ज्ञानवापी केस: सर्वे कराने का आदेश देने वाले जज को सताई सुरक्षा की चिंता
वाराणसी के चर्चित श्रृंगार गौरी मामले में अधिवक्ता कमिश्नर के जरिए ज्ञानवापी मस्जिद की बैरिकेड्स के अंदर सर्वे और वीडियोग्राफी की कार्रवाई कराने का आदेश…
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वाराणसी के चर्चित श्रृंगार गौरी मामले में अधिवक्ता कमिश्नर के जरिए ज्ञानवापी मस्जिद की बैरिकेड्स के अंदर सर्वे और वीडियोग्राफी की कार्रवाई कराने का आदेश देने वाले सिविल जज सीनियर डिविजन रवि कुमार दिवाकर को भी सुरक्षा की चिंता सताने लगी है. अपने आदेश के पेज नंबर 2 पर जज ने इस बात का जिक्र किया है.
वाराणसी के चर्चित श्रृंगार गौरी मामले में ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे और वीडियोग्राफी की कार्रवाई एडवोकेट कमिश्नर के द्वारा कराए जाने का आदेश देने वाले सिविल जज सीनियर डिविजन रवि कुमार दिवाकर ने प्रतिवादी अंजुमन इंतजामियां मसाजिद कमेटी के एडवोकेट कमिश्नर के पक्षपात पूर्ण रवैया का आरोप लगाने वाले प्रार्थना पत्र जिसमें एडवोकेट कमिश्नर को बदलने की मांग को खारिज करते हुए और भी कड़ा रुख अपनाकर मस्जिद के अंदर वीडियोग्राफी और सर्वे कार्य दे दिया है.
वहीं इस आदेश में सिविल जज सीनियर डिविजन रवि कुमार दिवाकर ने अपनी सुरक्षा की भी चिंता जाहिर की है और परिवार की चिंता का भी उल्लेख किया है. जज रवि कुमार दिवाकर के आदेश के पेज नंबर 2 पर जो लिखा है वह इस प्रकार है-
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न्यायालय के मतानुसार यह कमीशन कार्यवाही एक सामान्य कमीशन है, जो कि अधिकतर सिविल वादों में सामान्यतः करवायी जाती है और शायद ही कभी अधिवक्ता कमिश्नर को प्रश्नांकित किया जाता हो.
इस साधारण से सिविल वाद को बहुत ही आसाधारण बनाकर एक डर का माहौल पैदा कर दिया गया. डर इतना है कि मेरे परिवार को बराबर मेरी तथा मुझे अपने परिवार की सुरक्षा की चिन्ता बनी रहती है. घर से बाहर होने पर बार-बार पत्नी के द्वारा सुरक्षा के प्रति चिन्ता व्यक्त की जाती है. कल लखनऊ में माता जी ने भी बातचीत के दौरान मेरी सुरक्षा को लेकर चिन्ता व्यक्त की और मीडिया द्वारा प्राप्त खबरों से उन्हें यह जानकारी हुई कि शायद मैं भी कमिश्नर के रूप में मौके पर जा रहा हूं और मेरी माता जी के द्वारा मुझे मना किया गया कि मैं मौके पर कमीशन पर न जाऊं, क्योंकि इससे मेरी सुरक्षा को खतरा हो सकता है.
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आदेश में आगे कहा गया है कि प्रश्नगत मामले में अभी तक वकील कमिश्नर के द्वारा आंशिक रूप से कमीशन की कार्यवाही सम्पादित की गयी है और इस स्तर पर अधिवक्ता कमिश्नर पर उंगली उठाना न्यायोचित प्रतीत नहीं होता है.
न्यायालय प्रतिवादी संख्या 4 के कथनों में कोई बल नहीं पाती है कि अधिवक्ता कमिश्नर अजय कुमार मिश्रा को हटाकर किसी अन्य से कमीशन कार्य करवाया जाए. किन्तु न्यायिक व्यवस्था में एक उक्ति बहुत प्रचलित है कि “न्याय होना ही नहीं चाहिए वरन न्याय होता हुआ दिखना भी चाहिए.”
अतः प्रार्थना पत्र 56 ग इस आशय के साथ निस्तारित किया जाता है कि वकील कमिश्नर अजय कुमार मिश्रा के साथ अधिवक्ता विशाल सिंह रजिस्ट्रेशन नं० यू० पी० 9222/2007 को विशेष अधिवक्ता आयुक्त नियुक्त किया जाता है. तथा सहायक अधिवक्ता आयुक्त के रूप में अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह रजिस्ट्रेशन नं० यू० पी० 6689/2008 को अधिवक्ता आयुक्त नियुक्त किया जाता है.
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यह स्पष्ट किया जाता है कि अधिवक्ता आयुक्त अजय कुमार मिश्रा तथा विशेष अधिवक्ता आयुक्त विशाल सिंह संयुक्त रूप से कमीशन कार्यवाही सम्पादित करेंगे. यदि दोनों में से कोई एक किसी कारण से कमीशन कार्यवाही हेतु उपस्थित नहीं होता है तो एक को अधिकार होगा कि वह कमीशन कार्यवाही सम्पूर्ण करें अर्थात यदि अजय कुमार मिश्रा अनुपस्थित होते हैं तो विशाल सिंह कमीशन की कार्यवाही को सम्पादित करेंगे और यदि विशाल सिंह अनुपस्थित होते हैं तो अजय कुमार मिश्रा कमीशन की कार्यवाही को सम्पादित करेंगे.
यह आदेश न्यायालय के पूर्ववर्ती आदेश के अनुक्रम में माना जाएगा. जिला प्रशासन किसी भी प्रकार का बहाना बनाकर कमीशन कार्यवाही को टालने का प्रयास नहीं करेंगे. अधिवक्ता आयुक्तगण को नियमानुसार रिट परवाना जारी हो. वादिनीगण आवश्यक पैरवी अविलम्ब करें. अधिवक्ता आयुक्तगण अविलम्ब सूचित हों. पत्रावली नियत दिनांक 17.05.2022 को पेश हो.
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