UP News: उत्तर प्रदेश बीजेपी के ब्राह्मण विधायकों के सहभोज की खबर सामने आते ही पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी और खींचतान खुलकर सामने आ गई है. इससे यह संदेश भी गया कि सत्ता में होने के बावजूद प्रदेश बीजेपी में सब कुछ ठीक नहीं है. मामले पर पंकज चौधरी ने बयान जारी करते हुए पार्टी नेताओं को नकारात्मक राजनीति से बचने की नसीहत दी. हालांकि उनके बयान की तल्खी ने हालात को शांत करने के बजाय और सवाल खड़े कर दिए. पार्टी के भीतर चर्चा शुरू हो गई कि इस कड़े बयान का प्रदेश के ब्राह्मण समुदाय में अच्छा संदेश नहीं गया और इस पूरे मामले को पंकज चौधरी और बेहतर तरीके से संभाल सकते थे.
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दरअसल, यह पहला मौका नहीं है जब बीजेपी के विधायकों ने जाति के आधार पर बैठक की हो. इससे पहले भी राजपूत समाज और कुर्मी समाज के बीजेपी विधायकों की बैठकें हो चुकी हैं. उस समय प्रदेश नेतृत्व ने ऐसे मामलों को तल्ख बयानों की बजाय संवाद के जरिए सुलझाया था.
पहले भी जातीय आधार पर बैठकें हुईं, तब संज्ञान क्यों नहीं लिया गया?
प्रदेश बीजेपी के एक धड़े का मानना है कि जब पहले भी जातीय आधार पर बैठकें हुईं, तब उन पर संज्ञान क्यों नहीं लिया गया और अब ही इतने कड़े बयान क्यों जारी किए गए. इस वर्ग का तर्क है कि चुनाव से पहले बीजेपी खुद भी जाति आधारित सम्मेलन करती रही है. ऐसे में अगर जाति के आधार पर सम्मेलन हो सकते हैं, तो विधायक आपस में बैठक क्यों नहीं कर सकते. उनका यह भी कहना है कि ब्राह्मण विधायकों की बैठक पहले हुई जातीय बैठकों की प्रतिक्रिया हो सकती है और संभव है कि यह वर्ग सत्ता और संगठन में खुद को उपेक्षित महसूस कर रहा हो.
वहीं प्रदेश बीजेपी के एक अन्य वर्ग का मानना है कि पार्टी सर्वसमावेशी राजनीति और हिंदू हित की बात करती है. ऐसे में जाति के आधार पर बैठकें करना हिंदू समाज को बांटने जैसा है, जो परंपरागत रूप से समाजवादी पार्टी और बीएसपी करती रही हैं. इस वर्ग का तर्क है कि अगर बीजेपी के नेता भी यही रास्ता अपनाएंगे, तो यह विपक्ष द्वारा बिछाई गई पिच पर खेलने जैसा होगा.
विधानसभा चुनाव से पहले यह घटना चेतवानी की तरह देखि जा रही!
2027 के विधानसभा चुनाव से पहले यह घटना पार्टी के लिए एक चेतावनी भी मानी जा रही है कि आखिर विधायकों को जातीय गोलबंदी की ज़रूरत क्यों महसूस हो रही है.
हालांकि, पार्टी नेता यह भी मानते हैं कि बिहार और यूपी की राजनीति में जाति एक हकीकत है और राजनीतिक समीकरणों में इसकी अहम भूमिका रही है. यही वजह है कि पार्टियां फैसले लेते वक्त इन समीकरणों को ध्यान में रखती हैं. लेकिन अगर इन राज्यों में विपक्ष की राजनीति की बुनियाद ही जाति आधारित है तो ऐसे में राष्ट्रवादी और विकासोन्मुख राजनीति ही बीजेपी जैसे राष्ट्रीय दल के हित में है जिसकी बदौलत पार्टी केंद्र और राज्यों में सत्ता में है.
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