कहानी अखिलेश की ‘रथ यात्राओं’ की, क्या 2012 का ‘चमत्कार’ 2022 में दोहरा पाएंगे?

वो तारीख थी- 12 सितंबर 2011. उत्तर प्रदेश में 2012 का विधानसभा चुनाव होने में कुछ ही महीनों का वक्त बचा था. लखनऊ के विक्रमादित्य…

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वो तारीख थी- 12 सितंबर 2011. उत्तर प्रदेश में 2012 का विधानसभा चुनाव होने में कुछ ही महीनों का वक्त बचा था. लखनऊ के विक्रमादित्य मार्ग पर मौजूद समाजवादी पार्टी (एसपी) के ऑफिस में काफी गहमागहमी थी. पार्टी ऑफिस के अंदर और बाहर हजारों कार्यकर्ता मौजूद थे. समाजवादी पार्टी के रंग में रंगा ‘क्रांति रथ’ प्रदेश की सियासत में बड़ी हलचल पैदा करने के लिए पार्टी ऑफिस में तैयार खड़ा था. इस रथ यात्रा की कमान युवा एसपी नेता अखिलेश यादव के हाथों में थी, मकसद था- बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) को सत्ता से बाहर करना.

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नतीजा– ‘रथ यात्रा’ की यह रणनीति एसपी के लिए ‘संजीवनी’ साबित हुई और वो 403 सदस्यीय विधानसभा में 224 सीटें हासिल कर सत्ता तक पहुंची. एसपी की इस कामयाबी में और भी कई फैक्टर्स का योगदान माना जा सकता है, लेकिन इस ‘रथ यात्रा’ ने जनता तक अपना मैसेज पहुंचाने में पार्टी के लिए बड़ी भूमिका निभाई थी.

अब आते हैं, मौजूदा वक्त के एक दृश्य पर. तारीख- 12 अक्टूबर 2021. हजारों एसपी कार्यकर्ताओं की भीड़ के बीच कानपुर से ‘समाजवादी विजय यात्रा’ की शुरुआत होती है. इस ‘रथ यात्रा’ की भी कमान उन्हीं अखिलेश यादव के हाथ में है, इस बार मकसद है- भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को सत्ता से बाहर करना. इसका नतीजा तो वक्त ही बताएगा, मगर एक सवाल सियासी गलियारों में काफी उठ रहा है- क्या इस बार भी ‘रथ यात्रा’ की रणनीति एसपी को सत्ता तक पहुंचाने में कारगर साबित होगी?

यह सवाल तब और अहम हो जाता है, जब एक हालिया सर्वे से सत्तारूढ़ बीजेपी के सबसे मजबूत स्थिति में होने के संकेत मिले हैं और विपक्ष में प्रियंका गांधी जैसे नेताओं की जमीन पर सक्रियता तेजी से बढ़ी है.

हालांकि तमाम चुनौतियों के बीच ‘समाजवादी विजय रथ’ में बैठे अखिलेश ने यूपी तक से बातचीत में कहा कि उन्हें उम्मीद है कि 2022 में जनता भारतीय जनता पार्टी का सफाया करेगी. उन्होंने कहा, ”गंगा से लेकर यमुना के किनारे तक समाजवादी विजय रथ चलेगा और (इसे) इसलिए चला रहे हैं कि जनता का सहयोग, समर्थन और आशीर्वाद लेने के लिए हम लोग निकले हैं.”

जो अखिलेश इसी रणनीति से 2012 में जनता का भरपूर समर्थन हासिल कर चुके हैं, उनके बारे में यह जान लेना भी जरूरी है कि उन्होंने ‘रथ यात्रा’ के जरिए 2012 की सियासी लड़ाई आखिर लड़ी कैसी थी, किस तरह तब ‘रथ यात्रा’ उनके लिए कारगर साबित हुई थी? तो चलिए इन सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं, साथ में यह भी जानेंगे कि रथ यात्राओं को लेकर समाजवादी पार्टी का इतिहास क्या रहा है?

