2007 गोरखपुर हिंसा मामला: CM योगी पर मुकदमे की इजाजत नहीं देने के खिलाफ याचिका पर फैसला आज

UP news: शुक्रवार को यूपी के लिहाज से सुप्रीम कोर्ट में बड़ा दिन साबित होने जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना…

संजय शर्मा

• 02:56 AM • 26 Aug 2022

follow google news

UP news: शुक्रवार को यूपी के लिहाज से सुप्रीम कोर्ट में बड़ा दिन साबित होने जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना के कार्यकाल के आखिरी दिन लिस्ट हुए कुछ अहम मामलों में एक मामला सीएम योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath news) से भी जुड़ा हुआ है. यूपी सरकार की तरफ से 2007 की गोरखपुर हिंसा (2007 Gorakhpur riots) मामले में सीएम योगी पर मुकदमे की इजाज़त न देने के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को फैसला सुनाएगा. आपको बता दें कि सीएम योगी पर इस मामले में भड़काऊ भाषण देने का आरोप है. तब योगी आदित्यनाथ गोरखपुर के सांसद हुआ करते थे.

यह भी पढ़ें...

2007 में योगी आदित्यनाथ और अन्य के खिलाफ गोरखपुर थाने में एक FIR दर्ज की गई थी. यह आरोप लगाया था कि आदित्यनाथ द्वारा कथित अभद्र भाषा के बाद उस दिन गोरखपुर में हिंसा की कई घटनाएं हुईं थी. मार्च 2017 में योगी आदित्यनाथ यूपी के सीएम बने. गोरखपुर हिंसा मामले में राज्य सरकार ने मई 2017 में सबूत नाकाफी बताते हुए मुकदमे की इजाजत देने से मना किया था.

साल 2018 में इलाहाबाद हाई कोर्ट भी राज्य सरकार के फैसले को सही ठहरा चुका है. आपको बता दें कि इससे पहले बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने 2007 के कथित नफरत फैलाने वाले भाषण से संबंधित उस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शामिल हैं. हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ सुनवाई कर रही है.

इस मामले में फरवरी 2018 में दिए गये अपने फैसले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा था कि उसे जांच या मुकदमा चलाने के लिए मंजूरी देने से इनकार करने की निर्णय लेने की प्रक्रिया में कोई प्रक्रियागत त्रुटि नहीं मिली. याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता फुजैल अहमद अय्यूबी ने उच्च न्यायालय में उल्लिखित मुद्दों में से एक का जिक्र किया, जो इस प्रकार है, ‘‘क्या राज्य किसी आपराधिक मामले में प्रस्तावित आरोपी के संबंध में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 196 के तहत आदेश पारित कर सकता है, जो इस बीच मुख्यमंत्री के रूप में चुने जाते हैं और संविधान के अनुच्छेद 163 के तहत प्रदत्त व्यवस्था के अनुसार कार्यकारी प्रमुख हैं.’’ उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को उच्च न्यायालय द्वारा नहीं निपटाया गया था.

इस पर पीठ ने कहा, ‘एक और मुद्दा, एक बार जब आप निर्णय और सामग्री के अनुसार गुण-दोष देखते हैं, तो यदि कोई मामला नहीं बनता है, तो मंजूरी का सवाल कहां है.’ शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘अगर कोई मामला है, तो मंजूरी का सवाल आएगा. अगर कोई मामला नहीं है, तो मंजूरी का सवाल ही कहां है.’’ इस पर अय्यूबी ने कहा कि मुकदमा चलाने की मंजूरी से इनकार करने के कारण मामला बंद करने की रिपोर्ट दाखिल की गई है.

क्या है यूपी सरकार का पक्ष?

उत्तर प्रदेश की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि मामले में कुछ भी नहीं बचा है. उन्होंने कहा कि सीडी को सेंट्रल फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (सीएफएसएल) को भेजा गया था और पता लगा कि इसमें छेड़छाड़ की गई थी. रोहतगी ने कहा कि न्यायालय को जुर्माना लगाकर मामले को खरिज कर देना चाहिए. रोहतगी ने कहा कि याचिकाकर्ता ने वर्ष 2008 में एक टूटी हुई काम्पैक्ट डिस्क (सीडी) दी थी और फिर पांच साल बाद उन्होंने कथित तौर पर अभद्र भाषा की एक और सीडी दे दी.

क्या है पूरा मामला?

आपको बता दें कि गोरखपुर के एक थाने में तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ और अन्य के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी. यह केस दो समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोपों को लेकर दर्ज हुआ था. यह आरोप लगाया था कि आदित्यनाथ द्वारा कथित अभद्र भाषा के बाद उस दिन गोरखपुर में हिंसा की कई घटनाएं हुईं थी.

(भाषा के इनपुट्स के साथ)

    follow whatsapp