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