2012 के चुनाव से पहले इस तरह ‘रथ यात्रा’ के जरिए जनता से जुड़ने और पार्टी कार्यकर्ताओं में नई जान फूंकने में सफल रहे अखिलेश:

समाजवाद का सारथी किताब में संजय लाठर लिखते हैं कि अखिलेश यादव ने 2011 में ‘क्रांति यात्रा’ को परिवर्तन का प्रतीक बताया था. अखिलेश ने कहा था कि यह यात्रा गांव-गांव, शहर-शहर जाकर ‘भ्रष्ट’ बीएसपी सरकार को उखाड़ फेंकने का आह्वान करेगी. उस वक्त वह जो आत्मविश्वास दिखा रहे थे, उसने पार्टी कार्यकर्ताओं में नई जान फूंकने का काम किया था, और किसी भी राजनीतिक दल की कामयाबी के लिए यह बात बेहद अहम मानी जाती है कि उसके कार्यकर्ता और नेता जमीन पर पूरे जोश के साथ एक्टिव रहें.

उस वक्त ‘रथ’ के साथ युवाओं और पार्टी कार्यकर्ताओं की फौज चल रही थी. कार्यकर्ता जोशीले नारे लगा रहे थे, ‘‘तख्त बदल दो, ताज बदल दो, बेईमानों का राज बदल दो’’, ‘‘जिसने कभी न झुकना सीखा उसका नाम मुलायम है.’’ अखिलेश यादव रथ पर सवार थे. लाल टोपी पहने और समाजवादी पार्टी का झंडा लगाए सैकड़ों मोटरसाइकिल सवार कार्यकर्ता ‘रथ’ के आगे-आगे चल रहे थे. पीछे कारों की लंबी कतार थी.

‘क्रांति रथ’ के पहले चरण में कारवां कानपुर के रास्ते आगे बढ़ा. लखनऊ के विक्रमादित्य मार्ग से कानपुर जाने वाला रास्ता मानो समाजवादी पार्टी मय हो गया था. सड़क के दोनों तरफ आम लोगों और कार्यकर्ताओं की भीड़ अखिलेश यादव की एक झलक पाने के लिए बेताब थी.

अपने संबोधन में अखिलेश यादव लोगों से ‘समाजवादी क्रांति रथ’ के साथ आने की अपील करते, ‘‘दोस्तो, नौजवानो! उत्तर प्रदेश की भ्रष्टाचारी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए समाजवादी पार्टी के क्रांति रथ के साथ आइए.’’ वह भीड़ को ”मायावती सरकार के भ्रष्टाचार, मंत्रियों और अधिकारियों के भ्रष्टाचार” के किस्से सुनाते.

उन्नाव में अखिलेश यादव ने बेरोजगारी को लेकर जोरदार भाषण दिया. उन्होंने कहा,

‘‘पहले नौजवान बेरोजगार होते थे, लेकिन अब बेरोजगार बाप भी हो गए हैं. प्रदेश की मुख्यमंत्री ने जनता के पैसे से सैंडिल पहन ली और अपनी मूर्ति लगा ली. लखनऊ के पार्कों और मैदानों में हजारों हाथियों की मूर्तियां सजा दी गईं और लोग बेरोजगार हो गए हैं.’’

अखिलेश यादव

‘समाजवादी क्रांति रथ’ यात्रा की टैगलाइन थी- ‘‘विकास की गंगा बहाने को, अब भ्रष्टाचार मिटाने को, क्रांति रथ पर होकर सवार, निकल पड़ा है समाजवाद.’’ ये लाइनें पार्टी समर्थकों की जुबान पर चढ़ गई थीं. सबसे मजेदार बात यह थी कि ये लाइनें किसी प्रोफेशनल टीम ने नहीं लिखी थीं, बल्कि अखिलेश यादव ने इनको खुद अपने फेसबुक पेज से उठाया था, जहां किसी पार्टी समर्थक ने ये लाइनें डाली थीं.

कई चरणों से गुजरती हुई ‘क्रांति रथ यात्रा’ 10 फरवरी को कन्नौज में खत्म हुई. ‘समाजवादी क्रांति रथ’ ने 12 सितंबर 2011 से 10 फरवरी 2012 के बीच 14 चरणों में नौ हजार किलोमीटर का सफर तय किया. यात्रा के जरिए सूबे के करीब 300 विधानसभा क्षेत्रों में जनता के बीच पार्टी का संदेश पहुंचाने की कोशिश हुई. ‘रथ यात्रा’ के जरिए अखिलेश यादव ने ज्यादा से ज्यादा इलाकों में पहुंचने की कोशिश की. उन्होंने लगभग हर वर्ग, हर समुदाय, हर जाति के लोगों के बीच अपनी बात पहुंचाने की कोशिश की और समाजवादी पार्टी के लिए समर्थन मांगा. यात्रा के दौरान वे लोगों की जरूरत और उनके दुख-दर्द को समझते हुए एक हमदर्द के तौर पर नजर आए.

