Uttar Pradesh News: अभी उत्तर प्रदेश के जालौन जिले स्थित मलकपुरा गांव के सरकारी स्कूल के मिड-डे-मील की चर्चा थमी नहीं थी कि अब सूबे का एक और सरकारी स्कूल चर्चाओं के केंद्र में आ गया है. सोशल मीडिया पर अचानक ही यूपी के सरकारी स्कूलों की तुलना दिल्ली के सरकारी स्कूलों से चल उठी है. बता दें कि ये तुलना संभल जिले के एक सरकारी स्कूल की तस्वीरों की शक्ल में सामने आई है. दरअसल, संभल जिले के असमौली में स्थित प्राथमिक विद्यालय इटायला माफी एक बार फिर सुर्खियों के केंद्र में आ गया है. सोशल मीडिया पर इस स्कूल की विभिन्न तस्वीरें शेयर कर दावा किया जा रहा है कि अगर ये स्कूल यूपी के संभल की बजाए दिल्ली में होता तो इसे अंतर्राष्ट्रीय तौर पर सुर्खियां मिल जातीं. गौरतलब है कि बीते दिनों दिल्ली के स्कूलों की कहानी अमरीका के एक अखबार में छपी थी, जिसको लेकर भारत में काफी राजनीति गरमाई थी.
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आपको इस स्कूल की तस्वीर देखकर अंदाजा हो ही गया होगा कि ये कोई आम सरकारी स्कूल नहीं है. इसकी सुंदरता बताती है कि ये स्कूल किसी भी प्राइवेट स्कूल को टक्कर दे सकता है. अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या इस स्कूल को एक मॉडल स्कूल बनाने के पीछे कौन है? क्योंकि सोशल मीडिया पर जो चर्चा चल रही है उससे ऐसा प्रतीत होता है कि कहीं न कहीं सरकार की इच्छाशक्ति से स्कूल को ऐसा बनाया गया है. आइए आगे खबर में हम आपको बताते हैं कि आखिर इस स्कूल की सच्चाई क्या है?
सबसे पहले जानिए सोशल मीडिया पर क्या हो रही चर्चा?
बीजेपी नेता अरुण यादव ने ट्विटर पर संभल के सरकारी स्कूल की तस्वीर शेयर कर लिखा, “ये प्राईमरी स्कूल उत्तर प्रदेश के जिला संभल में है. अगर ये दिल्ली की तस्वीर होती तो अंतराष्ट्रीय अखबारों में सुर्खियां बनाई जाती..”
वहीं, फेसबुक पर सुमेर चौधरी नामक शख्स ने लिखा-
यहां जानिए क्या है स्कूल का सच
ऐसा संभव है कि संभल के इस स्कूल की वायरल तस्वीरें आप तक भी पहुंची हों. ऐसे में आपको भी एक जिज्ञासा हो रही होगी कि क्या सचमुच यूपी के सरकारी स्कूल इतना बदल गए हैं? इसलिए इसी सवाल का जवाब तलाशने के लिए हमने इस पूरे मामले की पड़ताल की है.
असल में संभल के इस सरकारी स्कूल का जिस शख्स ने नक्शा बदला है, उनका नाम कपिल मलिक है. कपिल इस स्कूल के प्रिंसिपल हैं. कपिल उस समय से इस स्कूल को विकसित करने में लगे हैं, जब प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार नहीं थी.
स्कूल के प्रिंसिपल कपिल मलिक ने हमसे खास बातचीत में बताया कि उनकी पोस्टिंग इस स्कूल में साल 2010 में हुई थी. बकौल मलिक, उस दौरान स्कूल में सिर्फ 46 बच्चों का नामांकन था. जिनमें से 15-20 बच्चे ही स्कूल आते थे और स्कूल में न ढंग का बोर्ड था और न ही कोई और इतंजाम. प्रिंसिपल के अनुसार, साल 2014 से वह इस स्कूल को विकसित करने में लगे हुए हैं.
कपिल मलिक ने हमें बताया कि अब तक उन्होंने अपनी जेब से इस स्कूल के लिए 20 से 25 लाख रुपये खर्च कर दिए हैं. मलिक के मुताबिक, उनका स्कूल तकनीकी रूप से भी सक्षम है. हर क्लास में कैमरा, माइक और स्पीकर लग रहे हैं. उन्होंने बताया कि स्कूल के मेंटेनेंस के लिए सरकार की तरफ से सालाना 75 हजार रुपये आते हैं, जबकि स्कूल के रख-रखाव के लिए वह 4 लाख रुपये तक खर्च करते हैं.
मूल रूप से मुरादाबाद जिले के लोधीपुर राजपूत गांव के रहने वाले कपिल मलिक को उनके इस अतुलनीय प्रयास के लिए कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं. आपको बता दें कि साल 2014 में उन्हें उत्कृष्ट विद्यालय पुरस्कार, साल 2017 में स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार, साल 2018 में राज्य अध्यापक पुरस्कार और साथ में उन्हें राज्य स्तरीय ICT अवॉर्ड समेत कई और पुरस्कार भी मिल चुके हैं.
पूरे मामले की पड़ताल करने के बाद एक बात तो साफ है कि इस स्कूल को बनाने में जिस शख्स की मेहनत है, वह खुद इस स्कूल के प्रिंसिपल कपिल मालिक ही हैं. ऐसा नहीं है कि स्कूल को विकसित करने में सरकारी धन नहीं लगा है, मगर स्कूल का जो असल में रंग रूप बदला है, उसमें सबसे बड़ा योगदान कपिल मलिक का है, जो अपने वेतन से समाज की बेहतरी के लिए प्रशंसनीय काम कर रहे हैं.
(संभल से अभिनव माथुर के इनपुट्स के साथ)
जालौन: इस सरकारी स्कूल के मिड-डे-मील में मिल रहा मटर पनीर, रसगुल्ला और सेब
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