रामचरितमानस पर टिप्पणी के बीच अब स्वामी प्रसाद मौर्य ने लेटे हनुमान मंदिर पर किया कमेंट

यूपी तक

• 07:17 AM • 25 Jan 2023

समाजवादी पार्टी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य की रामचरितमानस को लेकर की गई टिप्पणी पर यूपी में काफी तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं. अभी यह…

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समाजवादी पार्टी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य की रामचरितमानस को लेकर की गई टिप्पणी पर यूपी में काफी तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं. अभी यह विवाद शांत हुआ नहीं था कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने एक नया बयान दे दिया है. इस बार उन्होंने लखनऊ के लेटे हनुमान मंदिर को लेकर टिप्पणी की है. जाहिर तौर पर उनका हालिया बयान पर भी सियासत होने की पूरी संभावना बनती नजर आ रही है.

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आइए आपको पहले बताते हैं कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने अब क्या कह दिया है. असल में यूपी के पूर्व कैबिनेट मंत्री और कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने ट्वीट करते हुए लिखा है कि, ‘लखनऊ, पकापुल के पास लेटे हुए हनुमान मंदिर में पुजारियों द्वारा प्रतिबंध हास्यास्पद है, अपने पूरे जीवन में इस मंदिर में न कभी गया था न कभी जाऊंगा. जहां भेदभाव हो वहां जाने की जरूरत क्यों.’

अब इसके पीछे की कहानी भी जान लीजिए

असल में रामचरितमानस को लेकर स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान पर संत और पुजारी समाज की तरफ से भी प्रतिक्रियाएं सामने आईं हैं. इसी क्रम में लखनऊ लक्ष्मण टीला, पक्का पुल के पास प्राचीन लेटे हनुमान जी मंदिर में एक पोस्टर लगाया गया. इस पोस्ट में स्वामी प्रसाद मौर्य को अधर्मी बताते हुए उनके मंदिर में प्रवेश पर रोक लगाने की बात लिखी गई. 24 जनवरी को मंदिर ट्रस्ट के लेटर पैड पर इस बाबत जानकारी भी जारी की गई. उक्त पोस्टर और लेटर पैड को यहां नीचे देखा जा सकता है. इसी के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य ने लेटे हनुमान मंदिर को लेकर टिप्पणी की है.

स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस को लेकर क्या कहा था?

आपको बता दें कि सपा के विधान परिषद सदस्य स्वामी प्रसाद मौर्य ने रविवार को कहा था, ”रामचरितमानस की कुछ पंक्तियों में जाति, वर्ण और वर्ग के आधार पर यदि समाज के किसी वर्ग का अपमान हुआ है तो वह निश्चित रूप से धर्म नहीं है. यह ‘अधर्म’ है, जो न केवल भाजपा बल्कि संतों को भी हमले के लिए आमंत्रित कर रहा है.” मौर्य ने कहा था, ‘रामचरित मानस की कुछ पंक्तियों में तेली और ‘कुम्हार’ जैसी जातियों के नामों का उल्लेख है जो इन जातियों के लाखों लोगों की भावनाओं को आहत करती हैं.” उन्होंने मांग की कि पुस्तक के ऐसे हिस्से, पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए, जो किसी की जाति या किसी चिह्न के आधार पर किसी का अपमान करते हैं.

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