‘रथ यात्रा’ से अखिलेश का है पुराना कनेक्शन, यूं हुई थी शुरुआत

संजय लाठर ने लिखा है कि अखिलेश यादव ने पहली बार ‘क्रांति रथ यात्रा’ की शुरुआत 2001 में की थी. 2001 में उनकी ‘क्रांति रथ यात्रा’ 31 जुलाई को शुरू हुई थी. यह यात्रा लखनऊ, रायबरेली, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, जौनपुर, मऊ, आजमगढ़ और अंबेडकरनगर होते हुए 4 अगस्त को लखनऊ में खत्म हुई थी. इस यात्रा में उन्होंने जनसंघर्ष की अगुवाई के लिए युवाओं से आह्वान किया था और भारतीय जनता पार्टी की सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए लोगों से अपील की थी. कहा जाता है कि इस यात्रा का कार्यक्रम यूं ही अचानक बना था.

दरअसल, 2001 के जनवरी महीने के आखिरी हफ्ते में दिल्ली में समाजवादी पार्टी के ऑफिस में पार्टी के बड़े नेता बैठे थे. इसमें तब के पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जनेश्वर मिश्र, प्रोफेसर रामगोपाल यादव, उत्तर प्रदेश में पार्टी के अध्यक्ष रामशरण दास, राज्य में पार्टी के महासचिव शिवपाल सिंह यादव, पार्टी के वरिष्ठ नेता बेनी प्रसाद वर्मा और फिल्म अभिनेता और सांसद राज बब्बर, सांसद अखिलेश यादव समेत अन्य नेता शामिल थे. आगामी विधानसभा चुनाव पर चर्चा हो रही थी. बैठक में प्रस्ताव आया कि समाजवादी पार्टी अगले विधानसभा चुनाव से पहले ‘क्रांति रथ यात्रा’ निकालकर जन-जन तक पहुंचे.

‘क्रांति रथ यात्रा’ निकले, इस पर सबकी सहमति थी, लेकिन यह तय नहीं हो पा रहा था कि यात्रा की अगुवाई कौन करे. इस बीच कई नाम आए. जनेश्वर मिश्र का सुझाव था कि शिवपाल सिंह यादव क्रांति रथ यात्रा लेकर निकलें, लेकिन सवाल उठा कि अगर शिवपाल यादव लखनऊ से बाहर रहेंगे तो संगठन का काम प्रभावित होगा.

तभी अखिलेश यादव ने सुझाव दिया कि ‘क्रांति रथ’ पर किसी ऐसे नेता को बिठाया जाना चाहिए जो अपनी बातों से लोगों को समाजवादी पार्टी से जोड़ सके, खासकर युवा वर्ग को. अखिलेश के इस सुझाव वहां मौजूद एक नेता ने कहा कि ‘क्रांति रथ’ पर युवा सांसद अखिलेश यादव को बिठाना कैसा रहेगा? सभी को यह प्रस्ताव पसंद आया, लेकिन पार्टी के दो दिग्गज मुलायम सिंह और प्रोफेसर रामगोपाल इससे सहमत नहीं थे. दोनों का मानना था कि अखिलेश को क्रांति रथ पर बैठाना जल्दबाजी होगी.

हालांकि बाद में युवाओं में अखिलेश की अपील देखकर मुलायम अपने बेटे को ‘रथ यात्रा’ की कमान सौंपने के लिए सहमत हो गए.

इसके बाद जब साल 2002 के यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तो एसपी को 143 सीटें मिलीं, वहीं बीएसपी को 98, बीजेपी को 88 और कांग्रेस को 25 सीटें ही मिलीं.

यहां इस बात को जान लेना चाहिए कि 1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना से पहले ‘क्रांति रथ’ पर बैठकर मुलायम सिंह यादव ने भी 1987 में उत्तर प्रदेश का भ्रमण किया था और उन्हें व्यापक जनसमर्थन मिला था. कहा जाता है कि 1989 में मुलायम के मुख्यमंत्री बनने से पहले उनका सियासी कद बढ़ाने में यह ‘रथ यात्रा’ उनके लिए काफी कारगर साबित हुई.

ऐसे में यह तो साफ है कि पहले मुलायम और फिर अखिलेश के लिए ‘रथ यात्राएं’ जनता से जुड़ने का कारगर तरीका रही हैं, मगर यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव के नतीजों में यह देखना दिलचस्प होगा कि अखिलेश के लिए उनकी ‘समाजवादी विजय यात्रा’ कितनी कामयाब साबित होती है.

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