मुलायम परिवार का एक और किला ध्वस्त, यूपी की सहकारिता के शीर्ष पर अब बीजेपी-संघ के लोग

कुमार अभिषेक

• 05:05 PM • 15 Jun 2022

यूपी में कोऑपरेटिव यानी सहकारिता की सियासत पर मुलायम परिवार के किले को बीजेपी ने ध्वस्त कर दिया है. शिवपाल यादव के बेटे को पीसीएफ…

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यूपी में कोऑपरेटिव यानी सहकारिता की सियासत पर मुलायम परिवार के किले को बीजेपी ने ध्वस्त कर दिया है. शिवपाल यादव के बेटे को पीसीएफ की कुर्सी से हटाकर बीजेपी ने संघ के जुड़े हुए अपने लोगों को बैठा दिया है. पीसीएफ के सभापति पद पर बीजेपी के वाल्मीकि त्रिपाठी निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं. वहीं उप सभापति रमाशंकर जायसवाल बने हैं.

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एक तरह से कहें तो सहकारिता पर अब बीजेपी और संघ के लोगों का पूरी तरह से कब्जा हो गया है. वाल्मीकि त्रिपाठी बीजेपी के सहकारिता प्रकोष्ठ से जुड़े रहे और रमाशंकर जायसवाल आरएसएस के आनुसंगिक संगठन सहकार भारती से जुड़े हैं. बीजेपी ने पीसीएफ के प्रबंध समिति में सभी सदस्य बीजेपी और आरएसएस से जुड़े ही बनाए हैं.

पीसीएफ के प्रबंध समिति में जो 11 सदस्य निर्विरोध जीते हैं उनमें बीजेपी के सहकारिता प्रकोष्ठ और आरएसएस के वैचारिक संगठन सहकार भारती से जुड़े लोग शमिल हैं. गोरखपुर से रमाशंकर जायसवाल, कानपुर से आनंद किशोर, अलीगढ़ से अनुराग पांडेय, बरेली से राकेश गुप्ता, प्रयागराज से अमर नाथ यादव, बलिया से वाल्मीकि त्रिपाठी, झांसी से पुरुषोत्तम पांडेय, मेरठ से कुंवर पाल, लखनऊ से विश्राम सिंह, राम बहादुर सिंह, मुरादाबाद से रमेश प्रबंध समिति के लिए निर्विरोध सदस्य निर्वाचित हुए हैं.

यूपी में 7500 सहकारी समितियां हैं, जिनकी लगभग एक करोड़ सदस्य संख्या है. बीजेपी ने इन समितियों पर अपना कब्जा जमा लिया है. प्रदेश की शीर्ष सहकारी संस्थाओं की बात करें तो इनमें उप्र को ऑपरेटिव फेडरेशन लिमिटेड, उप्र सहकारी बैंक लिमिटेड, उप्र सहकारी ग्राम्य विकास बैंक, उप्र राज्य निर्माण सहकारी संघ, उप्र राज्य निर्माण एवं श्रम विकास सहकारी संघ, उप्र राज्य उपभोक्ता सहकारी संघ लिमिटेड, उप्र जूट सहकारी संघ लिमिटेड, उप्र को ऑपरेटिव यूनियन लिमिटेड प्रमुख हैं.

सिर्फ पीसीएफ पर ही सपा विधायक शिवपाल यादव के लड़के आदित्य यादव का कब्जा था. अब इस कुर्सी पर भी बीजेपी काबिज हो गई है. अब सहकारिता क्षेत्र की सियासत से सपा दूर हो चुकी है. बीजेपी ने जिस तरह से संघ से जुड़े हुए लोगों के इस पद पर बैठाया है, उसके पीछे एक भविष्य की सियासत छिपी हुई है. सपा की तरह बीजेपी भी सहकारिता संस्थाओं में अपने लोगों के जरिए जमीनी स्तर पर सियासत को और मजबूत करेगी.

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