CWG 2022: मेरठ की प्रियंका को पैदल चाल में सिल्वर, बस कंडक्टर की बेटी की सक्सेस स्टोरी
Meerut news: मेरठ की एक और बिटिया ने कामयाबी की मिसाल पेश की है. माधवपुरम की रहने वाली प्रियंका गोस्वामी ने बर्मिंघम में कॉमनवेल्थ गेम…
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Meerut news: मेरठ की एक और बिटिया ने कामयाबी की मिसाल पेश की है. माधवपुरम की रहने वाली प्रियंका गोस्वामी ने बर्मिंघम में कॉमनवेल्थ गेम 2022 (Commonwealth Games 2022) में पैदल चाल में सिल्वर मेडल जीत देश का नाम रोशन किया है. इस जीत के बाद प्रियंका के घर पर जश्न का माहौल है. प्रियंका के माता-पिता अपनी इस बेटी की कामयाबी पर फूले नहीं समा रहे हैं. प्रियंका गोस्वामी ने लंबे संघर्ष के बाद कॉमनवेल्थ गेम में अपनी मेहनत से यह सफलता हासिल की है.
प्रियंका ने कॉमनवेल्थ गेम में 10 किलोमीटर पैदल चाल में सिल्वर मेडल जीता है. बेटी की इस बड़ी उपलब्धि पर उनके घर पर खुशी का माहौल है. ढोल-नगाड़ों की थाप पर तिरंगा लिए प्रियंका की मां अनिता और पिता मदन गोस्वामी सहित मामा और पड़ोसी डांस करके अपनी खुशी का इजहार कर चुके हैं.
जब प्रियंका को ओलिंपिक में जाने का मिला था मौका
प्रियंका गोस्वामी ने रांची में हुई प्रतियोगिता में पैदल चाल में 20 किलोमीटर की वॉक 1 घंटा 28 मिनट 45 सेकेंड में पूरी की थी. तब उन्हें ओलिंपिक में जाने का मौका मिल गया था. रांची में हुई राष्ट्रीय एथलेटिक चैंपियनशिप में पैदल चाल में रिकॉर्ड के साथ स्वर्ण पदक भी जीता था. प्रियंका को बीते दिनों रानी लक्ष्मी बाई अवॉर्ड भी दिया गया था. प्रियंका गोस्वामी की राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें यह पुरस्कार दिया गया था.
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पीएम नरेंद्र मोदी ने मन की बात में खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाया था और मेरठ की प्रियंका गोस्वामी का भी नाम लिया था. आपको बता दें कि प्रियंका ने मेरठ के कैलाश प्रकाश स्टेडियम से अपना सफर शुरू किया और आज वो इस मुकाम पर पहुच गईं. प्रियंका के पिता के आर्थिक हालात अच्छे नही थे. वो एक बस कंडेक्टर थे और किसी कारण वश उन की नौकरी चली गई. बेहद संघर्ष और जद्दोजहद के बाद आज प्रियंका इस मुकाम पर पहुंची हैं. कुछ कर दिखाने का जज्बा प्रियंका को आज इस मुकाम तक ले आया है.
अब तक प्रियंका ने कई नेशनल और इंटरनेशनल अवार्ड अपने नाम कर लिए हैं. प्रियंका ने सबसे पहले वर्ष 2015 में रेस वॉकिंग में आयोजित राष्ट्रीय चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. मैंगलोर में फेडरेशन कप में भी तीसरे स्थान पर रहते हुए कांस्य पर कब्जा जमाया. वर्ष 2017 में दिल्ली में हुई नेशनल रेस वॉकिंग चैंपियनशिप में इस एथलीट ने कमाल करते हुए अपने वर्ग में शीर्ष स्थान हासिल करते हुए गोल्ड मेडल जीता.
2018 में खेल कोटे से रेलवे में मिली प्रियंका को नौकरी
2018 में खेल कोटे से रेलवे में प्रियंका को क्लर्क की नौकरी मिल गई. परिवार की आर्थिक हालत सुधरी तो इस बिटिया का उत्साह और बढ़ गया और मेरठ की अंतरराष्ट्रीय एथलीट प्रियंका गोस्वामी ने रांची में चल रहे राष्ट्रीय एथलेटिक्स चैंपियनशिप में ओलंपिक के लिए क्वॉलीफाई किया.
पिता ने सुनाई संघर्षों की दास्तां
प्रियंका के पिता मदनपाल बताते हैं कि वह मूल रूप से मुजफ्फरनगर जिले के रहने वाले हैं और फिर उसके बाद वह मेरठ आ गए. उनकी ससुराल से उनको एक भैंस मिली थी और एक भैंस इन्होंने उधार के पैसों से खरीदी. अपने बच्चों के साथ मेरठ में काफी दिन तक इन्होंने एक दूध की डेयरी चलाई. इसकेबाद मेरठ में इनको रोडवेज में बस कंडक्टर के पद पर नौकरी मिल गई. फिर जब प्रियंका अपने स्कूल जाने लगी तो वहां पर उसका सिलेक्शन जिम्नास्टिक्स के लिए हो गया. उन्हें लखनऊ हॉस्टल भेज दिया गया. तब प्रियंका 7वीं या 8वीं क्लास में थी. 6 महीने बाद वह अपने वापस घर आ गई. कुछ दिन बाद ही प्रियंका को फिर खेलों की धुन सवार हुई और वह अपने पिता के साथ मेरठ स्टेडियम जा पहुंची और वहां पर उसका रेस में सिलेक्शन हो गया.
इसी बीच प्रियंका की प्रैक्टिस चलती रही और 1 दिन उसके एक सीनियर को एक बैग इनाम में मिला. प्रियंका को धुन लग गई कि उसको भी ऐसा ही बैग जीत कर लाना है. प्रियंका ने पहली रेस में ₹5000 जीते. प्रियंका ने पांचवी तक की पढ़ाई अपने गांव से की. ग्रैजुएशन पंजाब से किया. हालांकि प्रियंका फैशन डिजाइनर भी बनना चाहती थी और उनका सिलेक्शन भी हो चुका था लेकिन नसीब में उनके पैदल चाल थी. प्रियंका के पिता मदन पाल कहते हैं कि उनकी सारी तमन्नाएं प्रियंका ने पूरी कर दीं. अब उन्हें ओलिंपिक में पदक लाने की उम्मीद है.
मां ने पूरी करवाई थी स्कूटी वाली डिमांड
प्रियंका की मां अनीता गोस्वामी बताती हैं कि उनके पति मदन पाल की नौकरी चली गई थी. गाड़ी चला चला कर उन्होंने अपने बच्चों को पाला और आगे बढ़ाया. जब प्रियंका पटियाला रहती थीं, तो आर्थिक स्थिति घर की बहुत कमजोर हो गई थी. प्रियंका को एक समय का खाना गुरुद्वारे में खाना पड़ता था. प्रियंका ने पहले जिम्नास्ट किया, फिर रेस में हिस्सा लिया और आगे चलकर पैदल चाल में नाम कमाया. प्रियंका की मां बताती हैं कि आज तक प्रियंका ने कुछ नहीं मांगा लेकिन एक बार स्कूटी मांगी थी तो हमने उनको दिला दी थी.
प्रियंका के भाई कपिल गोस्वामी बताते हैं कि प्रियंका शुरू से जिद्दी मिजाज की रही है. एक कूलर को लेकर उनमें झगड़ा रहता था और कूलर के आगे सोने की जिद में हमेशा प्रियंका ही जीत जाती थी. भाई कहते हैं कि उसकी जिद है कि आज उसने नाम कमाया है.